मुरैना की गजक और रीवा के सुंदरजा आम को मिला जीआई टैग

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मुरैना की गजक और रीवा के सुंदरजा आम को मिला जीआई टैग

मुरैना की गजक और रीवा के सुंदरजा आम को मिला जीआई टैग


मुरैना की गजक और रीवा के सुंदरजा आम की महक अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखेगी। भारत सरकार की ओर से इन दोनों को जीआई टैग मिला है। मुरैना की गजक सर्दी के महीनों में चंबल क्षेत्र में सबसे ज्यादा खाई जाने वाली मिठाई है। वहीं, सुंदरजा आम की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें रेशे नहीं होते हैं।

 

हाइलाइट्स

  • मुरैना की गजक को मिला जीआई टैग
  • रीवा को सुंदरजा आम को भी दिया गया टैग
  • केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और सीएम शिवराज ने जताई खुशी
भोपाल: दुनियाभर में ख्याति प्राप्त मध्य प्रदेश के मुरैना की गजक और रीवा के सुंदरजा आमों ने एक बार फिर प्रसिद्धि हासिल की है। दोनों ही उत्पादों को जीआई टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) प्रदान किया गया है। मुरैना के गजक और रीवा के आम की पूरे विश्व में मांग है। ये दोनों उत्पाद ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध हैं। केंद्रीय मंत्री पी

क्या है सुंदरजा आम

सुंदरजा आम रीवा जिले में अपनी अलग की महक बिखेरता है। इस आम की मिठास का कोई तोड़ नहीं है। यह बिना रेशा वाला आम है, और एक आम में बाहर अलग-अलग रंग होते हैं। खास बात यह है कि सुंदरजा आम को शुगर के मरीज भी खा सकते हैं। बताया जाता है कि पहले सुंदरजा आम केवल गोविंदगढ़ किले के बगीचों में होता था। यह राजे-राजवाड़ों की पसंद हुआ करता था, लेकिन अब कुठुलिया फल अनुसंधान केंद्र में भी बहुतायत मात्रा में इसकी खेती की जाती है। गोविंदगढ़ के बागों में होने वाला सुंदरजा आम हल्का सफेद रंग का, जबकि कुठुलिया फल अनुसंधान केंद्र में हल्के हरे रंग का फल होता है। फ्रांस, अमेरिका, इंग्लैंड सहित अरब देशों में यह निर्यात किया जाता है।

मुरैना की गजक को जानें

मुरैना के गजक बहुत प्रसिद्ध हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यात किए जाते हैं। बताया जाता है कि चंबल नदी के पानी में कुछ घटकों के कारण इससे एक मिठाई विकसित की गई थी। बाद में इसे गजक नाम दिया गया। गजक को तिल और गुड़ के साथ तैयार की जाने वाली विधि के साथ तैयार किया जाता है। अगर सही प्रक्रिया से बनाया जाये तो 5 से 8 किलोग्राम गजक तैयार करने में लगभग 10-15 घंटे लगते हैं। आटे को तब तक फेंटा जाता है जब तक कि सभी तिल न टूट जाएं और आटे में अपने तेल को छोड़ दें। मुरैना में आज भी गजक इसी प्रक्रिया से बनाई जाती है। इसलिए इसकी वैश्विक ख्याति भी है। चंबल अंचल में गजक सर्दियों के दिनों में सबसे ज्यादा खाई जाने वाली मिठाई है। यह सेहत के लिए फायदेमंद है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। मुरैना की गजक के जिलेभर में एक हजार से ज्यादा दुकानदार हैं। सर्दी के चार महीनों के दौरान चार हजार से ज्यादा मजदूरों को इससे रोजगार मिलता है। बताया जाता है कि मुरैना की गजक का कारोबार 200 करोड़ रुपये से ज्यादा है।

जीआई टैग से फायदा

विशेषज्ञ बताते हैं कि किसी एक क्षेत्र में कोई विशेष प्रकार का उत्पाद बनता हो या उसकी पैदावार होती है और क्षेत्र की भौगोलिक विशेषताओं के कारण उक्त उत्पाद की गुणवत्ता विशेष रहती हो और अन्य स्थानों पर ऐसा गुणवत्तापूर्ण उत्पाद न हों, तब उस क्षेत्र विशेष के लिए उक्त उत्पाद को कानूनी मान्यता दी जाती है। इसके लिए जीआई टैग बहुत उपयोगी है। इससे उत्पाद को सुरक्षा मिलती है। उसकी नकल करके उक्त उत्पाद को विशेष बताने को निषेध किया जाता है। जीआई टैग मिलने के बाद उक्त उत्पाद की मांग व पहचान राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी बढ़ती है।

रिपोर्ट: दीपक राय

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