मुगल सम्राट को खुश करने के लिए किया था नाहर नृत्य भीलवाड़ के मांडल में
Nahar Nritya In Rajasthan : राजस्थान के भीलवाड़ा में ये नृत्य साल में महज एक बार होता है। इसकी शुरुआत 410 साल पहले हुई थी। तब इसकी प्रस्तुति मुगल सम्राट के सामने मनोरंजन के लिए दी गई थी। तब से लेकर आज तक हर साल मांडल में इसका आयोजन हो रहा है।
हाइलाइट्स
- ये अनूठा नाहर नृत्य साल में एक ही बार देखने को मिलता है
- राजस्थान का बेहद खास ‘नाहर नृत्य’ भीलवाड़ा के मांडल कस्बे में होता है
- दीपावली जैसा उत्सव और उत्साह का मुख्य आकर्षण होता है ये ‘नाहर नृत्य’
- कभी इसे मुगल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए पेश किया गया था
नाहर नाम में ही छिपी है इसकी खूबी
इस नृत्य की खासियत यह है कि इसके कलाकार अपने पूरे शरीर पर रुई लपेट कर नाहर (शेर)का स्वांग रचते हैं। इसलिए इसे नाहर नृत्य का नाम दिया गया।
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दो ही जगह होता है नाहर नृत्य का आयोजन
नाहर नृत्य मांडल कस्बे में मुग़ल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए शुरू हुआ। अब ये नाहर (शेर) नृत्य प्रतिवर्ष होली के बाद रंग तेरस के दिन होता है। इसका आयोजन कस्बे के प्रमुख आराध्य भगवान चार भुजा मंदिर और कचहरी के बाहर होता है। सालों से नाहर नृत्य मांडल कस्बे का प्रमुख त्योहार बन चुका है। देश में अपनी तरह का ये अनूठा नृत्य पारम्परिक वाद्य यत्रों की धुनों के बीच प्रस्तुत किया जाता है।
उदयपुर के महाराणा से जुड़ा ये है इतिहास
चार सौ नौ साल पहले 1614 में शाहजहां मांडल पहुंचे थे। उनका पड़ाव उदयपुर जाते समय रास्ते में यहां डाला गया था। शाहजहां मेवाड़ महाराणा अमर सिंह से संधि करने उदयपुर जा रहे थे। तभी मुगल बादशाह शाहजहां मांडल में रुके थे। उस समय उनके मनोरंजन के लिए यह नाहर नृत्श पेश किया गया। लेकिन यहां के कलाकारों ने इसे आज भी जीवंत रखा हुआ है। साल में एक बार इसे प्रस्तुत किया जाता है।
दीपावली जैसा त्योहार, बहन, बेटियां और दामाद सभी आते हैं गांव
मांडल के राजस्थान लोक कला केंद्र के अध्यक्ष रमेश बूलिया कहते हैं कि यह नाहर नृत्य नरसिंह अवतार का रूप है। 1614 ईस्वी में मुगल बादशाह शाहजहां के समक्ष उस समय मांडल गांव वालों ने अपने नरसिंह अवतार का प्रदर्शन कर शाहजहां को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इस बार हमने रविवार को 410वें नाहर नृत्य का आयोजन किया है। यह त्योहार मांडल कस्बे के लिए दीपावली जैसा त्योहार है। इस दिन हमारी बहन, बेटियां और दामाद सभी गांव आते हैं। यह त्योहार आपसी भाईचारे की एक बहुत बड़ी मिसाल है। सुबह से ही लोग रंग खेलते हैं। जहां दिन में बेगम और बादशाह की सवारी निकली जाती है। हर बार चार कलाकार नाहर बनते हैं।
4 किलो रुई लपेटी जाती है, सिंग लगा कर बनाया जाता है नरसिंह का अवतार
नाहर नृत्य करने वाले कलाकार जितेन्द्र कुमार मांटोलिया कहते हैं ‘मैं बरसों से शरीर पर रुई लपेटकर शेर का स्वांग वाला नाहर नृत्य करता आ रहा हूं। हम बरसों पुरानी परंपरा को निभा रहे हैं। हमारे शरीर पर 4 किलो रुई लपेटी जाती है। सिंग लगा कर पूरा नरसिंह का अवतार बनाया जाता है। पहले हमारे दादाजी फिर पिताजी अब वर्तमान में मैं भी इस परंपरा को निभा रहा हूं।’
अपने आप में अनूठा ये नाहर नृत्य बरबस ही लोगों को ध्यान खींच लेता है। बरसों से यहां के लोग इसे जिंदादिली के साथ पेश करते हैं। त्योहार की तरह इसे मनाया जाता है। लेकिन अब जो हालात हैं उनमें किसी सरकारी सहायता के बिना इसे आगे भी सहजना किसी चुनौती से कम नहीं। 400 साल से भी पुराने मांडल के नाहर नृत्य को अब दरकार सहेज कर रखने की है। रिपोर्ट- प्रमोद तिवारी
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