मानस-विवाद पर आक्रामक योगी सरकार ने UP भर के मंदिरों में रामायण पाठ की कर ली तैयारी, क्या करेंगे अखिलेश?

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मानस-विवाद पर आक्रामक योगी सरकार ने UP भर के मंदिरों में रामायण पाठ की कर ली तैयारी, क्या करेंगे अखिलेश?

मानस-विवाद पर आक्रामक योगी सरकार ने UP भर के मंदिरों में रामायण पाठ की कर ली तैयारी, क्या करेंगे अखिलेश?


लखनऊः उत्तर प्रदेश में रामचरितमानस विवाद अब एक नया मोड़ लेता नजर आ रहा है। विधानसभा में मसले पर गर्मागर्म बहस के बाद अब योगी आदित्यनाथ सरकार ने ‘राम-पॉलिटिक्स’ में ऐसा दांव चला है कि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की बेचैनी बढ़ गई है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने चैत्र नवरात्र और रामनवमी को प्रदेश में व्यापक स्तर पर मनाने का प्लान बनाया है। इसके लिए प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को शासन की तरफ से एक लाख रुपये दिए जाएंगे। योगी का दांव ऐसा है कि जिस सपा के नेता ने रामचरितमानस को लेकर विवाद खड़ा किया था, उस पार्टी के सामने भी फैसले का स्वागत करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है।

‘भगत’ बने अखिलेश के हर दांव पर पानी
दरअसल, बीते दो विधानसभा चुनाव में बीजेपी से पटखनी खाने के बाद सपा को लगने लगा था कि हिंदुत्ववादी राजनीति का विरोध करके सत्ता में नहीं आया जा सकता है। यही कारण था कि सपा नेता अखिलेश यादव मंदिरों के चक्कर लगाने लगे थे। उन्होंने न सिर्फ अयोध्या के हनुमानगढ़ी में जाकर दर्शन-पूजन किया था बल्कि, बीते दिनों वाराणसी के संकटमोचन मंदिर जाकर वहां के महंत से भी चर्चा की थी। इतना ही नहीं राम मंदिर के मुद्दे पर भी अखिलेश ने कथित तौर पर अपना स्टैंड बदला और बाबरी के पैरोकारों के खिलाफ फैसला आने के बाद भी उन्होंने कोर्ट के निर्णय पर कोई असहमति नहीं जताई। अखिलेश की पार्टी ने तो यह तक कह दिया कि अगर उनकी सरकार होती तो राम मंदिर और तेजी से बनता।

बीते विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने ब्राह्मण वोटों को साधने के लिए ‘परशुराम परिक्रमा’ भी शुरू की थी। विष्णु के अवतार माने जाने वाले परशुराम की प्रतिमाओं का अनावरण करते हुए भी सपा मुखिया दिखाई दिए। ये सब करते अखिलेश अपनी पार्टी की प्रचलित छवि के खिलाफ भी जा रहे थे। उन्हें लग रहा था कि बीजेपी के हिंदुत्व को जवाब देने के लिए ये सब करना जरूरी है। हालांकि, विधानसभा चुनाव में हार के बाद एक बार फिर सपा ने अपनी रणनीति बदली है।

यूपी में मानस विवाद
बीते दिनों बिहार से यूपी में आए रामचरितमानस विवाद में सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व बसपा-भाजपाई स्वामी प्रसाद मौर्य चर्चा का केंद्र बने रहे। उन्होंने रामचरितमानस को न सिर्फ बकवास ग्रंथ बता दिया बल्कि उसकी एक चौपाई के आधार पर उसे प्रतिबंधित करने की मांग भी सरकार से कर दी। इसे लेकर यूपी में जमकर बवाल मचा और संतों-महंतों ने स्वामी प्रसाद पर सख्त ऐक्शन लेने के लिए अखिलेश पर दबाव बनाने की कोशिश की। सपा के भीतरखाने में भी मौर्य का जमकर विरोध हुआ और कई नेता मुखर होने के नाते पार्टी से निकाले भी गए।

हालांकि, सपा ने स्वामी प्रसाद मौर्य पर ऐक्शन नहीं लिया। उल्टा उन्हें पार्टी का महासचिव बना दिया। यह ऐसा पद है, जिस पर अखिलेश के चाचा शिवपाल भी नियुक्त किए गए हैं। इसे रामचरितमानस विवाद पर अखिलेश का जवाब भी माना गया और कहा गया कि सपा मुखिया ने परोक्ष तौर पर इस पूरे विमर्श में स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ दिया है। उन्होंने खुलकर मौर्य के बयान का विरोध नहीं किया बल्कि योगी आदित्यनाथ को चुनौती दी कि वह विवादित चौपाई सदन में पढ़कर बताएं। हालांकि, बाद में योगी ने सदन में इस चौपाई की अपनी व्याख्या सुनाई।

अखिलेश की कोशिशों पर फिरा पानी?
इस विवाद से अखिलेश यादव की उन कोशिशों पर पानी फिर गया, जिसके जरिए वह अपने आपको भगवान राम का भक्त और ‘सच्चा हिंदू’ जताने की कोशिश कर रहे थे। हालांकि, अखिलेश ने हिंदुत्ववादी राजनीति की इस धारा में अपना हाथ धोने की कोशिश जरूर की। बीते दिनों उन्होंने बयान दिया कि उनकी सरकार में पुजारियों को मानदेय मिलता था जबकि इस सरकार में ऐसा नहीं है। इसके अलावा हाल ही में काशी विश्वनाथ में स्पर्श-दर्शन के लिए शुल्क निर्धारित करने के मुद्दे को भी जोर-शोर से उठाया।

ये सब करके अखिलेश योगी आदित्यनाथ की विचारधारा को ‘छद्म हिंदुत्ववादी’ साबित करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन बीजेपी सरकार के मुखिया ने इस बार फिर ऐसा दांव चल दिया है, जिससे अखिलेश चित्त नजर आ रहे हैं। योगी शासन ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि आने वाली चैत्र नवरात्र और रामनवमी को प्रदेश में व्यापक स्तर पर मनाया जाए। इसे रामचरितमानस विवाद के बीच योगी सरकार का सपा को जवाब भी माना जा रहा है।

खुलकर विरोध नहीं कर पाए अखिलेश
अखिलेश ने योगी सरकार के इस फैसले पर सवाल भी उठाया है तो खुलकर विरोध नहीं किया है। उन्होंने अपने चिर-परिचित व्यंग्यात्मक लहजे का प्रयोग करके योगी सरकार के फैसले का स्वागत तो किया है लेकिन साथ ही यह भी कहा कि एक लाख से क्या होगा। योगी सरकार को इसके लिए कम से कम 10 करोड़ रुपये देने चाहिए ताकि सभी धर्मों के त्योहारों को व्यापक पैमाने पर मनाया जा सके। उन्होंने इस मुद्दे को महंगाई के मुद्दे के बरअक्स खड़ा करने की कोशिश की और कहा कि भाजपा सरकार त्योहारों पर फ़्री सिलेंडर दे और इसकी शुरूआत इसी रामनवमी से करे। हालांकि, अखिलेश का यह हथकंडा योगी सरकार के दांव पर कितना काम करेगा, यह समय बताएगा।

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