‘माइकल और अन्ना’ भर रहे किसान की झोली, कटिहार में सेब के इन किस्मों की खेती कर हो रही बंपर कमाई
कैसे हुई शुरुआत
कटिहार जिले में केले में पनामा बिल्ट की बीमारी आने के बाद किसान काफी परेशान थे। उसके बाद युवा किसान मंजीत मंडल हिमाचल प्रदेश गए और वहां से इजराइल की वेराइटी के सेब के पेड़ लेकर आये। उसे ट्रायल के तौर पर अपने बागबानी में लगाया। ये ट्रायल सफल हो गया। जिसके बाद वो पुनः हिमांचल प्रदेश गए और वहां से पेड़ लेकर एक एकड़ में ज़मीन में उसे लगा दिया। जिसके उन्हें काफी मात्रा में सेब प्राप्त हुआ। उन्होंने क्षेत्र के किसानों को सेब की खेती की सलाह देनी शुरू कर दी।
विभिन्न किस्म का उत्पादन
युवा किसान मंजीत मंडल ने बताया है कि सेब की तीन वेराइटी की नस्ल पाई जाती है। जो हमारे इलाके में की जा सकती है। जिसमे पहली नस्ल-अन्ना,दूसरी नस्ल-डोरमैट गोल्डेन। तीसरा-माइकल है। जो यहां की जमीन में कई जाने वाली नस्ल है और ये गर्म क्षेत्र में होने वाले सेब है।
बाजार मूल्य काफी अच्छा
युवा किसान मंजीत कहते है कि इसमें एक पेड़ की आयु 25 वर्ष की होती है। इसकी टहनी को हमेशा काटकर छोटा करना पड़ता है ताकि ज्यादा फलदार हो सके। उन्होंने बताया कि जब बाजारों में कश्मीरी सेब खत्म हो जाता है। कोल्ड स्टोरेज से सेब आने लगता है। तब इस सेब को बाजार में भेजकर उन्होंने देखा था। उन्हें बाजार में 200 रुपये किलो भाव मिले। उनके लिए काफी फायदेमंद रहा।
कब तक तैयार होता है सेब
युवा किसान मंजीत कहते हैं कि मार्च के महीने में फूल देता है। उसी समय सेब भी तैयार हो जाता है। सेब तैयार होने में पाँच महीने का समय लगता है। खेती में लागत खर्च 25 हजार के करीब है। मंजीत कहते है कि ऐब की खेती करते समय कई चीजों को ध्यान में रखने की जरूरत है। इसमें फंगस की बीमारी पकड़ लेने से पेड़ में होने वाले सेब बर्बाद हो जाते हैं। इसलिए पेड़ के जड़ में पानी का ठहराव नहीं हो इसका ध्यान रखना है। खासकर निमाटोट जिस जमीन में पाई जाए उसमें सेब की खेती नहीं करनी है।