मां नहीं रहीं… बस स्टैंड पर खड़े चेतेश्वर पुजारा को जब मिली दुखद खबर, फिर यूं बने भारत की चट्टान

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मां नहीं रहीं… बस स्टैंड पर खड़े चेतेश्वर पुजारा को जब मिली दुखद खबर, फिर यूं बने भारत की चट्टान


मां नहीं रहीं… बस स्टैंड पर खड़े चेतेश्वर पुजारा को जब मिली दुखद खबर, फिर यूं बने भारत की चट्टान

टीम इंडिया इस समय ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 4 मैचों की रोमांचक टेस्ट सीरीज खेल रही है, जो वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप 2023 के फाइनल में पहुंचने के लिए भारत के लिए अहम भूमिका निभाएगी। वही. यह सीरीज भारतीय बल्लेबाज चेतेश्वर पुजारा के लिए भी खास है। क्योंकि दिल्ली में खेले जाने वाले दूसरे टेस्ट में पुजारा भारत के लिए अपना 100वां टेस्ट खेलने जा रहे हैं। वहीं इस ऐतिहासिक टेस्ट से पहले उनके पिता अरविंद पुजारा ने उनको लेकर बड़ी प्रतिक्रिया दी है।

ऐसे बने चेतेश्वर पुजारा चट्टान जैसे कठोर

दरअसल, यह 2006 की बात है, चेतेश्वर पुजारा ने एक जिला स्तरीय मैच समाप्त होने के बाद अपनी मां रीना को फोन करके कहा था कि वह पिता अरविंद को उन्हें लेने के लिए राजकोट के बस स्टैंड पर भेज दे। बस स्टैंड पर पहुंचने पर चेतेश्वर को उनके पिता नहीं दिखे, उनके एक रिश्तेदार ने उन्हें सूचित किया कि उनकी मां अब इस दुनिया में नहीं रही। ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाजों की शरीर पर लगी आग उगलती गेंदे हों या फिर अपनी प्यारी मां का निधन,पुजारा को इन सभी बातों ने अंदर तक झिनझोड़ कर रख दिया। लेकिन वह कभी उनके संकल्प को नहीं तोड़ पाए। अब भारतीय क्रिकेट का यह शांत योद्धा अपना 100वां टेस्ट मैच खेलने की दहलीज पर खड़ा है। चेतेश्वर के पिता अरविंद पुजारा ने अपने बेटे की इस खास उपलब्धि पर कहा,

‘किसी भी खेल में 100 मैच खेलना बड़ी उपलब्धि होती है। इसके लिए आपको बहुत अधिक समर्पण और अनुशासन, फिटनेस और अच्छे भोजन की जरूरत होती है। इन सभी के संयोजन से आपको अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लंबे समय तक खेलने में मदद मिलती है। निश्चित तौर पर थोड़ा भाग्य का साथ होना भी जरूरी है।’’ अरविंद चेतेश्वर के केवल पिता ही नहीं बल्कि कोच भी हैं और उनका अपने बेटे की उपलब्धियों पर गर्व करना स्वाभाविक है।

पिता ने पहचाना था अंदर का क्रिकेटर

चेतेश्वर अब 35 साल के हैं लेकिन 27 साल पहले जब वह आठ साल के थे तब सौराष्ट्र की तरफ से फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेल चुके हैं। अरविंद ने उनके अंदर एक क्रिकेटर को पहचान लिया था। तभी से उन्होंने अपने बेटे को कोचिंग देनी शुरू कर दी थी। वह अपने बेटे को लेकर मुंबई गए जहां उन्होंने पूर्व भारतीय क्रिकेटर और अब कोच करसन घावरी से सलाह ली की क्या उनको अपने बेटे को क्रिकेटर बनाने के लिए अधिक समय देना चाहिए।

घावरी ने हां में जवाब दिया और इसके बाद रेलवे कॉलोनी के मैदान पर भारतीय टेस्ट टीम का एक दमदार योद्धा तैयार हुआ। सौराष्ट्र की तरफ से 06 फर्स्ट क्लास मैच खेलने वाले अरविंद ने कहा,‘ जब मैंने चेतेश्वर को कोचिंग देनी शुरू की तो उस समय दिमाग में कोई लक्ष्य नहीं था और हमने किसी चीज के बारे में सोचा भी नहीं था। लेकिन वह शुरू से ही कड़ी मेहनत करने वाला था और बेहद अनुशासित था जिसका उसे फायदा मिला।’ जब चेतेश्वर की बात आती है तो सबसे पहले उनके संकल्प पर बात होती है।

मां के निधन के बाद हो गए थे खामोश

अरविंद ने याद किया किस तरह से अपनी मां के निधन के बाद चेतेश्वर चुप हो गए और उन्होंने किसी के सामने या अकेले में आंसू नहीं बहाए। उन्होंने कहा,‘वह कभी रोया नहीं बस चुप हो गया। यहां तक कि जब वह मुंबई में ऐज कैटेगिरी का मैच खेलने के लिए गया तो मैंने टीम के कोच से उस पर निगाह रखने के लिए कहा था क्योंकि मैं चिंतित था। वह मुश्किल दौर था। आप कितनी भी कोशिश कर लो, मां की जगह नहीं ले सकते।’

चेतेश्वर बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे जिससे उन्हें चट्टान जैसा खिलाड़ी बनने में मदद मिली। अरविंद ने कहा,‘मेरी पत्नी के गुरुजी हरचरण दास ने उसका काफी ध्यान रखा। यहां तक कि उसकी आंटी योग गुरु जी के लिए भोजन तैयार करती थी और आश्रम में रहती थी उन्होंने भी मेरे बेटे का ध्यान रखा। मैं यह नहीं कहूंगा कि केवल मैंने ही उसका करियर बनाया है, उसके गुरुजी की भूमिका इसमें अहम रही। उन्होंने उसे मानसिक रूप से मजबूत बनाया।’

शरीर पर लगी चोटों को तो ठीक किया जा सकता है लेकिन दिल पर लगी चोट का कोई इलाज नहीं है। अरविंद ने कहा,‘शरीर का दर्द तो दिखता है लेकिन अंदरूनी चोट, दिल की चोट नहीं दिखती।’ लेकिन इसके बाद उन्होंने खुलासा किया कि कैसे उनका बेटे की दर्द सहने की क्षमता बढ़ी। उन्होंने कहा,‘मेरे एक डॉक्टर मित्र ने उसको (चेतेश्वर) सलाह दी कि चोट लगने पर कभी दर्द से बचने की दवा नहीं लेना। उन दवाओं से चोट जल्दी ठीक नहीं होती। आपने देखा होगा कि ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट मैच के दौरान उसने अपने शरीर पर 11 चोट झेली थी।’

मां ने धार्मिक में निभाई अहम भूमिका

चेतेश्वर भावनात्मक दर्द को कैसे झेलते हैं, इस पर अरविंद ने कहा,‘जब वह बच्चा था तो वीडियो गेम खेलता था और हमेशा खेलना चाहता था। उसकी मां ने एक शर्त रखी कि अगर वह 10 मिनट तक पूजा करेगा तो वह उसे वीडियो गेम खेलने देगी। तब उसकी मां ने मुझसे कहा था कि मैं चाहती हूं कि हमारे बेटे का भगवान में विश्वास रहे। अगर वह प्रतिदिन 10 मिनट भी पूजा करेगा तो इससे उसे एक खिलाड़ी के रूप में मुश्किल परिस्थितियों से बाहर निकलने में मदद मिलेगी। चेतेश्वर आध्यात्मिक बन गया जिससे उसे काफी मदद मिली। मां जो सीख देती है उसे दुनिया का कोई भी विश्वविद्यालय नहीं दे सकता।’
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