महाराष्ट्र सियासी संकट मामले में संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित किया

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महाराष्ट्र सियासी संकट मामले में संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित किया

महाराष्ट्र सियासी संकट मामले में संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित किया


नई दिल्ली : महाराष्ट्र सियासी संकट मामले में संवैधानिक बेंच की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच के सामने उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे ग्रुप की ओर से दलील पेश की गई। साथ ही महाराष्ट्र के गवर्नर की ओर से भी दलील पेश की गई। मामले में 21 फरवरी से मामले की सुनवाई शुरू हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी को इस मामले को लार्जर बेंच रेफर करने से मना कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सियासी संकट से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नबाम रेबिया जजमेंट पर दोबारा विचार करने के लिए मामले को लार्जर बेंच भेजने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र के स्पीकर की तरफ से अयोग्यता कार्रवाई से जुड़ा मामला पेंडिंग है। गुरुवार को सुनवाई के दौरान उद्धव ठाकरे ग्रुप ने दलील दी कि महाराष्ट्र गवर्नर के फ्लोर टेस्ट के आदेश को निरस्त किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान शिवसेना के उद्धव ठाकरे ग्रुप की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि महाराष्ट्र के गवर्नर बीएस कोश्यारी ने जून 2022 में तत्कालीन चीफ मिनिस्टर उद्धव ठाकरे को फ्लोर टेस्ट का जो आदेश दिया था वह लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा। उन्होंने कहा कि उस आदेश को निरस्त किया जाना चाहिए। अगर फ्लोर टेस्ट के उक्त आदेश को निरस्त नहीं किया गया तो लोकतंत्र खतरे में पड़ेगा। ठाकरे ग्रुप की ओर से सीनियर ऐडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि गवर्नर के उस आदेश को पलटा जाना चाहिए। इससे पहले बुधवार को चीफ जस्टिस ने सवाल किया था कि सत्तारूढ़ दल के विधायकों में मतभेद के आधार पर बहुमत साबित करने को कहना एक निर्वाचित सरकार के गिरने का कारण बन सकता है। शीर्ष अदालत ने टिप्पणी में कहा था कि गवर्नर अपने ऑफिस का इस्तेमाल किसी खास नतीजे के लिए नहीं होने दे सकता है।

सुनवाई के आखिरी दिन कपिल सिब्बल ने दलील दी कि लोकतंत्र के भविष्य को तय करने का यह समय है। हम इस बात को लेकर निश्चित हैं कि इस कोर्ट के दखल के बिना हमारा लोकतंत्र खतरे में है और कोई भी चुनी हुई सरकार नहीं बच पाएगी। हम अदालत से उम्मीद करते हैं कि वह हमारी दलील को स्वीकार करे और गवर्नर ने जून 2022 को उद्धव ठाकरे को फ्लोर टेस्ट का जो आदेश दिया था उसे खारिज किया जाए। गौरतलब है कि गवर्नर ने तत्कालीन मुख्य मंत्री उद्धव ठाकरे को फ्लोर टेस्ट करने को कहा था। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद ही 29 जून 2022 को उद्धव ठाकरे ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था और फ्लोर टेस्ट की नौबत नहीं आई। बाद में गवर्नर ने शिंदे ग्रुप और बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता दिया और एकनाथ शिंदे को सीएम बनाया गया।
सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमण की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच ने 23 अगस्त 2022 को मामले को संवैधानिक बेंच रेफर कर दिया था। बेंच ने कहा था कि संवैधानिक बेंच अहम मुद्दे को तय करेगा कि स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का अधिकार क्या है।

सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच के सामने अहम सवाल

  • क्या स्पीकर को हटाने के लिए अगर नोटिस पेंडिंग है तो स्पीकर को अयोग्यता कार्रवाई करने से रोका जा सकता है? नबाम रेबिया केस में दिए गए फैसले को दोबारा देखने की गुहार लगाई गई थी।
  • सुप्रीम कोर्ट में एकनाथ शिंदे समेत अन्य 15 विधायकों की ओर से अर्जी दाखिल कर उन्हें डिप्टी स्पीकर की तरफ से अयोग्यता नोटिस दिए जाने को चुनौती दी हुई है।
  • शिवसेना नेता और उद्धव ग्रुप द्वारा नियुक्त पार्टी चीफ व्हीप सुनील प्रभू ने गवर्नर के फ्लोर टेस्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
  • शिवसेना के नए स्पीकर द्वारा एकनाथ शिंदे ग्रुप के नॉमिनेटेड नए चीफ व्हीप को मान्यता दिए जाने को शिवसेना उद्धव ठाकरे ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
  • एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र का सीएम बनाए जाने के खिलाफ उद्धव ठाकरे ग्रुप की ओर से चुनौती दी गई है।
  • उद्धव ग्रुप की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर चुनाव आयोग के फैसले को भी चुनौती दी गई है। चुनाव आयोग ने शिंदे ग्रुप को असली शिवसेना माना है।

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