महाराष्‍ट्र संकट में ‘सुप्रीम’ फैसले के बाद अब क्‍या होगा शिंदे गुट का अगला कदम… कौन से विकल्‍प हैं मौजूद?

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महाराष्‍ट्र संकट में ‘सुप्रीम’ फैसले के बाद अब क्‍या होगा शिंदे गुट का अगला कदम… कौन से विकल्‍प हैं मौजूद?

Maharashtra Political Crisis: शिवसेना के बागी विधायकों को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने उन्‍हें आयोग्‍य ठहराने पर 12 जुलाई तक रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष की ओर से जारी अयोग्यता नोटिस के खिलाफ मंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के नेतृत्व में बागी विधायकों की याचिका पर सोमवार को सुनवाई की। कोर्ट के फैसले के बाद अब एक बड़ा सवाल है। सवाल यह है क‍ि 12 जुलाई तक महाराष्‍ट्र में क्‍या होगा। किस तरह के समीकरण और विकल्‍प मौजूद हैं। क्‍या शिंदे बागी विधायकों के साथ गुवाहाटी से कुछ खेल करेंगे या मुख्‍यमंत्री उद्धव ठाकरे तुरुप का कोई इक्‍का निकालेंगे। आइए, यहां तमाम तरह के समीकरणों को समझने की कोशिश करते हैं।

कोर्ट का फैसला क्‍यों शिंदे कैंप के लिए बड़ी राहत?
शिवसेना ने शिंदे सहित 16 विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल को पत्र लिखा था। इसे लेकर नरहरि ने इन विधायकों को नोटिस जारी किया था। जवाब देने के लिए मियाद सोमवार शाम को 5 बजे खत्‍म होने वाली थी। बागी विधायकों ने नोटिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट ने 12 जुलाई तक इन विधायकों को अयोग्‍य ठहराने पर रोक लगा दी है। इस तरह कह सकते हैं कि शिंदे कैंप को प्‍लानिंग और रणनीति बनाने के लिए और समय मिल गया है। अब जानते हैं कि इसके बाद शिंदे गुट क्‍या-क्‍या कर सकता है।

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राज्यपाल के पास जा सकता है शिंदे खेमा
इस फैसले के बाद बागी गुट राज्‍यपाल के पास जा सकता है। वह राज्‍यपाल से अविश्‍वास प्रस्‍ताव की मांग कर सकता है। ऐसा होने पर उद्धव ठाकरे को फ्लोर टेस्‍ट से गुजरना होगा। इसके जरिये उन्‍हें दिखाना होगा कि वर्तमान सरकार के पास पर्याप्‍त बहुमत है। अगर वह फ्लोर टेस्‍ट में कामयाब नहीं होते हैं तो शिवसेना के नेतृत्‍व वाली महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार गिर भी सकती है।

शिंदे टोली असली शिवसेना होने का कर सकती है दावा
हाल में एकनाथ शिंदे ने नया मुख्य सचेतक भरत गोगावले को नियुक्‍त किया था। ऐसा करके उन्‍होंने साफ कर दिया था कि असली शिवसेना उनके पास है। मंगलवार को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने नया आदेश जारी कर एकनाथ शिंदे को विधायक दल के नेता पद से हटा दिया था। उनकी जगह अजय चौधरी को विधायक दल का नेता नियुक्त किया था। इस पर शिंदे की ओर बयान आया था। उन्‍होंने कहा था कि पार्टी ने नवंबर 2019 में सरकार बनाते समय उन्हें विधायक दल का नेता घोषित किया था। आज भी वही विधायक दल के नेता हैं। इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि वो शिवसैनिक हैं और शिवसेना के विधायक उनके साथ हैं। यह सब करने के पीछे पूरा गणित है। सदन में शिवसेना के 55 विधायक हैं। वह अपने साथ 40 से ज्‍यादा विधायक होने का दावा कर रहे हैं। इससे शिवसेना पर उनका हक मजबूत होता है। यह और बात है कि गुट को मान्यता विधानसभा स्पीकर देंगे। अब बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना किसकी होगी और पार्टी का चुनाव चिह्न धनुष-बाण किसे मिलेगा, इसे लेकर एकनाथ शिंदे और ठाकरे परिवार के बीच जंग तेज हो सकती है।

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एमवीए सरकार से समर्थन वापस ले सकता है शि‍ंंदे गुट
पूरा खेल नंबर गेम का है। महाराष्‍ट्र विधानसभा में कुल 277 सदस्‍य हैं। महा विकास अघाड़ी में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस शामिल हैं। एमवीए को 169 विधायकों का समर्थन हासिल है। वर्तमान सरकार में शिवसेना के 56, एनसीपी के 53 और कांग्रेस के 44 विधायक हैं। इसके अलावा बीवीए के 3, सपा के 2, पीजीपी के 2 और 9 निर्दलीय विधायक हैं। शिंदे ने निर्दलीय सहित शिवसेना के 50 से ज्‍यादा विधायकों के साथ होने की बात कही है। शिंदे गुट सरकार से समर्थन वापस ले सकता है। ऐसा होने पर एमवीए सरकार अल्‍पमत में आ जाएगी। सरकार के लिए 144 विधायक चाहिए। यह बीजेपी के लिए सरकार बनाने का रास्‍ता खोल देगी। बीजेपी के महाराष्‍ट्र विधानसभा में 106 सदस्य हैं।

सुप्रीम कोर्ट के हस्‍तक्षेप के बाद बनी थी मध्‍य प्रदेश में सरकार
महाराष्‍ट्र में आज जैसी स्थिति मध्‍य प्रदेश में भी बन चुकी है। बात अप्रैल 2020 की है। कोरोना की महामारी की शुरुआत थी। तब कांग्रेस के 22 विधायकों ने इस्‍तीफा दे दिया था। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान को सरकार बनाने के लिए राज्‍यपाल ने न्‍यौता दिया था। इस पर कांग्रेस विधायक सुप्रीम कोर्ट चले गए थे। तब भी स्‍पीकर की भूमिका केंद्र में थी। कांग्रेस ने तर्क दिया था कि कैबिनेट की सिफारिश के बिना राज्‍यपाल फ्लोर टेस्‍ट के लिए नहीं बुला सकते हैं। खासतौर से ऐसे मामले में जब स्‍पीकर ने इस्‍तीफा स्‍वीकार नहीं किया हो। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में विधायकों के दलबदल का हवाला दिया था। उसने कहा था कि इस्‍तीफा खारिज करने के लिए विधानसभा अध्‍यक्ष के सामने शर्त है। वह ऐसा तभी कर सकते हैं यह पता चले कि ऐसा अपनी मर्जी से नहीं किया गया है।

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