महाराष्ट्र के तेलंगाना-गुजरात सीमा से लगे गांवों में भी असंतोष, क्यों दूसरे राज्य में जाना चाहते हैं लोग?

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महाराष्ट्र के तेलंगाना-गुजरात सीमा से लगे गांवों में भी असंतोष, क्यों दूसरे राज्य में जाना चाहते हैं लोग?

महाराष्ट्र के तेलंगाना-गुजरात सीमा से लगे गांवों में भी असंतोष, क्यों दूसरे राज्य में जाना चाहते हैं लोग?

मुंबई: कर्नाटक (Karnataka) के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने पिछले दिनों यह जानकारी देकर हंगामा मचा दिया था कि महाराष्ट्र की सीमा से लगी जत तहसील के 40 गांवों ने कर्नाटक में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की है। अब खुलासा हो रहा है कि इस असंतोष की जड़े कहीं गहरे फैल चुकी हैं। महाराष्ट्र (Maharashtra) में सीमावर्ती नांदेड जिले के कुछ गांवों में तेलंगाना और दूसरी तरफ आदिवासी बहुल (सुरगाना) नासिक के कुछ गांवों में महाराष्ट्र छोड़कर गुजरात में शामिल होने की मांग उठ रही है। नांदेड के देगलूर, बिलोली और धर्माबाद इलाकों के गांवों में यह मांग पिछली आघाडी सरकार के कार्यकाल के दौरान ही उठने लगी थी। जिले के तत्कालीन पालक मंत्री अशोक चव्हाण ने देगलूर-बिलोली विधानसभा क्षेत्र के लिए 192 करोड़ की योजनाएं स्वीकृत करवाई थीं। उनका आरोप है कि बीच में सरकार बदली और शिंदे-फडणवीस सरकार ने इन योजनाओं की समीक्षा करते हुए इन पर रोक लगा दी। वैसे भी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसी राव ने अपनी पार्टी तेलांगण राष्ट्र समिति का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति कर दिया है और वे इसे देशभर में इसे फैलाने की महत्वाकांक्षा रखते हैं।

पिछले दिनों इसी इलाके की धर्मनगरी बासर के एक रेजॉर्ट में 25 सरपंचों की बैठक लेकर उन्हें बताया गया कि कैसे तेलंगाना में किसानों को 25-25 हजार की सब्सिडी दी जा रही है। महाराष्ट्र प्रेमी डॉ. अभयकुमार दांडगे ने बताया कि कभी हैदराबाद के निजाम के शासन के खिलाफ लड़कर मराठवाडा के बड़े इलाके को महाराष्ट्र से जोड़ा गया था। उनका मानना है कि तेलंगाना और उसके मुख्यमंत्री राव के खिलाफ भी महाराष्ट्रवासियों पर अस्तित्व बचाने के लिए लड़ाई लड़ने की बारी आ सकती है।

नासिक जिले के सुरगाना में भी असंतोष
वहीं, उत्तर में गुजरात की सीमा के लगे नासिक जिले के आदिवासी बहुल सुरगाना में भी कुछ ऐसा ही असंतोष उबल रहा है। यहां के सीमावर्ती लोगों का मानना है कि गुजरात में आदिवासियों के जिस तरह की सुविधा मिल रही है, वैसी महाराष्ट्र में नहीं मिल रही। बताया जाता है कि सुरगाना तालुका सीमावर्ती संघर्ष समिति की बैठक में 55 गांवों के प्रतिनिधि शामिल हुए। बैठक में शामिल एनसीपी के विधायक नितिन पवार ने गांव वासियों को समझाने की कोशिश की है। विधायक ने पालक मंत्री दादा भुसे के सामने सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा और सिंचाई योजनाओं के अभाव का मुद्दा उठाने का आश्वासन दिया है।

वहीं, मराठवाडा के लातूर जिले में एक गांव बोंबली ऐसा भी है, जहां कर्नाटक में शामिल होने की धमकी दिए जाने की खबर है। बोंबली गांव के रहने वाले कर्नाटक की तरह हर किसान को 25-25 हजार अनुदान देने और चार एचपी तक बिजली मुफ्त दिए जाने की मांग कर रहे हैं।

क्या होगा असंतोष का परिणाम?
-यह असंतोष फिलहाल गांवों तक सीमित है और कुछ ग्राम पंचायतों में दूसरे राज्यों में शामिल होने का प्रस्ताव भी चर्चा में है। राज्यों की सीमाएं बदलने के फैसले गांवों में नहीं, विधानसभाओं और अंत में संसद में सर्वसम्मति से किए जाते हैं। ऐसे में ये गांव निकट भविष्य में महाराष्ट्र से टूटेंगे ऐसा होने की संभावना नहीं है।

-तत्कालीन बॉम्बे स्टेट को गुजरात और महाराष्ट्र में बांटकर हैदराबाद स्टेट से मराठवाडा, मध्य प्रांत (मध्य प्रदेश) से विदर्भ को जोड़कर एक मई 1960 को महाराष्ट्र राज्य की स्थापना की गई थी। इसके लिए 105 से ज्यादा लोगों ने शहादत दी थी। महाराष्ट्र अपनी अस्मिता से इस तरह का खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करेगा।

– इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस असंतोष को भड़काकर राजनीतिक दल इसका फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं। देशभर में अव्वल स्तर पर गिने जाने वाले महाराष्ट्र के गिनेचुने गांवों में सही, इस तरह की चर्चा उठना उसकी छवि के लिए ठीक नहीं है।

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