मणि रत्नम: मुझे खुशी है कि मेरी ये फिल्म ‘बाहुबली’ जैसी नहीं है, जो अभी भी वास्तविकता से थोड़ी अलग है

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मणि रत्नम: मुझे खुशी है कि मेरी ये फिल्म ‘बाहुबली’ जैसी नहीं है, जो अभी भी वास्तविकता से थोड़ी अलग है

मणि रत्नम: मुझे खुशी है कि मेरी ये फिल्म ‘बाहुबली’ जैसी नहीं है, जो अभी भी वास्तविकता से थोड़ी अलग है

जाने-माने तमिल निर्माता-निर्देशक मणिरत्नम की फिल्म ‘पोन्नियन सेल्वन: भाग एक’ दुनियाभर में पसंद किया गया। हाल ही में रिलीज हुई दूसरे भाग को भी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। मणिरत्नम ने हमसे अपनी फिल्म, फिल्मों के अनुभव और आने वाले दिनों के प्लान के बारे में खास बातचीत की:आपकी फिल्म ‘पीएस 1’ ने पूरी दुनिया में 500 करोड़ का कलेक्शन किया था। अब ‘पीएस 2’ से आपकी क्या उम्मीदे हैं?
हमारी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा लोग हमारी फिल्म को देखें और उसे पसंद करें। हम इसकी कमाई के आंकड़ों पर इतना ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं। फिल्म बनाने वक्त भी मेरी यही कोशिश थी कि जब पहले भाग को लोगों ने इतना पसंद किया, तो दूसरे भाग को दर्शकों के लिए और ज्यादा बेहतर बनाने की जिम्मेदारी मुझ पर थी।

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क्या आप आगे भी इस तरह की ऐतिहासिक फिल्म बनाने की सोच रहे हैं?
अगर ईमानदारी से कहूं तो अभी मेरे जहन में ऐसा कोई भी विचार नहीं है। अभी मैं इस बारे में कुछ सोच नहीं रहा हूं। फिलहाल मेरा कोई दूसरी ऐतिहासिक फिल्म बनाने का विचार नहीं है।

आजकल साउथ की भाषाओं की हिंदी डब फिल्में हिंदी भाषी दर्शकों के बीच काफी पॉप्युलर हो रही हैं। इस बारे में आपकी क्या राय है?
मुझे लगता है कि यह एक बहुत अच्छा ट्रेंड है कि अगर हम किसी भी भाषा में फिल्म बनाते हैं और वह देश के हर कोने में पसंद की जाती है, तो इसे अच्छा ही कहा जाएगा। अगर लोग किसी फिल्म को उसके अच्छे कॉन्टेट के चलते देखना पसंद कर रहे हैं, तो यह उसके निर्माता और कलाकारों के लिए खुशी की बात है।

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लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि ऐसा होने में काफी देरी क्यों हो गई है?
फिलहाल हमें इससे खुश होना चाहिए कि अब दर्शक किसी भी भाषा की अच्छी फिल्म को अपनी भाषा में देख रहा है। इस बारे में चिंता ना करें कि ये ट्रेंड देरी से क्यों आया। अगर हम इसकी वजह को देखते हैं कि तो उसके बहुत से कारण हो सकते हैं। लेकिन अब हम वहां तक पहुंच चुके हैं और इससे हम खुश हैं।

दूसरी ओर साउथ की फिल्मों की रीमेक हिंदी बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो रही हैं। इस बारे में आप क्या कहेंगे?
मुझे लगता है कि फिल्म इंडस्ट्री में अच्छा और मुश्किल दौर आता रहता है। हो सकता है यह भी वही दौर हो। मुझे लगता है कि हमारे बीच बहुत अच्छा टैलंट मौजूद है। उनमें बहुत सारे अच्छे फिल्ममेकर्स और ऐक्टर्स हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि जल्द ही हम इस फेज से भी निकल जाएंगे और अच्छी फिल्में आएंगी।

साउथ की हिंदी में डब सफलतम फिल्मों की बात करें, उनमें तेलुगू की ‘बाहुबली’, ‘आरआरआर’, ‘पुष्पा’ तथा कन्नड़ की केजीएफ और कांतारा का नाम प्रमुख हैं। लेकिन तमिल फिल्मों ने ऐसा कोई कमाल नहीं किया?
मैंने इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं ली है। आपने ही मुझे इस बारे में बताया है। मुझे पूरी उम्मीद है कि हमारी फिल्म ‘पीएस 2’ इस संदेह को दूर करेगी।

बहुत से लोग ‘पीएस 1’ की फिल्म ‘बाहुबली’ से तुलना करते हैं, आप इस बारे में क्या सोचते हैं?
मैं इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहूंगा। मेरा मानना है कि यह फिल्म बाहुबली जैसी नहीं लगती है, क्योंकि हम ऐसा नहीं चाहते थे। यह एक ऐतिहासिक फिक्शन है, लेकिन यह अभी भी वास्तविकता से थोड़ी अलग है। इसलिए मुझे खुशी है कि यह ‘बाहुबली’ जैसी नहीं है। हर फिल्ममेकर अपनी अगली फिल्म को पिछली फिल्मों से अलग बनाना चाहता है।

पिछले दिनों आपने कहा था कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को खुद को बॉलिवुड नहीं कहना चाहिए। क्या इससे भाषाई फिल्म इंडस्ट्री के मदद मिलेगी?
नहीं इससे दूसरी भाषाओं की इंडस्ट्री के लिए मदद नहीं होगी, बल्कि मैंने ऐसा इसलिए कहा था यह भारतीय फिल्म उद्योग के लिए अच्छा रहेगा। इससे दुनिया में लोग भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को बॉलिवुड के नाम से नहीं जानेंगे।

ओटीटी के बारे में आप क्या सोचते हैं। क्या आप ओटीटी के लिए भी कुछ बनाना चाहेंगे?
मुझे लगता है कि यह हर फिल्ममेकर के लिए अच्छा मौका है। जब फिल्ममेकर के पास कोई बड़े फॉर्मेट वाली कहानी हो, तो आप हर कहानी को दो या ढाई घंटे के समय में पूरा नहीं कर सकते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि कई अच्छे फिल्ममेकर पहले से ही बड़े फॉर्मेट वाली कहानियों पर काम कर रहे हैं। ये अच्छी चीज है। पिछले कुछ अरसे में यह ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है।