भील विद्रोह : 17 नवंबर 1913 का दिन, क्या सुनक माफी मांगेंगे

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भील विद्रोह : 17 नवंबर 1913 का दिन, क्या सुनक माफी मांगेंगे

भील विद्रोह : 17 नवंबर 1913 का दिन, क्या सुनक माफी मांगेंगे

जयपुर: राजस्थान के बांसवाड़ा में स्थित मानगढ़ धाम चर्चा में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां पहुंचकर आदिवासियों के बलिदान को नमन किया। साथ ही गुरू गोविंद को भी श्रद्धांजलि दी। इसके बाद अब लोगों के बीच यह जिज्ञासा बढ़ गई है कि 17 नवंबर 1913 को आखिर हुआ क्या था। दरअसल यह तारीख उस शौर्य को बयान करती है, जब भील आदिवासियों ने अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। भीलों के इस ऐतिहासिक विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने करीब 1500 भील आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया था। यह स्थान जलियांवाला बाग से कहीं अधिक नृशंस संहार की कहानी कहता है। यह भी बताया जाता है कि इस दौरान स्थानीय रजवाड़े भी थे, जो लगातार इन आदिवासियों पर जुल्म ढाह रहे थे, लेकिन बावजूद इस सबके भील झुके नहीं और गोविंद गुरु के नेतृत्व में ब्रिटीश हूकूमत के खिलाफ खड़े हो गए और अदम्य साहस और एकता की मिसाल खड़ी कर दी।

कौन थे गुरू गोविंद
गोविंद गिरि को गोविंद गुरु के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि स्वतंत्रता सेनानी गोविंद गुरु ने ही ब्रिटिश हूकूमत से लड़ने की अलख भील समुदाय में जगाई थी। आदिवासियों के बीच शिक्षा और देशभक्ति की ज्योत जगाने वाले गोविंद गुरू का जन्म 20 दिसंबर 1858 को डूंगरपुर जिले के बांसिया बेड़िया गांव में गौर जाति में एक बंजारा परिवार में हुआ था।

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बचपन से ही अध्यात्म में उनकी रूचि थी और देश में शुरू हुए स्वतंत्रता संग्राम के बाद उन्होंने भीलों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई लड़ी। जब मानगढ़ की पड़ाडी पर वो ब्रिटिश हुकूमत से विरोध करने पहुंचे। तब पुलिस ने कर्नल शटर के नेतृत्व में उन पर गोलियां चलवा दी। इस नरसंहार में हजारों भीलों को अपनी जान गवांनी पड़ी और गोविंद गुरू को फांसी की सजा हो गई, जो बाद में आजीवन कारावास में तब्दील हो गई। जेल से बाहर आने के बाद गोविंद गुरू ने अपना पूरा जीवन भीलों के उत्थान और समाज सेवा को समर्पित कर दिया।

राष्ट्रीय धरोहर बनाए जाने की मांग
राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश की सीमा से लगने वाले मानगढ़ धाम क्षेत्र को लेकर राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग चल रही हैं। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष फिर से इस क्षेत्र को राष्ट्रीय धरोहर बनाए जाने की मांग दोहराई। गहलोत ने कहा कि मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय धरोहर बनाए जाने से जलियांवाला बाग हत्याकांड की तरह ही लोग इस शहादत को जान पाएंगे। वहीं इससे आदिवासी समाज का मान बढ़ेगा। पीएम मोदी ने इस क्षेत्र के विकास के लिए चारो राज्यों की सरकारों को योगदान करने के लिए कहा है। साथ ही जल्द ही राष्ट्रीय धरोहर के तौर पर पहचान देने का आश्वासन दिया है।

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पीएम मोदी बोले- अंग्रेजी हुकुमत की क्रूरता की पराकाष्ठा थी
पीएम मोदी ने इतिहास को याद करते हुए कहा कि 17 नवंबर 1913 को मानगढ़ में जो नरसंहार हुआ, वह अंग्रेजी हुकुमत की क्रूरता की पराकाष्ठा थी। अंग्रेजों ने डेढ़ हजार से ज्यादा महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को घेरकर मौत के घाट उतार दिया, लेकिन आदिवासी समाज के उस बलिदान और संघर्ष को इतिहास में उस तरह जगह नहीं मिली। आज देश आजादी के अमृत महोत्सव में उस दशकों पुरानी भूल को सुधार रहा है। भारत का इतिहास, भारत का वर्तमान और भारत का भविष्य आदिवासी समाज के बिना पूरा नहीं होता है।

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लंबे अरसों के बाद मानगढ़ धाम को लेकर अब फिर चर्चा होने लगी है। पीएम मोदी के यहां पहुंचने के बाद अब इस स्थल की घटना को फॉरेन पॉलिटिक्स से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। हाल ही ब्रिटेन में नई सरकार बनी है। ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री ऋर्षि सुनक भारत से गहरा नाता है। ऐसे में माना जा रहा है कि अंतराराष्ट्रीय स्तर पर भी मानगढ़ की इस घटना का जिक्र हो सकता है।

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