भाजपा क्यों चाहती है पसमांदा मुस्लिमों का साथ? 5 वजहें | bjp pasmanda muslim sammelan why BJP focus on Pasmanda Muslims | Patrika News
रामपुर में ब्रजेश पाठक ने कहा कि भाजपा ही पसमांदा मुस्लिमों की हमदर्द है, बाकी दलों ने उनको ठगा है। पाठक ने पसमांदाओं को बीजेपी के साथ आने की भी अपील की। भाजपा ने ये रणनीति क्यों अपनाई है, इसकी 5 वजहें दिखती हैं।
पहली वजह- पसमांदा की कमजोर स्थिति
पसमांदा मुसलमान यानी मुसलमानों की पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों से आने वाले लोग हैं। मुसलमानों की आर्थिक और समाजी हालात को लेकर तमाम रिपोर्ट्स हैं। सभी रिपोर्ट बताती हैं कि मुस्लिमों की स्थिति बेहद खराब है। इनमें भी पसमांदा की हालत बेहद दयनीय है।
ऐसे में पसमांदा के बीच भाजपा ये संदेश देना चाहती है कि उनकी हालत के लिए कांग्रेस और सपा जैसे दल जिम्मेदार हैं। ऐसे में वो भाजपा से जुड़ें। कमजोर हालत के चलते उनके बीच ये संदेश देना भी थोड़ा आसान काम है।
दूसरी वजह- 2022 के नतीजों ने दी भाजपा को सीख
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों में भाजपा को आसानी से बहुमत हासिल हुआ। इसके बावजूद नतीजे कहीं ना कहीं उसके लिए राहत भरे नहीं रहे।
2022 के चुनाव में सपा को 32% वोट मिला जो किसी भी चुनाव में उसे मिला सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत है। 2007 में 30.43 प्रतिशत वोट हासल कर बसपा ने तो 2012 में सपा ने 29,29% वोट हासिल कर सरकार बना ली थी।
तीसरी वजह- मुस्लिम वोटों का प्रभाव और एकजुटता से डर
2022 में सपा को मिले वोटों के पीछे मुस्लिमों की एकजुटता एक बड़ी वजह मानी गई। नतीजों के बाद आए विश्लेषणों में सामने आया कि मुस्लिमों का वोट बेहद एकमुश्त सपा को गया है।
यूपी में मुस्लिमों की करीब 20 फीसदी आबादी है, ऐसे में भाजपा नहीं चाहती कि इतना बड़ा बैंक एकजुट होकर उसके खिलाफ वोट करे। ऐसे में भाजपा पसमांदा मुसलमानों से कुछ वोट अपनी ओर करना चाहती है।
चौथी वजह- आने वाले चुनाव को लेकर काम
भाजपा ये सम्मेलन आने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए कर रही है। आने वाले चुनाव में अगर सपा का वोटर उसके साथ रहता है और भाजपा का वोटर थोड़ा सा भी खिसकता है तो उसके लिए मुश्किल हो सकती है। ऐसे में दलितों को जोड़ने के लिए कई अभियान चलाने के बाद भाजपा ने अब पसमांदाओं को लिए सम्मेलन शुरू कर दिए हैं।
पांचवी वजह- छवि को बदलने की भी कोशिश
भारतीय जनता पार्टी मुसलमानों को चुनावों में ना के बराबर टिकट देती रही है। संगठन में भी मुस्लिमों को बहुत अहम पद भाजपा में नहीं मिलते हैं। कई बार भाजपा को मुस्लिम विरोधी होने के आरोप का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में चुनावी रणनीति के साथ-साथ भाजपा इन कोशिशों से छवि बदलने का भी काम कर रही है।
रामपुर में ब्रजेश पाठक ने कहा कि भाजपा ही पसमांदा मुस्लिमों की हमदर्द है, बाकी दलों ने उनको ठगा है। पाठक ने पसमांदाओं को बीजेपी के साथ आने की भी अपील की। भाजपा ने ये रणनीति क्यों अपनाई है, इसकी 5 वजहें दिखती हैं।
पहली वजह- पसमांदा की कमजोर स्थिति
पसमांदा मुसलमान यानी मुसलमानों की पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों से आने वाले लोग हैं। मुसलमानों की आर्थिक और समाजी हालात को लेकर तमाम रिपोर्ट्स हैं। सभी रिपोर्ट बताती हैं कि मुस्लिमों की स्थिति बेहद खराब है। इनमें भी पसमांदा की हालत बेहद दयनीय है।
ऐसे में पसमांदा के बीच भाजपा ये संदेश देना चाहती है कि उनकी हालत के लिए कांग्रेस और सपा जैसे दल जिम्मेदार हैं। ऐसे में वो भाजपा से जुड़ें। कमजोर हालत के चलते उनके बीच ये संदेश देना भी थोड़ा आसान काम है।
दूसरी वजह- 2022 के नतीजों ने दी भाजपा को सीख
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों में भाजपा को आसानी से बहुमत हासिल हुआ। इसके बावजूद नतीजे कहीं ना कहीं उसके लिए राहत भरे नहीं रहे।
2022 के चुनाव में सपा को 32% वोट मिला जो किसी भी चुनाव में उसे मिला सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत है। 2007 में 30.43 प्रतिशत वोट हासल कर बसपा ने तो 2012 में सपा ने 29,29% वोट हासिल कर सरकार बना ली थी।
तीसरी वजह- मुस्लिम वोटों का प्रभाव और एकजुटता से डर
2022 में सपा को मिले वोटों के पीछे मुस्लिमों की एकजुटता एक बड़ी वजह मानी गई। नतीजों के बाद आए विश्लेषणों में सामने आया कि मुस्लिमों का वोट बेहद एकमुश्त सपा को गया है।
यूपी में मुस्लिमों की करीब 20 फीसदी आबादी है, ऐसे में भाजपा नहीं चाहती कि इतना बड़ा बैंक एकजुट होकर उसके खिलाफ वोट करे। ऐसे में भाजपा पसमांदा मुसलमानों से कुछ वोट अपनी ओर करना चाहती है।
चौथी वजह- आने वाले चुनाव को लेकर काम
भाजपा ये सम्मेलन आने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए कर रही है। आने वाले चुनाव में अगर सपा का वोटर उसके साथ रहता है और भाजपा का वोटर थोड़ा सा भी खिसकता है तो उसके लिए मुश्किल हो सकती है। ऐसे में दलितों को जोड़ने के लिए कई अभियान चलाने के बाद भाजपा ने अब पसमांदाओं को लिए सम्मेलन शुरू कर दिए हैं।
पांचवी वजह- छवि को बदलने की भी कोशिश
भारतीय जनता पार्टी मुसलमानों को चुनावों में ना के बराबर टिकट देती रही है। संगठन में भी मुस्लिमों को बहुत अहम पद भाजपा में नहीं मिलते हैं। कई बार भाजपा को मुस्लिम विरोधी होने के आरोप का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में चुनावी रणनीति के साथ-साथ भाजपा इन कोशिशों से छवि बदलने का भी काम कर रही है।