भद पिटने के बाद बदल रहा बॉलिवुड, बदले जा रहे हैं स्क्रिप्ट, क्या ये तरकीब बचाएगी इंडस्ट्री की लाज?
बीते साल दिवाली पर कोरोना के बाद खुले सिनेमाघरों में बॉलिवुड (Bollywod) की चुनिंदा फिल्में ही अच्छा प्रदर्शन कर पाईं। इनमें ‘सूर्यवंशी'(Sooryavanshi), ‘गंगूबाई’, ‘द कश्मीर फाइल्स’ और अब ‘भूल भुलैया 2’ को छोड़ दें, तो बाकी ‘अंतिम’, ’83’, ‘बच्चन पांडे’, ‘रनवे 34’, ‘हीरोपंती 2’ और ‘जयेश भाई जोरदार’ जैसी बड़े सितारों की फिल्में भी बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास नहीं कर पाईं। वहीं दूसरी ओर साउथ (Bollywood vs South) की ‘पुष्पा’, ‘आरआरआर’ (RRR), ‘केजीएफ 2’ और हॉलिवुड की ‘स्पाइडरमैन’, ‘डॉक्टर स्ट्रेंज’ जैसी फिल्मों ने कमाई के नए रेकॉर्ड बना दिए।
ऐसे में, फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का कहना है कि बॉलिवुड को अब अपनी स्क्रिप्ट और उन्हें कहने का अंदाज बदलना होगा। खासकर जिस तरह साउथ की फिल्मों में हीरोज को डाउन टु अर्थ और जमीन से जुड़ा दिखाया जा रहा है, उसके बाद बॉलिवुड की फिल्मों में नजर आने वाले सिल्वर स्पून वाले किरदारों पर भी सवाल उठ रहे हैं। वहीं दबी जुबान में कुछ लोगों का यह भी कहना है कि बॉलिवुड में सिर्फ 10-12 मेट्रो शहरों को ध्यान में रखकर फिल्में बनाई जाती हैं, जिसके चलते बाकी टियर 2 और टियर 3 शहरों के दर्शकों को वे फिल्में उतनी पसंद नहीं आती हैं। बहरहाल, अब चर्चा है कि कोरोना के बाद दर्शकों की बदली पसंद को देखकर बॉलिवुडवाले भी अपनी फिल्मों में कुछ बदलाव करने की प्लानिंग कर रहे हैं।
‘दर्शकों को चाहिए बस एंटरटेनमेंट’
बॉलिवुडवालों के छोटे शहरों के दर्शकों के लिए फिल्में नहीं बनाने के बारे में जब हमने प्रोड्यूसर और फिल्म बिजनेस एनालिस्ट गिरीश जौहर से बात की, तो उन्होंने बताया, ‘यह सच है कि बॉलिवुड के लिए कहानियां लिखने वाले बड़े राइटर ज्यादातर बड़े शहरों से जुड़ी कहानियां लिखते रहे हैं। यही वजह है कि छोटे शहरों पर चुनिंदा ही फिल्में आई हैं, लेकिन उन्हें काफी पसंद किया गया। जबकि बड़े निर्माता निर्देशक मेट्रो सिटीज के लिए रोमांटिक फिल्में बना रहे हैं।’
साउथवालों का अपना मार्केट काफी मजबूत
गिरीश जौहर आगे कहते हैं, ‘केजीएफ और आरआरआर जैसी 1000 करोड़ से ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों के डायरेक्टर प्रशांत नील और राजामौली बिलकुल अलग तरह की फिल्में बना रहे हैं। ऐसे में, अब यह देखना है कि इसका बॉलिवुड के बड़े निर्माताओं पर क्या असर होगा। दरअसल, साउथवालों का अपना मार्केट काफी मजबूत है। अपनी मजबूत कंटेंट वाली फिल्मों को वे महज कुछ लाख रुपए डबिंग में खर्च करके उसे हिंदी में भी रिलीज कर रहे हैं, तो उनकी एक मार्केट और तैयार हो रही है। ओटीटी आने के बाद अब दर्शकों के लिए स्टार का उतना महत्व नहीं रहा। उन्हें इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म की भाषा कौन सी है। उन्हें बस एंटरटेनमेंट चाहिए। अगर साउथ वाले एक्शन फिल्मों के बाद वेलकम या थ्री इडियट टाइप की कोई कॉमेडी या दूसरे जॉनर फिल्म ले आते हैं और वो हिंदी में भी चल जाती है, तो फिर इसका बॉलिवुड पर बहुत बड़ा असर पड़ सकता है।’
‘हो रही है बदलाव की चर्चा’
बेशक बड़े बड़े स्टार्स की बड़े बजट वाली बॉलिवुड फिल्मों के बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाने से निश्चित तौर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में चिंता का माहौल है और लोग आने वाली फिल्मों को लेकर तमाम तरह की प्लानिंग कर रहे हैं। इस बारे में गिरीश कहते हैं, ‘बिलकुल इंडस्ट्री में लोग दुविधा में तो हैं, बड़े स्टार्स की इतनी सारी फिल्में नहीं चल पाने के चलते वे सोच रहे हैं कि अब क्या करें। अब तो सिनेमा खुले भी कई महीने हो चुके हैं, तो अभी क्या करें और छह महीने बाद क्या करेंगे।’
इन फिल्मों से उम्मीदें हैं
‘दरअसल, फिल्म बनाने में काफी लंबा समय लगता है। फिल्म की स्क्रिप्ट से लेकर प्री प्रॉडक्शन शूटिंग और पोस्ट प्रॉडक्शन तक साल डेढ़ साल भी लग जाता है। ऐसे में, अगर इंडस्ट्री वाले अभी कोई बदलाव सोचेंगे, तो फिर उसे 2023 या 2024 में धरातल पर ला पाएंगे। वहीं अगर आने दिनों में रिलीज होने वाली फिल्मों की बात करूं, तो मुझे पठान, ब्रह्मास्त्र, फाइटर, लाल सिंह चड्ढा और टाइगर 3 से काफी उम्मीदें हैं। साथ ही रितिक की विक्रम वेधा से भी उम्मीदें हैं। लेकिन इतना तय है कि कोरोना के दौरान दुनियाभर की फिल्में देख चुके हिंदी सिनेमा के दर्शकों की पसंद के बारे में अब पूरे भरोसे से कुछ नहीं कहा जा सकता।’
‘दर्शकों को चाहिए बस एंटरटेनमेंट’
बॉलिवुडवालों के छोटे शहरों के दर्शकों के लिए फिल्में नहीं बनाने के बारे में जब हमने प्रोड्यूसर और फिल्म बिजनेस एनालिस्ट गिरीश जौहर से बात की, तो उन्होंने बताया, ‘यह सच है कि बॉलिवुड के लिए कहानियां लिखने वाले बड़े राइटर ज्यादातर बड़े शहरों से जुड़ी कहानियां लिखते रहे हैं। यही वजह है कि छोटे शहरों पर चुनिंदा ही फिल्में आई हैं, लेकिन उन्हें काफी पसंद किया गया। जबकि बड़े निर्माता निर्देशक मेट्रो सिटीज के लिए रोमांटिक फिल्में बना रहे हैं।’
साउथवालों का अपना मार्केट काफी मजबूत
गिरीश जौहर आगे कहते हैं, ‘केजीएफ और आरआरआर जैसी 1000 करोड़ से ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों के डायरेक्टर प्रशांत नील और राजामौली बिलकुल अलग तरह की फिल्में बना रहे हैं। ऐसे में, अब यह देखना है कि इसका बॉलिवुड के बड़े निर्माताओं पर क्या असर होगा। दरअसल, साउथवालों का अपना मार्केट काफी मजबूत है। अपनी मजबूत कंटेंट वाली फिल्मों को वे महज कुछ लाख रुपए डबिंग में खर्च करके उसे हिंदी में भी रिलीज कर रहे हैं, तो उनकी एक मार्केट और तैयार हो रही है। ओटीटी आने के बाद अब दर्शकों के लिए स्टार का उतना महत्व नहीं रहा। उन्हें इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म की भाषा कौन सी है। उन्हें बस एंटरटेनमेंट चाहिए। अगर साउथ वाले एक्शन फिल्मों के बाद वेलकम या थ्री इडियट टाइप की कोई कॉमेडी या दूसरे जॉनर फिल्म ले आते हैं और वो हिंदी में भी चल जाती है, तो फिर इसका बॉलिवुड पर बहुत बड़ा असर पड़ सकता है।’
‘हो रही है बदलाव की चर्चा’
बेशक बड़े बड़े स्टार्स की बड़े बजट वाली बॉलिवुड फिल्मों के बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाने से निश्चित तौर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में चिंता का माहौल है और लोग आने वाली फिल्मों को लेकर तमाम तरह की प्लानिंग कर रहे हैं। इस बारे में गिरीश कहते हैं, ‘बिलकुल इंडस्ट्री में लोग दुविधा में तो हैं, बड़े स्टार्स की इतनी सारी फिल्में नहीं चल पाने के चलते वे सोच रहे हैं कि अब क्या करें। अब तो सिनेमा खुले भी कई महीने हो चुके हैं, तो अभी क्या करें और छह महीने बाद क्या करेंगे।’
इन फिल्मों से उम्मीदें हैं
‘दरअसल, फिल्म बनाने में काफी लंबा समय लगता है। फिल्म की स्क्रिप्ट से लेकर प्री प्रॉडक्शन शूटिंग और पोस्ट प्रॉडक्शन तक साल डेढ़ साल भी लग जाता है। ऐसे में, अगर इंडस्ट्री वाले अभी कोई बदलाव सोचेंगे, तो फिर उसे 2023 या 2024 में धरातल पर ला पाएंगे। वहीं अगर आने दिनों में रिलीज होने वाली फिल्मों की बात करूं, तो मुझे पठान, ब्रह्मास्त्र, फाइटर, लाल सिंह चड्ढा और टाइगर 3 से काफी उम्मीदें हैं। साथ ही रितिक की विक्रम वेधा से भी उम्मीदें हैं। लेकिन इतना तय है कि कोरोना के दौरान दुनियाभर की फिल्में देख चुके हिंदी सिनेमा के दर्शकों की पसंद के बारे में अब पूरे भरोसे से कुछ नहीं कहा जा सकता।’