ब्लॉगः सॉफ्ट हिंदुत्व वाली गलती दोहरा रही है कांग्रेस

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ब्लॉगः सॉफ्ट हिंदुत्व वाली गलती दोहरा रही है कांग्रेस

यह पांच साल पुरानी बात है। गुजरात में चुनाव हो रहे थे। बीजेपी करीब दो दशक से लगातार राज्य में सत्ता में थी। ‘एंटी इंकम्बेंसी’ फैक्टर उसे परेशान कर रहा था। पाटीदार आंदोलन जोरों पर था। ऊना कांड ने भी उसके पसीने छुड़ा रखे थे। हार्दिक, अल्पेश, जिग्नेश की तिकड़ी को लोग हीरो की तरह देख रहे थे। इन हालात में कांग्रेस ने अपना चुनावी अभियान शुरू किया। लेकिन वह एक ऐसी गलती कर बैठी, जिससे बीजेपी की बांछें खिल गईं। तब राहुल गांधी ने सौराष्ट्र के पांच मंदिरों के दर्शन के साथ कांग्रेस के चुनावी अभियान की शुरुआत की। उनके अभियान का जो खाका खींचा गया, उसमें वह गुजरात में एक के बाद एक मंदिरों के दर्शन करते नजर आए। कोई छोटे-बड़े 20 मंदिरों में उन्होंने शीश नवाया। कांग्रेस ने उनके ‘मंदिर दर्शन’ के जरिए ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की राह पकड़ी, लेकिन यहीं से बीजेपी की चुनाव में वापसी की शुरुआत हो गई। ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ के जरिए कांग्रेस एक तरह से बीजेपी की ‘पिच’ पर खेलने चली गई।

चुनाव खत्म होते-होते जब राहुल सोमनाथ के मंदिर पहुंचे तो ‘हिट विकेट’ हो गए। वहां दर्शन करने जाने वाले गैर-हिंदुओं के लिए अलग रजिस्टर होता है। राहुल का नाम इस रजिस्टर में दर्ज पाया गया। इसके बाद बीजेपी को वह सब कहने का मौका मिल गया जो वह कह नहीं पा रही थी। उधर, राहुल के बचाव में कांग्रेस को यह भी बताना पड़ा कि वह जनेऊधारी हिंदू हैं। लोग तब बीजेपी सरकार से कई मुद्दे पर नाराज थे, लेकिन वे सब इस घटना के कारण पीछे छूट गए। बहस हिंदू और हिंदुत्व पर छिड़ गई। इस तरह से गुजरात का हारा हुआ चुनाव बीजेपी जीत गई।

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फिर वैसी ही गलती
राजनीति में अक्सर ऐसी गलतियों से पार्टियां सबक लेती हैं। वे उसे दोहराती नहीं। लेकिन कांग्रेस ने गुजरात से कोई सबक नहीं लिया। ताजा उदाहरण मध्य प्रदेश का है, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। लगातार 15 साल सत्ता में रही बीजेपी को हराकर कांग्रेस ने 2018 में यहां सत्ता में वापसी तो की, लेकिन उसके पास सत्ता सवा साल ही रही। पार्टी विधायकों के पाला बदलने से बीजेपी को फिर से सरकार बनाने का मौका मिल गया। अगले साल फिर मध्य प्रदेश में चुनाव होने हैं। अभी तक यही लग रहा है कि कांग्रेस यहां भी बीजेपी की ‘पिच’ पर खेलने जा रही है। पिछले हफ्ते प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कमलनाथ ने एक सर्कुलर जारी किया। इसमें पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं को 10 अप्रैल को रामनवमी के मौके पर भगवान राम का कथा वाचन, रामलीला और उनकी पूजा-अर्चना के साथ 16 अप्रैल को हनुमान जयंती पर सुंदरकांड, हनुमान चालीसा के पाठ करने की हिदायत दी गई। जैसे ही कांग्रेस इस नए अजेंडा के साथ आई, मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के खिलाफ ‘एंटी इंकम्बेंसी’ फैक्टर की बात नेपथ्य में चली गई। राज्य में अब बहस इस बात पर छिड़ गई है कि असली हिंदू कौन है? अयोध्या और राम सेतु के उदाहरण दिए जा रहे हैं। बीजेपी की तरफ से बयान आया, ‘जिन लोगों ने भगवान राम और रामसेतु को काल्पनिक माना और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का विरोध किया, वे अब राजनीतिक लाभ के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे। लोग उनके पाखंड को जानते हैं। लोगों को गुमराह नहीं किया जा सकता।’

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कांग्रेस रैली की तस्वीर (फाइल फोटो)

इस मामले में कांग्रेस को अंदर से भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के एक मुस्लिम विधायक आरिफ मसूद ने कहा है कि ‘रामायण, सुंदरकांड और हनुमान चालीसा’ का पाठ करने का निर्देश गलत परंपरा की शुरुआत है। अगर नेतृत्व को लगता है कि यह कदम सही है तो फिर दूसरे धर्म के त्योहारों को मनाने के निर्देश कार्यकर्ताओं को क्यों नहीं दिए गए?

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नाकामी की वजह
गुजरात के बाद भी जिन राज्यों में चुनाव हुए, कांग्रेस का ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ वाला अजेंडा उनमें फेल हो गया। पार्टी के ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की ओर कदम बढ़ाने के पीछे की वजह यह बताई जाती है कि कांग्रेस के अंदर एक ऐसा वर्ग है, जो मानता है कि लोहा को लोहा ही काट सकता है। 2014 में केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस की आंतरिक कमिटी ने हार की जो वजह बताई थी, उसमें कहा गया था कि पार्टी के अल्पसंख्यक वर्ग के प्रति जरूरत से ज्यादा झुकाव ने बहुसंख्यक वर्ग को उससे दूर कर दिया। इसके बाद कांग्रेस के कुछ नेताओं को लगा कि बीजेपी के हिंदुत्व के अजेंडा से मुकाबले के लिए खुद को हिंदू साबित करना होगा लेकिन हो क्या रहा है? हो यह रहा है कि हिंदुत्व की कसौटी पर बीजेपी से ज्यादा कोई पार्टी खरी उतरी नहीं। एक सामान्य धारणा बन गई है कि अगर हिंदुओं की सही मायने में कोई पार्टी हिमायत कर सकती है तो वह बीजेपी ही है। कांग्रेस से चूक यह हो रही है कि हर चुनाव के मौके पर वह खुद ही हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने लग जाती है और बाजी बीजेपी मार ले जाती है। मध्य प्रदेश के ही एक वरिष्ठ नेता ने ‘ऑफ द रेकॉर्ड’ कहा कि ‘अगर 2023 में राज्य विधानसभा का चुनाव हिंदुत्व के अजेंडा पर हुआ तो वह चुनाव बीजेपी ही जीतेगी। पता नहीं यह बात नेतृत्व को क्यों नहीं समझ आती?’



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