ब्रिटेन में पैदा हुआ, 87 साल की उम्र में आया भारत… बिल्कुल कमजोर नहीं पड़ा 93 साल का बुजुर्ग, जानें डीटॉल की पूरी कहानी

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ब्रिटेन में पैदा हुआ, 87 साल की उम्र में आया भारत… बिल्कुल कमजोर नहीं पड़ा 93 साल का बुजुर्ग, जानें डीटॉल की पूरी कहानी

ब्रिटेन में पैदा हुआ, 87 साल की उम्र में आया भारत… बिल्कुल कमजोर नहीं पड़ा 93 साल का बुजुर्ग, जानें डीटॉल की पूरी कहानी


नई दिल्ली: इसकी उम्र 93 साल की है, लेकिन गलती से भी आप इसके एज पर मत जाइएगा। लोग इसकी ताकत का लोहा मानते हैं। घर-घर में इसकी मौजूदगी है। उम्र और अनुभव के नाम पर ये सालों से राज करता आ रहा है। इसकी धमक का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि बाजार में ही नहीं बल्कि संसद तक में इसकी गूंज है। बड़े से बड़ा हो या गरीब तबका, सबकी पहली पसंद यही है। तभी तो दूर-दूर तक कोई इससे टकराने वाला नहीं है। आपके दिमाग में इसकी छवि अगर किसी पहलवान या बॉडी बिल्डर की बन रही हो तो हम साफ कर दें कि ये कोई व्यक्ति नहीं बल्कि आपके घरों के बाथरूम में मौजूद रहने वाला डीटॉल (Dettol)है। संसद में जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस नेताओं को डीटॉल से मुंह धोने की सलाह दी तो हमने सोचा क्यों ना आपको इसकी पूरी कहानी सुनाई जाए। सालों पहले जिसकी शुरूआत ब्रिटेन में हुई थी, आज भारत के हर घर में वो मौजूद है। आइए पढ़ते हैं डिटॉल की कहानी

93 साल पहले सफर की शुरूआत

ब्रिटिश ब्रांड की कंपनी है Reckitt जिसकी नींव 1814 में रखी गई थी, उसने साल 1930 में डीटॉल का निर्माण शुरू किया। Reckitt Benckiser इस कंपनी के मालिक थे। 90 के दशक में सेप्सिस इंफेक्शन के चलते डिलीवरी के दौरान महिलाओं की मौत हो जाती थी। Reckitt Benckiser ने इस समस्या को समझा और डिटॉल का निर्माण किया। साल 1930 में ब्रिटेन में इस कंपनी की फैक्ट्री में डीटॉल बनाने की काम शुरू हुआ। इसके बाद डीटॉल के ट्रायल शुरू हुआ ट्रायल में भी डीटॉल इस्तेमाल करने के कुछ फायदे दिखे। डॉक्टरों ने पाया कि सेप्सिस से होने वाले इंफेक्शन को 50 फीसदी तक रोका जा सकता है। शुरूआत में इसका नाम डीटॉक्स (Dettox) रखा गया। इसमें क्लोरॉक्सीलॉन नाम का कैमिकल होता है, जो सर्जिकल और स्किन इन्फेक्शन को रोकने में कारगर होता है। डीटॉल एंटिसेप्टिक का इस्तेमाल सबसे पहले अस्पतालों में किया जाता था।

मां-बच्चे को मौत से बचाने के लिए इस्तेमाल

मां-बच्चे को मौत से बचाने के लिए इस्तेमाल

शुरूआत में डीटॉल का इस्तेमाल अस्पतालों में होता था। इसका इस्तेमाल डिलीवरी के बाद मां और बच्चे को प्रसव के बाद सेप्सिस इंफेक्शन से बचाने के लिए किया जाता था। सेप्सिस के कारण बैक्टेरियल इंफेक्शन के कारण मां-बच्चे की मौत होने की संभावना बहुत अधिक होती थी। इस इंफेक्शन को रोकने के लिए डीटॉल का इस्तेमाल हो रहा है। डीटॉल के यूज बढ़ने से प्यूर्परल सेप्सिस में 50% की गिरावट आई। बाद में डीटॉक्स का नाम बदलकर डीटॉल (Dettol) कर दिया गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान डीटॉल का अस्पतालों में खूब इस्तेमाल हुआ।

भारत में एंट्री

भारत में एंट्री

साल 1936 में डीटॉल की एंट्री भारत में हुई। शुरूआत में ये मेडिकल स्टोर में बिकती थी, लेकिन धीरे-धीरे ये किराना दुकानों तक पहुंच गया। 1945 में इसकी पहली फैक्ट्री पुणे में लगाई गई। लोग इसका इस्तेमाल फिटकरी के साथ किया करते थे। उस वक्त भारत समेत दुनिया भर के देशों में HIV/AIDS को लेकर जागरूकता अभियान चल रहे थे। सेविंग में इस्तेमाल होने वाले रेजर को धोने के लिए डीटॉल का इस्तेमाल होता था। यही वो दौर था, जब डीटॉल ने घर-घर में अपनी पहचान बना ली। इसकी बिक्री तेजी से बढ़ रही थी। उसने लाइफब्वॉय और लक्स, हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसे मशहूर ब्रांड को पीछे छोड़ दिया। डीटॉल की ग्लोबल सेल में 62 फीसदी की तेजी आई। 1980 में देश में 62 मिलियन लोग डीटॉल का इस्तेमाल करते थे।

2000 में ग्लैमर हुआ डीटॉल

2000-

साल 2000 के शुरूआत के साथ डीटॉल ग्लैमरस होने लगा। इसका इस्तेमाल आफ्टरसेव लोशन, फेश वॉश, हैंडवॉश, फ्लोर क्लीनर जैसे कैटेगरी में होने लगा। कोरोना के दौरान डिटॉल सैनिटाइटर की मांग खूब बढ़ी कभी किसी को चोट लगे तो लोगों ने मुंह से पहला नाम डिटॉल ही निकलता है। लोगों का भरोसा जितना डिटॉल पर हैं उतना बाकी ब्रांड जीत नहीं पाए हैं। आज भी लोग दुकानों पर जब एंटीसेप्टिक खरीदने जाते हैं तो एंटीसेप्टिक नहीं बल्कि डिटॉल दे दो ऐसा बोलते हैं। ये भरोसा डीटॉल ने जीता है। दुनिया के 120 देशों में डीटॉल के प्रोडक्ट बिकते हैं।

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