बिहार में लॉ एंड ऑर्डर को लेकर सरकार और प्रशासन के बदले कोर्ट ज्यादा एक्टिव, जानें पूरा मामला

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बिहार में लॉ एंड ऑर्डर को लेकर सरकार और प्रशासन के बदले कोर्ट ज्यादा एक्टिव, जानें पूरा मामला

बिहार में लॉ एंड ऑर्डर को लेकर सरकार और प्रशासन के बदले कोर्ट ज्यादा एक्टिव, जानें पूरा मामला

पटना : बिहार में सरकार चाहे जिसकी भी रही, हमेशा से लॉ एंड ऑर्डर सवालों के घेरे में रहा। सरकार और प्रशासन से ज्यादा कई बार तो कोर्ट ऐक्टिव दिखता है। हाल के दिनों में प्रशासनिक कामकाज पर टिप्पणी इसकी बानगी है। सासाराम में तो प्रभारी एसपी को पांच घंटे तक न्यायिक हिरासत में रखा गया। मुजफ्फरपुर के एसएसपी को पटना हाईकोर्ट ने तलब कर दिया। हद तो तब हो गई जब झंझारपुर जज पिटाई मामले में मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने डीजीपी, एसपी और आईओ को तलब कर दिया।

हत्या के मामले में पुलिस से ज्यादा कोर्ट ऐक्टिव
क्राइम के मामले में वैसे तो पुलिस को ज्यादा ऐक्टिव रहना चाहिए ताकि लोगों को कोर्ट की चौखट तक कम से कम आना पड़े। मगर ऐसा लग रहा है कि बिहार पुलिस के मुलाजिम अपने काम को ठीक ढंग से नहीं कर रहे। तभी तो 43 साल पुराने हत्या के केस में गिरफ्तारी के लिए पटना हाईकोर्ट को निचली अदालत को निर्देश देना पड़ता है। जब कोर्ट में मामले की सुनवाई होती है तो जिले के सबसे बड़े पुलिस पदाधिकारी बिना किसी एक्शन रिपोर्ट के पहुंच गए। जबकि सबकुछ हाईकोर्ट के निर्देश पर हो रहा था। ये अपने आप में गंभीर सवाल है कि आखिर 1979 के मामले में अब तक किसी की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? ये पूरा मामला रोहतास जिले से जुड़ा हुआ है।
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कोर्ट ने पुलिस अफसर को न्यायिक हिरासत में रखा
दरअसल, सासाराम सिविल कोर्ट में मर्डर केस की सुनवाई चल रही थी। पुलिस अधीक्षक आशीष भारती के छुट्टी पर रहने की वजह से प्रभारी एसपी सरोज कुमार साह कोर्ट में पेश हुए। केस में तामिला प्रतिवेदन (ऐक्शन रिपोर्ट) नहीं होने पर कोर्ट ने उन्हें पांच घंटे तक न्यायिक हिरासत में रखने का आदेश दे दिया। फिर तो सासाराम से पटना तक खलबली मच गई। मर्डर के 43 साल पुराने मामले में कोर्ट ने आरोपी को गिरफ्तार, और गिरफ्तारी नहीं होने पर कुर्की-जब्ती का आदेश दिया था। कार्रवाई की रिपोर्ट पेश करने को कहा था। प्रभारी एसपी बिना किसी रिपोर्ट के कोर्ट में पहुंच गए। ये सब कुछ बताता है कि पुलिस कितने पेशेवर तरीके से काम करती है? अगर पीड़ित परिजन सासाराम से लेकर पटना तक कोर्ट की चक्कर न लगाते तो प्रभारी एसपी कोर्ट में हाजिरी लगाने भी नहीं पहुंचते, न ये मामला सुर्खियों में आता। ये तो महज एक बानगी है।
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14 महीने में कार्रवाई नहीं करनेवाली पुलिस 24 घंटे में कर दी

मुजफ्फरपुर में तो हद ही हो गई। यहां पर लापता एक लड़की को 14 महीने में नहीं ढूंढने वाली पुलिस, कोर्ट का डंडा चलते ही 24 घंटे में खोज डाला। पुलिस से गुहार लगातर थक चुके परिजन अपनी बेटी का पता लगाने के लिए पटना हाईकोर्ट के शरण में आ गए। यहां से एसएसपी जयंतकांत को नोटिस हो गया। इसके बाद खलबली मच गई। पुलिस ने महज 24 घंटे में महाराष्ट्र में ढूंढ लिया। अगर पटना हाईकोर्ट तक मामला नहीं आता तो पता नहीं पीड़ित कितने दिनों तक मुजफ्फरपुर एसएसपी ऑफिस का चक्कर लगाते रहते। अगर कोई सक्षम नहीं है तो पता नहीं पुलिस उसके साथ क्या करती है?
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एफआईआर दर्ज करने के नियम भूल गई बिहार पुलिस?
झंझारपुर जज पिटाई मामले में मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने डीजीपी, एसपी और आईओ को तलब कर डाला। पुलिसवालों के बयान पर एडीजे अविनाश कुमार पर एफआईआर दर्ज कर ली गई है। पटना हाईकोर्ट ने पूछा कि आखिर किस कानून के तहत जज के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई? सरकारी वकील इस सवाल का जवाब ही नहीं दे सके। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट समेत देश के कई हाईकोर्ट ये आदेश दे चुके हैं कि किसी न्यायिक पदाधिकारी के खिलाफ तभी कोई एफआईआर दर्ज की जा सकती है, जब उसकी मंजूरी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दें। झंझारपुर के एडीजे अविनाश कुमार की पिटाई के मामले एफआईआर को लेकर इस नियम का पालन नहीं किया गया।

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