बिहार बीजेपी में चौधरी के सम्राट बनने की कहानी कुछ अलग सी है? जानिए अंदर की बात

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बिहार बीजेपी में चौधरी के सम्राट बनने की कहानी कुछ अलग सी है? जानिए अंदर की बात

बिहार बीजेपी में चौधरी के सम्राट बनने की कहानी कुछ अलग सी है? जानिए अंदर की बात


ओमप्रकाश अश्क, पटना: लालू यादव के परिवार और उनकी पार्टी को लंबे समय तक बिहार की सत्ता से बाहर रखने का श्रेय सर्वाधिक किसी नेता को जाता है तो वे हैं बीजेपी के राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी। जब से जेडीयू नेता नीतीश ने बिहार के सीएम की कुर्सी संभाली, तब से तकरीबन 15 साल तक सुशील मोदी उनके साथ रहे। इस दौरान उनके हमले के केंद्र मे लालू यादव का परिवार ही रहा। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें सभी दलों से अधिक रहने का रिकार्ड भी बना। नीतीश और सुशील मोदी की जुगलबंदी जगजाहिर है। साल 2020 के पहले नीतीश मंत्रिमंडल में लगातार सुशील मोदी डेप्युटी सीएम यानी नंबर दो के ओहदे पर रहे। 2020 में एनडीए की सरकार तो बन गयी, लेकिन यह सुशील मोदी के लिए सुखद नहीं रहा। उनके वनवास का आरंभ यहीं से हो गया। उन्हें बिहार की राजनीति से बीजेपी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। राज्यसभा का सदस्य बना दिये गये।

सुशील मोदी पर बीजेपी नेतृत्व को भरोसा नहीं !

लालू और नीतीश की तरह सुशील मोदी भी जय प्रकाश नारायण के आंदोलन की उपज हैं। इसके बावजूद संसदीय राजनीति में आने पर लालू से उनकी कभी नहीं पटी। लालू ने समाजवादी रास्ते का रुख किया तो सुशील मोदी ने बीजेपी की राह चुनी। लालू प्रसाद से इस मायने में सुशील मोदी राजनीतिक जीवन में अलग दिखते हैं कि उन पर भ्रष्टाचार का कभी कोई आरोप नहीं लगा। दूसरी ओर लालू यादव और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे। चारा घोटाले में तो लालू को सजा के अंजाम तक पहुंचना पड़ा और उनके परिवार के सदस्य आज सीबीआई, ईडी या आईटी के जिन मामलों का सामना कर रहे हैं, उसके पीछे सुशील मोदी की ही भूमिका है। लेकिन बीजेपी ने सुशील मोदी पर भरोसा नहीं किया। उन्हें बिहार की राजनीति से बेदखल कर दिया गया। इसके बावजूद उन्होंने लगातार लालू परिवार पर हमला किया। भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगाये। यहां तक कि बीजेपी से छिटक कर 2015 में नीतीश ने जब लालू की पार्टी आरजेडी से हाथ मिला लिया तो सुशील मोदी के आरोपों पर ही सेंट्रल एजेंसियों ने तेजस्वी के खिलाफ कार्वाई शुरू की। इसका नतीजा यह हुआ कि लालू की पार्टी आरजेडी से नीतीश ने नाता तोड़ लिया और फिर बीजेपी के साथ मिल कर एनडीए की सरकार बन गयी। यह काम भी आनन-फानन में अगर हुआ तो इसका श्रेय सुशील मोदी को ही जाता है। उन्होंने नीतीश से अपने संबंधों-संपर्कों के जरिये उन्हें फिर बीजेपी के साथ आने को राजी कर लिया। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की हरी झंडी मिलते ही बिहार में महागठबंधन की जगह एनडीए की सरकार बन गयी।

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महागठबंधन से अलग होने का आधार बनाया

सुशील मोदी ने नीतीश को महागठबंधन से अलग करने के लिए 2017 में 40 प्रेस कान्फ्रेंस किये। हर प्रेस कान्फ्रेंस में वे लालू परिवार के लोगों के भ्रष्टाचार के मामले उजागर करते। उन्होंने लालू परिवार की अवैध संपत्ति का भांडा फोड़ा। हालांकि लालू परिवार से खार खाये शरद यादव (स्वर्गीय) और जेडीयू के अभी राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने प्रधानमंत्री कार्यालय को अवैध संपत्ति की जानकारी दी थी, लेकिन जांच नहीं हो पायी थी। उन्हीं कागजात के हवाले से सुशील मोदी ने सारे खुलासे किये। आज उन्हीं खुलासों के आधार पर लालू परिवार के उदीयमान तेजस्वी यादव समेत चार लोग जांच का सामना कर रहे हैं। सुशील मोदी ने लालू परिवारों के घोटालों और अवैध संपत्ति अर्जित करने को लेकर एक किताब- लालू लीला- लिखी है, जो हाल के दिनों में काफी चर्चा में रही।

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लैंड फार जॉब मामले में फंसा है लालू परिवार

सुशील मोदी ने लालू के रेल मंत्री रहते रेलवे में नौकरी के बदले जमीन का मामला भी उजागर किया था। तेजस्वी यादव के भ्रष्टाचार के बारे में उन्होंने डाक्यूमेंट के साथ अपनी किताब में चर्चा की है। उन्होंने बताया है कि जिन दो कंपनियों के मालिक तेजस्वी यादव हैं, उसका दफ्तर उसी भवन में है, जिसमें कभी तेजस्वी यादव रहते थे। नौकरी के बदले ली गयी जमीन पर वह आफिस बना है। आईआरसीटीसी घोटाले को भी सुशील मोदी ने ही उजागर किया था। उन्होंने अपनी किताब- लालू लीला की प्रतियां सेंट्रल जांच एजेंसियों को भी भेजी है। ईडी और सीबीआई ने जांच भी शुरू कर दी है।

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फिर भी वाजिब पुरस्कार नहीं मिला मोदी को

बिहार में बीजेपी की जड़ें जमाने और पुख्ता करने में सुशील मोदी की भूमिका को खारिज नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद बीजेपी ने उन्हें उनके कामों का वाजिब पुरस्कार नहीं दिया। पहले उन्हें डिप्टी सीएम की कुर्सी से बेदखल किया गया, बाद में बिहार की राजनीति से निकाल कर केंद्र की राजनीति में डाल दिया गया। संगठन के लिए पार्टी उनका बेहतर इस्तेमाल कर सकती थी। इसलिए कि लालू विरोध के कारण उन्होंने न सिर्फ अपनी, बल्कि पार्टी की पहचान भी बना ली थी। बहरहाल बीजेपी ने सोच-समझ कर ही बिहार में संगठन की कमान सुशील मोदी जैसे पुराने नेता के बजाय चौधरी को ‘सम्राट’ की जिम्मेवारी दी होगी। इतना ही कहा जा सकता है कि मोदी की कवायद उनके किसी काम नहीं आयी। डेप्युटी सीएम की कुर्सी गयी। केंद्र में मंत्री नहीं बन सके। और, अब संगठन के लिए भी पार्टी ने उन्हें उपयुक्त नहीं माना।

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