बिहार के वो चार अयोग्य नेता जो राहुल गांधी से पहले अयोग्य ठहराये गए?

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बिहार के वो चार अयोग्य नेता जो राहुल गांधी से पहले अयोग्य ठहराये गए?

बिहार के वो चार अयोग्य नेता जो राहुल गांधी से पहले अयोग्य ठहराये गए?


पटना: आपराधिक मानहानि के एक मामले में सूरत की एक अदालत द्वारा दोषी ठहराये जाने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य करार दिया गया है। उनका नाम इस तरह की कार्रवाई का सामना कर चुके जनप्रतिनिधियों की सूची में शामिल हो गया है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार, यदि किसी जनप्रतिनिधि को किसी मामले में दो साल या उससे अधिक कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो वह दोषी करार दिये जाने की तारीख से सदन की सदस्यता से अयोग्य हो जाएगा। सजा की अवधि पूरी करने के बाद छह और साल के लिए अयोग्य रहेगा। हम आपको बिहार के चार जनप्रतिनिधियों की सूची बता रहे हैं। जिन्हें आपराधिक मामलों में दोषी ठहराये जाने एवं सजा सुनाये जाने के बाद संसद और विधानसभाओं की सदस्यता छोड़नी पड़ी।

राजद सुप्रीमो भी हैं अयोग्य

बिहार में सबसे पहले बात कर लेते हैं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की। लालू यादव को चारा घोटाले में 2013 में सजा हुई। उसके बाद वे चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दे दिये गए। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष को सितंबर 2013 में चारा घोटाला के एक मामले में दोषी करार दिये जाने के बाद लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किया गया था। उस समय वह बिहार के सारण से सांसद थे। लालू यादव संसदीय राजनीति में चुनाव लड़ने के काबिल नहीं रहे। उन्हें सीधे घर बैठना पड़ा। हालांकि लालू यादव ने चुनाव प्रचार किया। उसके अलावा वे अन्य पार्टियों का समर्थन करते रहे। आपको बता दें कि लालू यादव चारा घोटाले में दोषी करार दिये जाने के बाद कई बार जेल जा चुके हैं। फिलहाल, लालू यादव पर आईआरसीटीसी घोटाला मामले की जांच चल रही है। जानकार कहते हैं कि इस मामले में भी उन्हें सजा जरूर मिलेगी।

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अनिल सहनी की चोरी पकड़ी गई थी

राजद विधायक अनिल सहनी को धोखाधड़ी के एक मामले में तीन साल कारावास की सजा सुनाये जाने के बाद अक्टूबर 2022 में बिहार विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किया गया था। आपको बता दें कि कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र से आरजेडी विधायक पर राज्यसभा सांसद रहने के दौरान एलटीसी घोटाले का आरोप लगा था। इस आरोप पर सीबीआई जांच कर रही थी। अनिल सहनी जब राज्यसभा सांसद बने थे तो बिना यात्रा के लाखों रुपये का घोटाला हुआ था। उस मामले में सीबीआई ने 31 अक्टूबर 2013 को केस दर्ज किया था। इसमें पता चला था कि सहनी ने बिना यात्रा किये तीन लाख 25 हजार रुपये की अवैध निकासी कर ली। इस मामले में अनिल सहनी धरे गए। उन पर लगा आरोप सत्य पाया गया था। अनिल सहनी उत्तर बिहार के कद्दावर निषाद समाज के नेता महेंद्र सहनी के बेटे हैं। वो खुद भी राज्यसभा सांसद थे। उनकी मृत्यु के बाद इन्हें राज्यसभा सांसद बनाया गया था।

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अनंत सिंह भी अयोग्य

राजद विधायक अनंत सिंह की विधानसभा सदस्यता जुलाई 2022 में चली गयी थी। उन्हें उनके आवास से हथियार और गोला-बारूद जब्त होने से जुड़े मामले में दोषी करार दिया गया था। सिंह पटना जिले की मोकामा सीट से विधायक थे। सजा सुनाये जाने के बाद अनंत सिंह की सदस्यता खत्म कर दी गई थी। बिहार असेंबली ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी थी। एमपी-एमएलए कोर्ट में अनंत सिंह को 10 साल की सजा (Anant Singh Disqualified Bihar Assembly Membership) सुनाई गई थी। उनके घर से एके 47 और हैंड ग्रेनेड मिलने के बाद कार्रवाई की गई थी। 14 जून को स्पेशल कोर्ट में सुनवाई हुई थी जिसमें उन्हें दोषी पाया गया था। इसके बाद कोर्ट ने 21 जून को 10 साल की सजा सुनाई। अनंत सिंह अभी बेऊर जेल में बंद हैं। अनंत सिंह के मामले में एमपी एमएलए कोर्ट ने उनको सजा सुनाई है। उन पर पुलिस ने आरोप साबित करने के लिए कोर्ट में 13 गवाहों को पेश किया था। वहीं बचाव पक्ष की ओर से 34 गवाहों का बयान दर्ज कराया गया था। फिर कोर्ट ने दोषी पाते हुए 10 साल की सजा सुनाई।

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जगदीश शर्मा की गई सदस्यता

बिहार के जहानाबाद सीट से जद(यू) के लोकसभा सांसद शर्मा को चारा घोटाला मामले में सितंबर 2013 में चार वर्ष कारावास की सजा सुनाई गई थी और इसके बाद उन्हें लोकसभा की सदस्यता के अयोग्य करार दिया गया था। आपको बता दें कि रांची की विशेष अदालत ने चारा घोटाले के मामले में लालू को पांच साल की सजा सुनाई थी। जगदीश शर्मा को चार साल जेल की सजा सुनाई गई थी। लालू प्रसाद और अन्य 44 अन्य लोगों को चाइबासा कोषागार से 90 के दशक में 37.7 करोड़ रुपए निकालने के मामले में अभियुक्त बनाया गया था। चाइबासा तब अविभाजित बिहार का हिस्सा था। चाइबासा कोषागार से कथित फर्जी बिल देकर 37.7 करोड़ रुपए निकालने का ये मामला जब सामने आया। इस मामले में शिवानंद तिवारी, सरयू रॉय, राजीव रंजन सिंह और रविशंकर प्रसाद ने पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। पटना हाईकोर्ट ने 11 मार्च 1996 को 950 करोड़ रुपए के कथित चारा घोटाले के मामलों की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया था।
इनपुट-एजेंसी

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