बदल गए राजस्थान भाजपा के समीकरण, ये नए संकेत तो नहीं …. ? | BJP’s equations have changed, isn’t this a new sign? | Patrika News

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बदल गए राजस्थान भाजपा के समीकरण, ये नए संकेत तो नहीं …. ? | BJP’s equations have changed, isn’t this a new sign? | Patrika News

बदल गए राजस्थान भाजपा के समीकरण, ये नए संकेत तो नहीं …. ? | BJP’s equations have changed, isn’t this a new sign? | News 4 Social



जयपुर। विधानसभा चुनाव में मात्र आठ माह बचे हैं। चुनावी साल में भाजपा ने बड़ा फैसला करते हुए प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को उनके पद से हटा दिया है और दो बार के सांसद सी पी जोशी को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी है। इस फैसले से चुनावी साल में जातिगत समीकरणों और युवा वोटरों को साधने की कोशिश तो हुई ही है। इस फैसले को पार्टी में चल रही गुटबाजी को खत्म करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है। साथ ही पार्टी आलाकमान ने यह भी संदेश दे दिया है कि भाजपा में वही होगा, जो ऊपर से तय होगा। किसी के चाहने से पार्टी कोई पद नहीं देगी।

सतीश पूनिया का निर्वाचित कार्यकाल दिसम्बर 2022 में ही पूरा हो चुका था। पार्टी ने जे पी नड्डा के कार्यकाल को आगे बढ़ाने का निर्णय किया था। उसके बाद ऐसा माना जा रहा था कि जहां-जहां चुनाव हैं, वहां प्रदेश अध्यक्ष नहीं बदलेंगे। पार्टी के नेता ऐसे संकेत भी लगातार दे रहे थे, लेकिन प्रदेश भाजपा में गुटबाजी लगातार बढ़ती जा रही थी।

गुटबाजी बढ़ती देख एकाएक ही पार्टी ने नए अध्यक्ष की नियुक्ति का निर्णय कर लिया और सी पी जोशी के रूप में निर्गुट नेता को पार्टी की कमान सौंप दी। सी पी जोशी 2014 में पहली बार भाजपा सांसद बने थे और 2019 में दूसरी बार सांसद चुने गए। वे 9 साल से सांसद हैं और वर्तमान में पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष भी हैं। गुटबाजी से तो उनकी दूरी रही। वे किसी तरह की कंट्रोवर्सी में भी नहीं फंसे। एक विधानसभा उप चुनाव में कुछ बातें उनके विरोध में भी उठी, लेकिन वे भी धीरे-धीरे गौण हो गईं।

संघ की पसंद से बने थे पूनिया अध्यक्ष

वर्ष 2019 में सतीश पूनिया को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। ऐसा माना जाता है कि उनको अध्यक्ष बनाने में सबसे बड़ी भूमिका राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की रही। संघ के राजस्थान पदा धिकारियों ने हमेशा पूनिया का सहयोग किया।

पांच बिंदु जो पूनिया के हटने के कारण बने

– पार्टी को राजस्थान में जातीय संतुलन बैठाना था।

– पूनिया के समर्थक लगातार उनको सीएम प्रोजेक्ट कर रहे थे, आलाकमान को यह ठीक नहीं लगा।

– भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे, संगठन महामंत्री चन्द्रशेखर, केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत सहित कई नेताओं के साथ नहीं बैठा पा रहे थे तालमेल।

– संगठन को मजबूत करनेे के दावे तो खूब किए, लेकिन कई प्रदर्शनों में भीड़ उम्मीद के मुताबिक नहीं जुट सकी।

– किरोड़ीलाल मीणा मामले का विवाद दिल्ली तक पहुंचा। इस मामले में भी कई नेताओं ने दिया था नेगेटिव फीडबैक।

तो यूं हुई सी पी जोशी की ताजपोशी

– पार्टी को चार साल से अच्छे ब्राह्मण चेहरे की तलाश थी, यह तलाश सी पी जोशी के रूप में पूरी हुई।

– प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में सांसद राजेन्द्र गहलोत, सी पी जोशी के नाम सबसे आगे थे, युवा होने से जोशी के पक्ष में पार्टी का निर्णय हुआ।

– केन्द्र सरकार में राजस्थान से राजपूत, जाट, एससी समाज का प्रतिनिधित्व है, लेकिन ब्राह्मण समाज का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था। जातिगत संतूलन साधने की योजना में राजेन्द्र गहलोत पर सी पी जोशी भारी पड़े।

– सी पी जोशी पर किसी गुट का ठप्पा नहीं है, वे सभी से संवाद रखते हैं।

-गुलाब चंद कटारिया को राज्यपाल बनाए जाने से मेवाड़ में नेता की तलाश हो रही थी, जोशी को आगे बढ़ा कटारिया की कमी पूरी करने की कोशिश हुई है।

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