बड़ी दिलचस्प है आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बंका बैगा की कहानी | Banka Baiga, a tribal freedom fighter of Sidhi | Patrika News

207
बड़ी दिलचस्प है आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बंका बैगा की कहानी | Banka Baiga, a tribal freedom fighter of Sidhi | Patrika News


बड़ी दिलचस्प है आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बंका बैगा की कहानी | Banka Baiga, a tribal freedom fighter of Sidhi | Patrika News

यह पूरी कहानी
इतिहासकारों की मानें तो गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त कराने के लिए 1960 में हुए आंदोलन में जिले से एक जत्था गया था। इसमें सीधी से चंद्रप्रताप तिवारी, बांकेलाल उर्फ बंका बैगा, रामभजन बैगा, नीलकंठ तिवारी तथा रीवा से जमुना प्रसाद शास्त्री व जगदीश चंद्र जोशी गए थे। जब आंदोलन शुरू हुआ और पुर्तगाली गोली चलाने लगे तो आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं ने सभी से जमीन पर लेटने के लिए कहा। सभी लेट गए पर बंका बैगा समझ नहीं पाए। इससे खड़े ही रह गए। उसी दौरान उनके जंघा में गोली के छर्रे लग गए और भाग नहीं पाए। पुर्तगालियों ने उन्हें खूब मारा, जिससे रीढ़ की हड्डी टूट गई थी। बंका बैगा के बाल बड़े थे, इसलिए किसी पुर्तगाली ने कहा कि लगता है साधू है और फिर एक गड्ढेे में कीचड़ में ही छोड़कर चले गए। इसके बाद भारतीय सैनिकों ने उपचार कराया। जब ठीक हो गए तो गोवा से पैदल ही चल दिए। कुछ दिन चलते फिर कहीं मजदूरी करते। फिर चलते। ऐसा करते 4 महीने में घर पहुंचे थे।

Patrika .com/upload/2022/08/15/bank_baiga_freedam_fighter_7713692-m.jpg”>
IMAGE CREDIT: Patrika
महुआ और कुठिला आंदोलन रहे खास
बंका बैगा एक क्रांतिकारी आदिवासी नेता थे। उन्होंने गरीब वर्ग व समाज के लिए कई आंदोलन का नेतृत्व किया। 1951 में महुआ आंदोलन किया था। बताते हैं कि महुआ आदिवासी की प्रमुख खाद्य सामग्री थी, जिसे वह जंगल से बीनते थे, लेकिन महुआ का आधा हिस्सा पवाईदार ले लिया करते थे। इसके विरोध में उन्होंने यह आंदोलन किया था। 1966 में अकाल पड़ा तो गरीब भूख से मर रहे थे। तब उनके द्वारा कुठिला फोड़ आंदोलन शुरू किया गया। इसमें बंका बैगा अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ पवाईदारों के घरों में घुसते थे और उनके यहां अनाज रखने का मिट्टी का बना कुठिला फोडकऱ आवश्यकता के अनुरूप अनाज उठा ले जाते थे। इस आंदोलन के कारण उन्हें जेल यात्रा भी करनी पड़ी थी। 1985 में बांध फोड़ आंदोलन भी किया था। इसमें में उन्होंने बांध निर्माण का विरोध किया था।

सरपंच से लेकर विधानसभा तक का लड़ा था चुनाव
पंचायती राज का गठन हुआ और सरपंचों का चुनाव शुरू हुआ तो बंका बैगा ने सरपंच का चुनाव लड़ा। इसमें वे निर्वाचित हुए। वर्ष 1972-73 में गोपद बनास विधानसभा से चुनाव लड़ा था, जिसमें पराजय का सामना करना पड़ा था।

सामाजिक योगदान भी कम नहीं
वर्ष 1952 में खोह गांव का नाम बदलकर गांधीग्राम रखा। गांधीग्राम में कस्तूरबा बाई आदिवासी कन्या आश्रम की स्थापना कराई। वर्ष 1958 में सामूहिक कृषि समिति का गठन कराया। इसके अंतर्गत लगभग 58 एकड़ जमीन और 60 पेड़ महुआ का पेड़ आज भी है। भू-बंटन समिति के सदस्य भी रहे, जिसके अध्यक्ष अर्जुन सिंह थे। बांकीडोल में 200 एकड़ जमीन में 500 आदिवासियों को बसाया और वन विभाग से पट्टा भी दिलवाया था। इसके लिए 8 दिन जेल में भी रहे।





Source link