फॉर्म में हैं नीरज, क्या एक और गोल्ड मिलेगा?

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फॉर्म में हैं नीरज, क्या एक और गोल्ड मिलेगा?


फॉर्म में हैं नीरज, क्या एक और गोल्ड मिलेगा?

मनोज चतुर्वेदी
नीरज चोपड़ा आजकल भारतीय खेलों की सबसे चर्चित शख्सियत हैं। यह मुकाम उन्हें तोक्यो ओलिंपिक में जैवलिन थ्रो का स्वर्ण पदक जीतने से मिला है। इसके बाद पहली बार उनकी कड़ी परीक्षा होने जा रही है। यह परीक्षा विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में होनी है। यह ऐसी चैंपियनशिप है, जिसमें भारत का रेकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है। इसमें हमारे पास लॉन्ग जंपर अंजू बॉबी जॉर्ज का एकमात्र कांस्य पदक है। इसे उन्होंने 2003 की पेरिस चैंपियनशिप में जीता था, जिसे अब करीब 19 साल हो गए हैं। लेकिन नीरज ने ओलिंपिक में जो जज्बा दिखाया था, उसे दोहरा सकें तो वह जैवलिन स्पर्धा में ओलिंपिक और विश्व चैंपियनशिप, दोनों में स्वर्ण पदक जीतने वाले 14 सालों में पहले खिलाड़ी बन जाएंगे। इससे पहले नॉर्वे के आंद्रियास थोरनिल्डसन ने 2008-09 में यह गौरव हासिल किया था।

कैसा होगा पदक का रंग
भारतीय एथलेटिक्स के पोस्टर बॉय नीरज चोपड़ा ने पिछले साल दिसंबर से इस चैंपियनशिप की तैयारियां शुरू कर दी थीं। उनके हालिया प्रदर्शनों को देखकर लगता है कि वह इस चैंपियनशिप में भी मेडल जीत सकते हैं। अब इसका रंग क्या होगा, यह कहना मुश्किल है। वैसे इस चैंपियनशिप की तैयारी के लिए उन्होंने तीन चैंपियनशिप्स में भाग लिया और इनमें से दो में अपना पिछला रेकॉर्ड तोड़ने में कामयाब रहे। पिछले एक साल के उनके प्रदर्शन में कई खास बिंदु नजर आते हैं।

पहला, उन्होंने पावो नूरमी खेलों में 89.30 मीटर की थ्रो से सीजन की शुरुआत की और इसमें अपने राष्ट्रीय रेकॉर्ड को बेहतर किया।

दूसरा, इस साल जून में फिनलैंड में एक चैंपियनशिप में उन्होंने 86.89 मीटर दूर जैवलिन फेंका। यह प्रदर्शन खास इसलिए माना गया कि रनअप पर बारिश की वजह से फिसलन हो गई थी। इन मुश्किल हालात में यह प्रदर्शन मायने रखता है।

तीसरा, स्टॉकहोम डायमंड लीग में भले ही वह उपविजेता रहे, लेकिन 89.94 मीटर का अपना बेस्ट परफॉर्मेंस देकर यह अहसास जरूर करा दिया कि विश्व चैंपियनशिप के लिए उनके इरादे बुलंद हैं।

EDIT LEKH NEERAJ -

ओलंपिक गोल्ड की खुशीः तोक्यो में गोल्डेन परफॉर्मेंस देने के बाद नीरज चोपड़ा (फाइल फोटो)

नीरज चोपड़ा का लक्ष्य अमेरिका के यूजीन में 21 से 23 जुलाई के बीच होने वाली जैवलिन विश्व चैंपियनशिप स्पर्धा के दौरान 90 मीटर के बैरियर को पार करना है। इसके लिए उन्हें डायमंड लीग में किए प्रदर्शन में मात्र छह सेंटीमीटर का सुधार करना है। लेकिन नीरज कहते हैं कि वह 90 मीटर बैरियर का दबाव लिए बगैर अपना बेस्ट देने पर फोकस करेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि ओलिंपिक और विश्व चैंपियनशिप जैसी अहम प्रतियोगिताओं में भाग लेते समय खिलाड़ियों पर दबाव होता ही है। जो एथलीट उस दौरान अपनी धड़कनों पर काबू रख पाता है, सेहरा उसी के सिर बंधता है। कुछ का प्रदर्शन इस दबाव में बिखर भी जाता है। नीरज चोपड़ा को आम तौर पर मन के अंदर का डर निकालने के लिए भावनाओं पर काबू रखने वाले के रूप में जाना जाता है। लेकिन ओलिंपिक चैंपियन होने की वजह से उन पर सवा अरब देशवासियों की उम्मीदों का अतिरिक्त दबाव होगा। इन खेलों में वह दबाव और बाधाओं का किस तरह से सामना करते हैं, इसी से कामयाबी तय होगी।

एक, नीरज चोपड़ा के खिताब की राह की सबसे बड़ी बाधा हैं 2019 चैंपियनशिप के विजेता एंडरसन पीटर्स, जो इस सीजन में 93.07 मीटर दूर भाला फेंक चुके हैं। वह यदि अपना यह प्रदर्शन दोहरा दें तो गोल्ड मेडल उनके ही नाम होगा। लेकिन इस तरह की चैंपियनशिप में अपना बेस्ट देना आसान नहीं होता। यही वजह है कि नीरज उनको पावो नूरमी खेलों और कुओर्तानो खेलों में पछाड़ भी चुके हैं।

दो, ओलिंपिक के रजत पदक विजेता जाकूब वाल्देच (90.88 मीटर), फिनलैंड के ओलिवर हीलेंडर (89.83 मीटर) और त्रिनिडाड के केशोर्न वाल्कट से भी नीरज को तगड़ी चुनौती मिल सकती है।

भारतीय खिलाड़ियों को भले ही कम सफलताएं मिलती हैं पर जब भी मिलती हैं, तो जश्न जोरदार ढंग से मनाया जाता है। नीरज के ओलिंपिक स्वर्ण जीतने पर भी देशभर में जश्न का माहौल बन गया और उन्हें सम्मानित करने का सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा। नतीजा यह कि इस दौरान नीरज चोपड़ा का वजन 12 किलो बढ़ गया। इसलिए जब अन्होंने अमेरिका के चुला विस्टा में जब प्रशिक्षण चालू किया तो पहला टारगेट 12 किलो वजन कम करना ही रहा।

आखिरी थ्रो में भी अच्छे
नीरज के बारे में माना जाता है कि वह शुरुआती थ्रो में ही अपना बेस्ट देने का प्रयास करते हैं। उन्होंने तोक्यो ओलिंपिक में भी इसी तरह 87.53 मीटर की थ्रो करके स्वर्ण पदक जीता था। हालांकि खुद नीरज इससे इत्तफाक नहीं रखते। वह कहते हैं- यह सही है, मैं पहली और दूसरी थ्रो में अपना बेस्ट देने का प्रयास करता हूं। लेकिन यह प्रयास आगे की थ्रो में भी जारी रखना जरूरी होता है, क्योंकि कई बार फैसला आखिरी थ्रो पर भी निर्भर हो जाता है। यह बात उनके 2017 की एशियाई चैंपियनशिप में आखिरी प्रयास में 85.23 मीटर की थ्रो से स्वर्ण पदक जीतने से भी साबित होती है। इसी तरह उन्होंने पिछले साल इंडियन ग्रां प्री में आखिरी थ्रो पर 88.07 मीटर का राष्ट्रीय रेकॉर्ड बनाया था।

इसमें कोई दो राय नहीं कि नीरज चोपड़ा के ऊपर भारतवासियों की उम्मीदों का बोझ होगा। पर यह भी उतना ही सच है कि हर भारतवासी की दुआएं भी उनके साथ होंगी। ये दुआएं उन्हें जरूर तोक्यो की तरह सफल प्रदर्शन करने के लिए जरूर प्रेरित करेंगी।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





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