फरीदाबाद: पंचायत चुनाव में लोगों ने की जमकर वोटिंग, लोकसभा और विधानसभा पर भी भारी पड़ी ‘अपनी सरकार’

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फरीदाबाद: पंचायत चुनाव में लोगों ने की जमकर वोटिंग, लोकसभा और विधानसभा पर भी भारी पड़ी ‘अपनी सरकार’

फरीदाबाद: पंचायत चुनाव में लोगों ने की जमकर वोटिंग, लोकसभा और विधानसभा पर भी भारी पड़ी ‘अपनी सरकार’

फरीदाबाद : लोग गांव की सरकार (पंचायत चुनाव) चुनने में भारी उत्साह दिखाते हैं। बड़ी संख्या में वोटर घर से बूथ तक जाकर अपने उम्मीदवार चुनते हैं। मंगलवार को संपन्न पंचायत चुनावों में ऐसा ही ट्रेंड दिखा। फरीदाबाद में 74.5 प्रतिशत वोटिंग हुई। ऐसा कर लोगों ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में हुई वोटिंग प्रतिशत को पीछे छोड़ दिया। इस पर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि लोकसभा व विधानसभा चुनावों में लोगों का मोह भंग होने का बड़ा कारण खुद राजनेता ही हैं। ज्यादातर मामलों में वे झूठे वादे कर चुनाव जीतने के बाद समस्याओं की ओर नहीं देखते। स्थानीय चुनाव में लोग प्रत्याशियों से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं जो उन्हें मतदान स्थल तक खींच कर ले जाते हैं।

लोकसभा और विस चुनावों में ठंडा रिस्पॉन्स
मंगलवार को जिला परिषद और ब्लॉक समिति के लिए मतदान हुआ था। देर रात मतों का प्रतिशत अपडेट होता रहा। फरीदाबाद में कुल 74.5 प्रतिशत मतदान हुआ। पलवल में 73.9 प्रतिशत वोटिंग हुई। इसके अलावा फतेहाबाद में 77.6 और हिसार में 72.4 प्रतिशत मतदान हुआ। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि कल होने वाले चुनाव में वोटिंग का प्रतिशत और बढ़ेगा। लोगों का यह रुझान लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मतदान से काफी अधिक है। 2019 में हुए लोकसभा के चुनावों में फरीदाबाद लोकसभा सीट पर 64.46 प्रतिशत मतदान ही हुआ था। लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे। तब मतदान का आंकड़ा 70 प्रतिशत को नहीं छू सका। उस समय विधानसभा वाइज देखें तो फरीदाबाद विस क्षेत्र में मात्र 49.35 प्रतिशत ही मतदान हुआ था। इसी तरह बड़खल में 49.15 प्रतिशत वोटिंग हुई। हालांकि हथीन और पृथला में 76 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ। राजनीतिक जानकारों का तर्क है कि पंचायत के चुनाव में प्रत्याशी लोगों से सीधे जुड़े होते हैं।

बड़े चेहरों से खुद को नहीं जोड़ पाते लोग
पूर्व विधायक एडवोकेट योगेश शर्मा कहते हैं कि झूठे वादे कर चुनाव लड़ने के कारण लोगों का इनसे जुड़ाव खत्म हो रहा है। जीत के बाद जब लोग उनके पास जाते हैं तो रिस्पॉन्स बेहद ठंडा होता है। भ्रष्टाचार और मूलभूत समस्याओं से परेशान लोगों का ऐसे नेताओं से मोहभंग हो रहा है, जो चुनाव के दिन वोटिंग के रूप में दिखता है। सांसद और विधायक के चुनाव में पार्टियां बड़े चेहरों पर ही वोट मांगती है। इसके विपरीत पंचायत चुनावों में सीधा जुड़ाव होता है। कोई परेशानी होने पर जीते हुए पंचायत प्रतिनिधि के पास लोग बिना किसी झिझक और रुकावट के पहुंच जाते हैं। पंचायत के प्रत्याशियों को लोग करीबी से जानते और पहचानते भी हैं। यहां एक-एक वोट की कीमत होती है और उसे पोलिंग बूथ तक ले जाने के लिए प्रत्याशी जुटे रहते हैं।

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