पेचीदा प्रक्रिया से ज्यादा पेंशन वाली स्कीम चुनना लगभग नामुमकिन, महीनेभर में कोई नहीं भर सका फॉर्म

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पेचीदा प्रक्रिया से ज्यादा पेंशन वाली स्कीम चुनना लगभग नामुमकिन, महीनेभर में कोई नहीं भर सका फॉर्म

पेचीदा प्रक्रिया से ज्यादा पेंशन वाली स्कीम चुनना लगभग नामुमकिन, महीनेभर में कोई नहीं भर सका फॉर्म


नई दिल्ली: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने कर्मचारियों के लिए ज्यादा पेंशन का विकल्प चुनने की सुविधा दी है। इसके लिए संगठन का पोर्टल भी ऐक्टिव हो गया है। लेकिन ज्यादा पेंशन का विकल्प चुनने के लिए जितनी पेचीदा प्रक्रिया बना दी है कि इसका लाभ उठाना करीब-करीब नामुमकिन जान पड़ता है। अब कर्मचारी सुविधा मिलने की खुशी मनाएं या कठिनाई का रोना रोएं, समझ नहीं आ रहा है। वो कहते हैं ना एक कदम आगे और दो कदम पीछे! वही काम ईपीएफओ ने कर दिया है। नतीजतन 3 फरवरी से अब तक संस्था को एक भी आवेदन नहीं मिला है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ज्यादा पेंशन स्कीम चुनने की सुविधा चार महीने के लिए शुरू हुई है।

अब एंप्लॉयी भी पेंशन फंड में डाल सकता है सैलरी का पूरा 12%

ईपीएफओ ने सूचना का अधिकार (RTI) के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में बताया कि 3 फरवरी से अब तक ज्यादा पेंशन वाली स्कीम चुनने का एक भी आवेदन उसे नहीं मिला है। दरअसल, स्कीम में एक ऐसी शर्त डाल दी गई है कि जिसे पूरा कर पाना टेढ़ी खीर है। प्रावधान के तहत जिन कर्मचारियों को ज्यादा पेंशन वाली स्कीम चुननी है, उन्हें और उनके नियोक्ताओं (Employees and Employers) को ईपीएफओ को संयुक्त आवेदन देकर उससे अनुमति मांगनी होगी। आवेदन में बताना होगा कि कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) योजना, 1952 के तहत प्रॉविडेंट फंड (Provident Fund) की तयशुदा सीमा की जगह कर्मचारी अपनी एक्चुअल बेसिक सैलरी से ज्यादा रकम पेंशन फंड में डालना चाहता है।

सरकार समय-समय पर पेंशन फंड में कंट्रीब्यूशन की रकम बढ़ाती रही है। आखिर बार सितंबर 2014 में अधिकतम 15 हजार रुपये प्रति माह की गई है। उससे पहले, 2001 में अधिकतम 5,000 रुपये से बढ़ाकर प्रति माह अधिकतम 6,500 रुपये निर्धारित की गई थी। इसका मतलब है कि तय सीमा से इतर कर्मचारी अपनी बेसिक सैलरी की 12 प्रतिशत राशि तक पेंशन फंड में जमा करवा सकते हैं।

EPFO की इस शर्त से मुश्किल हो गया चयन

दरअसल, ईपीएफओ के नियम के तहत बेसिक सैलरी का 12% कर्मचारी के हिस्से से कटता है जबकि 12 प्रतिशत एंप्लॉयर अपनी तरफ से देता है। एंप्लॉयर की तरफ से दिया जाने वाला पूरा पैसा कर्मचारी के पेंशन फंड में जमा होता है जबकि कर्मचारी की तरफ से दिए गए पैसे का कुछ पैसा ग्रैच्युटी और कुछ पैसा पेंशन फंड में जाता है। लेकिन अब कर्मचारी भी अपना पूरा 12 प्रतिशत हिस्सा पेंशन फंड में डाल सकता है। हालांकि, इसकी शर्त यह है कि ईपीएफओ से इसकी अनुमति मिल जाए और यह अनुमति एंप्लॉयी एवं एंप्लॉयर दोनों के संयुक्त रूप से मिलनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर खुला चार महीने का विंडो

ध्यान रहे कि ज्यादा पेंशन स्कीम 16 मार्च, 1996 से ही लागू है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चार महीने के लिए इसकी विशेष व्यवस्था की गई है ताकि इच्छुक कर्मचारी इसका चुनाव कर सकें। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक, ईपीएफओ मेंबर्स को 5 साल की औसत बेसिक सैलरी के आधार पर पेंशन स्कीम चुनने का विकल्प है। इसका मतलब है कि 33 वर्ष तक ईपीएफओ का मेंबर रहा कोई भी व्यक्ति अपनी पांच वर्ष की औसत बेसिक सैलरी की आधी रकम पेंशन के रूप में पा सकता है। बशर्ते वह नियमों पर खरा उतरे। एक्सपर्ट्स ने हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (ToI) से कहा कि ईपीएफओ ने कर्मचारियों और नियोक्ताओं के लिए पूर्व अनुमति लेने की जो शर्त रखी है, वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देश में नहीं है।

2019 में जारी अपने ही सर्कुलर से हट गया EPFO

बड़ी बात है कि 22 जनवरी, 2019 को ईपीएफओ ने ही अपने रीजनल पीएफ कमिश्नरों को सर्कुलर के जरिए निर्देश दिया था कि अगर एंप्लॉयी और एंप्लॉयर ने ज्यादा पेंशन स्कीम चुनी है तो उनके सामने इसकी संयुक्त अनुमति मांगने की शर्त नहीं रखी जाए। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने चार महीने के लिए विकल्प चयन की विशेष व्यवस्था का निर्देश दिया तो ईपीएफओ अपने ही पूर्व के फैसले से पीछे हट गया। संस्था से इस बारे में बार-बार स्पष्टीकरण मांगने पर भी कोई जवाब नहीं मिला है।

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