पुष्य ने सादगी से शहर को बनाया मित्र | Pushya made the city a friend with simplicity | Patrika News

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पुष्य ने सादगी से शहर को बनाया मित्र | Pushya made the city a friend with simplicity | Patrika News

पुष्य ने सादगी से शहर को बनाया मित्र | Pushya made the city a friend with simplicity | Patrika News

इंदौर में महापौर का चुनाव बड़ा ही रोचक हुआ, क्योंकि सालभर पहले कांग्रेस ने संजय शुक्ला को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था। जब से प्रदेश संगठन ने मुहर लगाई थी, वे काम पर लग गए थे। ऐसा नहीं कि शुक्ला ने चुनावी हथकंडों का इस्तेमाल नहीं किया। आखरी समय तक वे पूरी ताकत से लगे रहे। उन्होंने मतदान के एक दिन पहले तेज बरसात होने पर भाजपा परिषद को कठघरे में खड़ा किया था। उससे पहले नगर निगम की सफाई व अन्य व्यवस्थाओं की गाड़ी को पीली गैंग घोषित किया ताकि ठेले व खोमचे वालों के वोट बैंक पर सेंध लगाई जा सके। वचन-पत्र की घोषणा में अपनी जेब से पांच फ्लायओवर बनाने और कोरोना में मृतक के परिजन को 20-20 हजार रुपए जेब से देने की बात बोली, जनता ने उसे शुक्ला का अहंकार, प्रलोभन और पैसे का घमंड माना। इंदौर स्वाभिमानी शहरों में से एक है, जिसने जनसहयोग से विकास करके एक नई इबारत लिखी थी। ऐसे में ऐसी घोषणा को मतदाताओं ने अन्यथा लिया। इतना सबकुछ होने के बावजूद जनता ने उन्हें नकार दिया। एक लाख 33 हजार से अधिक मतों से भाजपा के भार्गव ने जीत हासिल कर ली।

वास्तव में इंदौर की जनता की सोच सकारात्मक है और पुष्यमित्र के व्यवहार में उसे वह झलक नजर आई। मतदाताओं के विश्वास की एक बड़ी वजह यह भी रही। उन्हें लग गया था कि पढ़े-लिखे युवा के हाथ में कमान सौंपना ज्यादा उचित होगा। दूसरी बात भार्गव ने पूरा चुनाव सादगी से लड़ा। शुक्ला ने पूरा प्रयास किया कि वे भी सुदर्शन गुप्ता की तरह गलती कर बैठें, सेल्फ गोल कर दें लेकिन भार्गव ने ऐसा कुछ नहीं किया। व्यक्तिगत आरोपों से लेकर आक्रामक भाषा से हमला होने पर भी वे पूरे समय शांत रहे। नकारात्मक प्रचार करके शुक्ला लगातार गलती पर गलती करते गए, जो मतदाताओं को बिलकुल पसंद नहीं आ रही थी। धीरे-धीरे भार्गव के प्रति सद्भावना और उनके प्रति गलत धारणा बन गई। जनता को विश्वास होता चला गया कि भार्गव के नेतृत्व में शहर का विकास होगा। उसे ये भी मालूम था कि कांग्रेस की परिषद बन गई तो गति रुक भी जाएगी। इस अंदेशे के चलते मतदाता वोट डालने निकले, जिसकी वजह से इतनी बड़ी जीत हुई, जबकि करीब एक लाख से ज्यादा मतदाताओं के नाम गायब थे।

संगठन ने झोंकी ताकत, सालभर चली गतिविधियों का असर चुनाव पर आया नजर
भार्गव के साथ 64 वार्डों में भाजपा की जीत के पीछे भाजपा संगठन की भी अहम् भूमिका है। नगर भाजपा अध्यक्ष गौरव रणदिवे के नेतृत्व में सालभर से लगातार चल रही संगठनात्मक गतिविधियों का सीधा असर चुनाव पर नजर आया। बूथ विस्तारक योजना व त्रिदेव अभियान में बूथ कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने का पार्टी को फायदा मिला। कार्यकर्ताओं ने मतदाता सूची में गड़बड़ी होने के बावजूद ताकत झोंकी। चुनाव को जंग की तरह लिया जा रहा था। ये भी है कि जिन विधानसभाओं में ये गतिविधियां कमजोर रहीं, उनके परिणामों पर असर साफ देखने को मिला।



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