पुलिस ने एक अच्छा मौका गंवा दिया… अमृतपाल सिंह पर दो टूक बोले पूर्व डीजीपी

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पुलिस ने एक अच्छा मौका गंवा दिया… अमृतपाल सिंह पर दो टूक बोले पूर्व डीजीपी

पुलिस ने एक अच्छा मौका गंवा दिया… अमृतपाल सिंह पर दो टूक बोले पूर्व डीजीपी

चंडीगढ़: पंजाब में आतंकवाद का फन कुचलने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी की चर्चा इन दिनों फिर जोरों पर है। पंजाब पुलिस के पूर्व डीजीपी रहे जूलियो रिबेरो ने दावा करते हुए कहा कि अमृतपाल पर काबू पाने में नाकाम रहने वाली सरकार और पुलिस ने बेहतरीन मौका गंवा दिया। पूर्व डीजीपी रिबेरो ने 1980 के दशक में पंजाब में आतंकवाद को कड़ी चुनौती दी थी। बीती 23 फरवरी को अचनाला में अमृतपाल सिंह और खालिस्तानी समर्थकों ने साथी को छुड़ाने के लिए पुलिस स्टेशन को हजारों की संख्या में घेर लिया था। इस घटना के दौरान छह पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। रिबेरो ने हमारे सहयोगी टीओआई से बातचीत में कहा कि यह घटना पुलिस के मनोबल को कुचल देगी। इसके साथ ही पूर्व डीजीपी ने कहा कि यह राजनीतिक नेतृत्व के लिए भी भविष्य में एक कठिन चुनौती बन सकती है। पेश हैं बातचीत के कुछ प्रमुख अंश…

सवाल: क्या आप इस बात से सहमत हैं कि पंजाब सरकार और पुलिस ने अलगाववादी नेता अमृतपाल सिंह और कट्टरपंथियों के दबाव के आगे घुटने टेक दिए? जो कि अजनाला पुलिस स्टेशन से अपने साथी को छुड़ाने पहुंचे और बंदूक, तलवारें लहरा रहे थे?

जवाब: सबसे पहले, मुझे नहीं पता कि वे अलगाववादी हैं या क्या हैं। वह एक नया लड़का है जो दुबई से आया है। जो हुआ वह बहुत खुशी की बात नहीं है।अलगाववादी और हमारे पड़ोसी दुश्मन इसका फायदा उठाएंगे। उन्होंने (पुलिस और राज्य सरकार) अपना फैसला लिया। मुझे नहीं पता कि उन्होंने ऐसा फैसला लिया। लेकिन कट्टरपंथियों की मांगों के आगे झुकना बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है। उस आदमी (लवप्रीत) को छोड़ देने से वह जनता के लिए एक खतरनाक शख्सियत बन गया है।

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सवाल: आप इस स्थिति की तुलना 1980 के दशक के पंजाब से कैसे करते हैं, जब कट्टरपंथी सिख नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले को संभालना मुश्किल हो गया था?

जवाब:
मुझे नहीं लगता कि यह बंदा (अमृतपाल) उस काबिलियत का है। वह नया है, इसलिए उसे काबू करने का यह एक अच्छा समय था। लेकिन पंजाब सरकार और पुलिस ने मौका गंवा दिया। उसके पास भिंडरा वाले के अनुयायी नहीं हैं। लेकिन वह उसकी जगह लेने की इच्छा रखता है। अब सरकार और पुलिस के लिए उसे काबू करना थोड़ा मुश्किल होगा। उन्होंने बहुत बड़ी गलती की है।

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सवाल: मोहाली-चंडीगढ़ बॉर्डर पर बैठे एक अन्य गुट ने भी पुलिसकर्मियों को घायल कर दिया था। ये लोग 14 साल की कैद पूरी कर चुके सिख कैदियों की रिहाई की मांग कर रहे थे। हालांकि कई हमलावरों की पहचान की गई, लेकिन किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया। अजनाला मामले में भी एफआईआर नहीं हुई है। यह पुलिस बल के मनोबल को कैसे प्रभावित करेगा?

जवाब:
उनके पास एक निश्चित लाइन लेने का कोई कारण है, जिसके बारे में मुझे जानकारी नहीं है। अगर वजह राजनीतिक है तो गलत है। लेकिन यह सिख भावनाओं को आत्मसात करने या उन्हें नियंत्रण में रखने के लिए हो सकता है। मैंने पढ़ा है कि अजनाला में करीब 600 पुलिसकर्मी थे। अगर 100 भी होते तो भी उस भीड़ को संभालने में सक्षम होते। लेकिन उनके पास स्पष्ट निर्देश होने चाहिए। यदि वे नहीं दिए गए तो जो कुछ हुआ वह तो होना ही था। इससे पुलिस के मनोबल को चोट लगेगी और वे लोग अब और बोल्ड हो जाएंगे। राजनीतिक नेतृत्व ने भी अपना कार्य कठिन बना लिया है जिससे कि उन्हें काफी मुश्किल होगी।

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सवाल: पिछले साल जुलाई से पंजाब में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत स्थायी डीजीपी नहीं है। अगर राज्य सरकार की ओर से नियमों का ख्याल नहीं रखा जा रहा तो क्या केंद्र इसका संज्ञान नहीं ले सकता?

जवाब:
केंद्र सरकार भी कुछ समय के लिए पदों को खाली रखती है। लेकिन अंतहीन इंतजार ने अब एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। पुलिस अधिकारियों को राजनीतिक नहीं होना चाहिए। उन्हें कानून का पालन करना चाहिए। भले ही वे किसी भी राजनीतिक दल को रिपोर्ट करते हों। वे लोगों और संविधान के लिए काम करते हैं, पार्टी के लिए नहीं। कई राज्यों में कार्यवाहक डीजीपी हैं। इस प्रकार की चीजों को मैं समझ नहीं सकता क्योंकि यह मेरे समय में नहीं था।

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