परसा कोल ब्लॉक शुरू कराने के लिए राहुल गांधी से मिलने पहुंचे ग्रामीण | Villagers reached to meet Rahul Gandhi to start Parsa coal block | News 4 Social
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ग्रामीणों ने पत्र में लिखा है कि आरआरवीयूएनएल को वर्ष 2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में तीन कोयला खदान परसा ईस्ट केते बासेन, परसा और केते एक्सटेंशन का आवंटन किया गया था, जिसमें से पहली खदान का कार्य पिछले 10 वर्षों से चल रहा है, जबकि दूसरी खदान परसा कोल परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण का कार्य पांच वर्ष पूर्व शुरू हुआ, जिसमें ग्राम साल्हि, जनार्दनपुर, फत्तेपुर, हरिहरपुर, तारा और घाटबर्रा के कुल 722 लोगों ने अपनी जमीन देकर मुआवजा प्राप्त कर लिया है। इसमें से 478 लोगों ने रोजगार के एवज में एकमुश्त मुआवजा ले लिया है, जबकि 188 लोगों ने रोजगार का विकल्प चुना था और उनमें से अब तक 10 लोगों को नौकरी मिल चूकी है। शेष 178 लोग नौकरी पाने की प्रतीक्षा में हैं। किन्तु कुछ बाहरी गैर सरकारी संगठन द्वारा इस परियोजना के विरोध में कई तरह की भ्रांतियां फैलाने के कारण प्रभावितों इलाकों में भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। जिसके दबाव में आकर तत्कालिक सरकार द्वारा परसा कोल परियोजना को रद्द करने का मन बना लिया है। इस स्थिति में एक बार फिर हमारे सामने भुखमरी की स्थिति पैदा होने लगी है।
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सरगुजा जिले में स्थित परसा कोल परियोजना राजस्थान राज्य की विज इकाई आरआरवीयूएनएल को तत्कालीन यूपीए सरकार में आवंटित की गई दूसरी कोयला खदान है, जिसको लेकर पिछले कुछ महीनों से रायपुर स्थित की कुछ गैर सरकारी संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा है। हालांकि बड़ा स्थानीय तबका राजस्थान सरकार की परियोजनाओं का स्वागत कर रहे है और सालों से खदानें खुलवाने की अपनी मांग पर अड़े हुए है। अब जिन ग्रामीणों ने अपनी जमीन अधिग्रहण में दे दी है और मुआवजा प्राप्त कर लिया है उनमें परसा कोयला परियोजना में रोजगार की आस जगने लगी थी और जब परियोजना के काम में एक बार फिर अवरोध की सूचना जैसे ही मिली सभी जमीन प्रभावितों का गुस्सा फूट पड़ा। सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों ने आंदोलन शुरू कर दिया है। वहीं, बेरोजगार युवकों ने जल्द नौकरी न मिलने पर अपने आंदोलन को उग्र करने की भी चेतावनी दी।
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मार्च के अंत में, कांग्रेस शासित राज्यों के दोनों मुख्यमंत्रियों ने रायपुर में अपनी तीन खनन परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में आरआरवीयूएनएल के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए मुलाकात की। इसके तुरंत बाद, भूपेश सरकार ने परसा ब्लॉक और पीईकेबी ब्लॉक के विस्तार के लिए मंजूरी दे दी थी। हालांकि, आरआरवीयूएनएल संचालन का कार्य अब तक शुरू नहीं कर पाया है, जबकि स्थानीय लोग जिन्होंने अपनी जमीन और समर्थन दिया है, वे वर्षों से आजीविका के अवसरों की प्रतीक्षा कर रहे है और नौकरी न मिलने तथा रोजगार के अभाव में लाखों रुपए का नुकसान की बात भी कह रहे हैं।
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छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालय ने मई 11, 2022 को परसा खदान परियोजना के कोल बेयरिंग एक्ट के तहत् अधिग्रहण के विरोध में दायर सभी पांच याचिकाओं को देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण परियोजना बताते हुए लगाए गए सभी अरोपों और दलीलों को खारिज कर दिया था।
पहले भी लिख चुके हैं राहुल गांधी को पत्र
ग्रामीणों ने गत माह जून में राहुल गांधी के सामने दोनों ही कांग्रेस- शासित राज्य होने की वजह से विकास-विरोधी गतिविधि चलाने वाले बाहरी लोगों को प्रतिबंधित करने तथा नौकरी के लिए अपनी मांग रखी थी।
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ग्रामीणों ने पत्र में लिखा है कि आरआरवीयूएनएल को वर्ष 2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में तीन कोयला खदान परसा ईस्ट केते बासेन, परसा और केते एक्सटेंशन का आवंटन किया गया था, जिसमें से पहली खदान का कार्य पिछले 10 वर्षों से चल रहा है, जबकि दूसरी खदान परसा कोल परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण का कार्य पांच वर्ष पूर्व शुरू हुआ, जिसमें ग्राम साल्हि, जनार्दनपुर, फत्तेपुर, हरिहरपुर, तारा और घाटबर्रा के कुल 722 लोगों ने अपनी जमीन देकर मुआवजा प्राप्त कर लिया है। इसमें से 478 लोगों ने रोजगार के एवज में एकमुश्त मुआवजा ले लिया है, जबकि 188 लोगों ने रोजगार का विकल्प चुना था और उनमें से अब तक 10 लोगों को नौकरी मिल चूकी है। शेष 178 लोग नौकरी पाने की प्रतीक्षा में हैं। किन्तु कुछ बाहरी गैर सरकारी संगठन द्वारा इस परियोजना के विरोध में कई तरह की भ्रांतियां फैलाने के कारण प्रभावितों इलाकों में भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। जिसके दबाव में आकर तत्कालिक सरकार द्वारा परसा कोल परियोजना को रद्द करने का मन बना लिया है। इस स्थिति में एक बार फिर हमारे सामने भुखमरी की स्थिति पैदा होने लगी है।
ग्रामीणों ने पत्र में लिखा है कि आरआरवीयूएनएल को वर्ष 2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में तीन कोयला खदान परसा ईस्ट केते बासेन, परसा और केते एक्सटेंशन का आवंटन किया गया था, जिसमें से पहली खदान का कार्य पिछले 10 वर्षों से चल रहा है, जबकि दूसरी खदान परसा कोल परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण का कार्य पांच वर्ष पूर्व शुरू हुआ, जिसमें ग्राम साल्हि, जनार्दनपुर, फत्तेपुर, हरिहरपुर, तारा और घाटबर्रा के कुल 722 लोगों ने अपनी जमीन देकर मुआवजा प्राप्त कर लिया है। इसमें से 478 लोगों ने रोजगार के एवज में एकमुश्त मुआवजा ले लिया है, जबकि 188 लोगों ने रोजगार का विकल्प चुना था और उनमें से अब तक 10 लोगों को नौकरी मिल चूकी है। शेष 178 लोग नौकरी पाने की प्रतीक्षा में हैं। किन्तु कुछ बाहरी गैर सरकारी संगठन द्वारा इस परियोजना के विरोध में कई तरह की भ्रांतियां फैलाने के कारण प्रभावितों इलाकों में भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। जिसके दबाव में आकर तत्कालिक सरकार द्वारा परसा कोल परियोजना को रद्द करने का मन बना लिया है। इस स्थिति में एक बार फिर हमारे सामने भुखमरी की स्थिति पैदा होने लगी है।
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सरगुजा जिले में स्थित परसा कोल परियोजना राजस्थान राज्य की विज इकाई आरआरवीयूएनएल को तत्कालीन यूपीए सरकार में आवंटित की गई दूसरी कोयला खदान है, जिसको लेकर पिछले कुछ महीनों से रायपुर स्थित की कुछ गैर सरकारी संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा है। हालांकि बड़ा स्थानीय तबका राजस्थान सरकार की परियोजनाओं का स्वागत कर रहे है और सालों से खदानें खुलवाने की अपनी मांग पर अड़े हुए है। अब जिन ग्रामीणों ने अपनी जमीन अधिग्रहण में दे दी है और मुआवजा प्राप्त कर लिया है उनमें परसा कोयला परियोजना में रोजगार की आस जगने लगी थी और जब परियोजना के काम में एक बार फिर अवरोध की सूचना जैसे ही मिली सभी जमीन प्रभावितों का गुस्सा फूट पड़ा। सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों ने आंदोलन शुरू कर दिया है। वहीं, बेरोजगार युवकों ने जल्द नौकरी न मिलने पर अपने आंदोलन को उग्र करने की भी चेतावनी दी।
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मार्च के अंत में, कांग्रेस शासित राज्यों के दोनों मुख्यमंत्रियों ने रायपुर में अपनी तीन खनन परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में आरआरवीयूएनएल के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए मुलाकात की। इसके तुरंत बाद, भूपेश सरकार ने परसा ब्लॉक और पीईकेबी ब्लॉक के विस्तार के लिए मंजूरी दे दी थी। हालांकि, आरआरवीयूएनएल संचालन का कार्य अब तक शुरू नहीं कर पाया है, जबकि स्थानीय लोग जिन्होंने अपनी जमीन और समर्थन दिया है, वे वर्षों से आजीविका के अवसरों की प्रतीक्षा कर रहे है और नौकरी न मिलने तथा रोजगार के अभाव में लाखों रुपए का नुकसान की बात भी कह रहे हैं।
मार्च के अंत में, कांग्रेस शासित राज्यों के दोनों मुख्यमंत्रियों ने रायपुर में अपनी तीन खनन परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में आरआरवीयूएनएल के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए मुलाकात की। इसके तुरंत बाद, भूपेश सरकार ने परसा ब्लॉक और पीईकेबी ब्लॉक के विस्तार के लिए मंजूरी दे दी थी। हालांकि, आरआरवीयूएनएल संचालन का कार्य अब तक शुरू नहीं कर पाया है, जबकि स्थानीय लोग जिन्होंने अपनी जमीन और समर्थन दिया है, वे वर्षों से आजीविका के अवसरों की प्रतीक्षा कर रहे है और नौकरी न मिलने तथा रोजगार के अभाव में लाखों रुपए का नुकसान की बात भी कह रहे हैं।
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छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालय ने मई 11, 2022 को परसा खदान परियोजना के कोल बेयरिंग एक्ट के तहत् अधिग्रहण के विरोध में दायर सभी पांच याचिकाओं को देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण परियोजना बताते हुए लगाए गए सभी अरोपों और दलीलों को खारिज कर दिया था।
छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालय ने मई 11, 2022 को परसा खदान परियोजना के कोल बेयरिंग एक्ट के तहत् अधिग्रहण के विरोध में दायर सभी पांच याचिकाओं को देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण परियोजना बताते हुए लगाए गए सभी अरोपों और दलीलों को खारिज कर दिया था।
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ग्रामीणों ने गत माह जून में राहुल गांधी के सामने दोनों ही कांग्रेस- शासित राज्य होने की वजह से विकास-विरोधी गतिविधि चलाने वाले बाहरी लोगों को प्रतिबंधित करने तथा नौकरी के लिए अपनी मांग रखी थी।