पटनायक फैमिली से नीतीश की खानदानी दोस्ती, क्या बिहार CM से रिश्ता निभाएंगे नवीन?
पटना: विपक्षी एकता की मुहिम में जुटे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अगला पड़ाव ओडिशा बना है। वह भी बीजेपी को केंद्र से अपदस्थ करने की उस विपक्षी एकता मुहिम के लिए जहां 2024 के लोकसभा चुनाव में एक नए इतिहास रचने की परिकल्पना का आधार बनाना है। दिल्ली, उत्तरप्रदेश, झारखंड और अब ओडिशा। हां, इस मुहिम को फिलहाल सफलता के पर लग रहे हैं। ऐसा इसलिए कि नीतीश कुमार अब तक जिस राज्य में गए हैं वहां बातचीत का एक रास्ता तो बना।
ओडिशा और विपक्षी एकता के स्वर
ओडिशा के संदर्भ में नीतीश कुमार को एक विशेष लाभ उनकी राजनीत के उस समय को जाता है जब उन्होंने ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे बीजू पटनायक के साथ केंद्र की राजनीत को अंजाम दिया। यह नीतीश कुमार का राजनीतिक सौभाग्य है कि वह आज के तमाम युवा राजनीतिज्ञ मसलन तेजस्वी यादव, चिराग पासवान, अखिलेश यादव, नवीन पटनायक, ओमप्रकाश। चौटाला, अजय चौटाला, जयंत चौधरी के पिता के साथ भी राजनीति की है। उन्हें इसका फायदा मिल सकता है।
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नवीन पटनायक की राजनीति
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की राजनीति का एक अपना अलग अंदाज है। अभी तक की राजनीति का जो उनका अंदाज दिखता है उसमें एक बात तो साफ है कि वह कांग्रेस और बीजेपी से समान दूरी बना कर रखते आए हैं। उनकी राजनीति की एक खासियत और भी है कि वह केंद्र सरकार से रिश्ता मधुर बना कर रखते हैं। ऐसा इसलिए की केंद्र का साथ ले कर राज्य का विकास करना उनकी प्राथमिकता है। यह सच है कि नवीन पटनायक भी समाजवादी धारा के नेता हैं तो विपक्षी एकता की मुहिम को साथ दे सकते हैं।
परंतु एक सवाल उठता है कि क्या वह कांग्रेस के साथ एक प्लेटफार्म पर सहज महसूस करेंगे? ऐसा इसलिए कि जब उपसभापति की उम्मीदवारी को लेकर हरिवंश नारायण खड़े हुए थे। कांग्रेस ने भी उप सभापति के लिए उम्मीदवार खड़ा किया था। तब नवीन पटनायक ने कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन करने से इनकार कर जेडीयू के उम्मीदवार हरिवंश नारायण को अपना वोट दिया था।
बहरहाल, ओडिशा का राजनीतिक पीच दिल्ली, पश्चिम बंगाल या की उत्तरप्रदेश की तरह नहीं है। शायद इसलिए भी राजनीतिक विशेषज्ञों को वह उम्मीद नहीं झलक रही है जो दिल्ली, बंगाल और यूपी में मिला। ऐसा इसलिए की केंद्र से बिगाड़ कर रखने के राजनीति नवीन पटनायक नहीं करते। खासकर जिस तरह से नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल या कि अखिलेश यादव हमेशा एक मोर्चा खोले रखते हैं। अब यह नीतीश कुमार पर निर्भर करता है कि आज की बैठक में वह किस कदर नवीन पटनायक को नरेंद्र मोदी के विरुद्ध कितना और किस रूप में खड़ा कर पाते हैं।
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ओडिशा और विपक्षी एकता के स्वर
ओडिशा के संदर्भ में नीतीश कुमार को एक विशेष लाभ उनकी राजनीत के उस समय को जाता है जब उन्होंने ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे बीजू पटनायक के साथ केंद्र की राजनीत को अंजाम दिया। यह नीतीश कुमार का राजनीतिक सौभाग्य है कि वह आज के तमाम युवा राजनीतिज्ञ मसलन तेजस्वी यादव, चिराग पासवान, अखिलेश यादव, नवीन पटनायक, ओमप्रकाश। चौटाला, अजय चौटाला, जयंत चौधरी के पिता के साथ भी राजनीति की है। उन्हें इसका फायदा मिल सकता है।
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नवीन पटनायक की राजनीति
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की राजनीति का एक अपना अलग अंदाज है। अभी तक की राजनीति का जो उनका अंदाज दिखता है उसमें एक बात तो साफ है कि वह कांग्रेस और बीजेपी से समान दूरी बना कर रखते आए हैं। उनकी राजनीति की एक खासियत और भी है कि वह केंद्र सरकार से रिश्ता मधुर बना कर रखते हैं। ऐसा इसलिए की केंद्र का साथ ले कर राज्य का विकास करना उनकी प्राथमिकता है। यह सच है कि नवीन पटनायक भी समाजवादी धारा के नेता हैं तो विपक्षी एकता की मुहिम को साथ दे सकते हैं।
परंतु एक सवाल उठता है कि क्या वह कांग्रेस के साथ एक प्लेटफार्म पर सहज महसूस करेंगे? ऐसा इसलिए कि जब उपसभापति की उम्मीदवारी को लेकर हरिवंश नारायण खड़े हुए थे। कांग्रेस ने भी उप सभापति के लिए उम्मीदवार खड़ा किया था। तब नवीन पटनायक ने कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन करने से इनकार कर जेडीयू के उम्मीदवार हरिवंश नारायण को अपना वोट दिया था।
बहरहाल, ओडिशा का राजनीतिक पीच दिल्ली, पश्चिम बंगाल या की उत्तरप्रदेश की तरह नहीं है। शायद इसलिए भी राजनीतिक विशेषज्ञों को वह उम्मीद नहीं झलक रही है जो दिल्ली, बंगाल और यूपी में मिला। ऐसा इसलिए की केंद्र से बिगाड़ कर रखने के राजनीति नवीन पटनायक नहीं करते। खासकर जिस तरह से नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल या कि अखिलेश यादव हमेशा एक मोर्चा खोले रखते हैं। अब यह नीतीश कुमार पर निर्भर करता है कि आज की बैठक में वह किस कदर नवीन पटनायक को नरेंद्र मोदी के विरुद्ध कितना और किस रूप में खड़ा कर पाते हैं।