न कांग्रेस जीती न बीजेपी हारी, सात प्वॉइंट में समझिए मध्य प्रदेश निकाय चुनाव के नतीजों के मायने

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न कांग्रेस जीती न बीजेपी हारी, सात प्वॉइंट में समझिए मध्य प्रदेश निकाय चुनाव के नतीजों के मायने

न कांग्रेस जीती न बीजेपी हारी, सात प्वॉइंट में समझिए मध्य प्रदेश निकाय चुनाव के नतीजों के मायने

बीजेपी हो या कांग्रेस, निकाय चुनाव के नतीजों में अपनी जीत होने का दावा नहीं कर सकती। नतीजे किसी लिहाज से एकतरफा नहीं हैं। इन नतीजों को दोनों पार्टियां करीब सवा साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी जीत के रूप में न ही देखें तो अच्छा है। साथ ही, विपक्ष को खारिज करने की गलती भी दोनों में से कोई पार्टी नहीं कर सकती।

 

भोपालः मध्य प्रदेश नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे आने के बाद दोनों बड़ी पार्टियां, बीजेपी और कांग्रेस, इसे अपनी जीत बता रही हैं। कांग्रेस इसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विफलता बता रही है तो बीजेपी का दावा है कि यह कांग्रेस की एक और हार है। दोनों पार्टियां इसे 2023 के विधानसभा चुनाव में अपनी संभावित जीत का आधार मान रही हैं। सच तो यह है कि इन नतीजों को किसी एक पार्टी की जीत के रूप में देखना अतिशयोक्ति होगी। इन सात प्वाइंट्स के जरिए नतीजों के असली मायने और भविष्य के लिए इसके निहितार्थ को समझा जा सकता है।

  • यह बीजेपी की जीत नहीं है क्योंकि सात नगर निगमों में पार्टी को मेयर का पद गंवाना पड़ा है। सात साल पहले सभी 16 नगर निगम जीतने वाली पार्टी इसे अपनी जीत होने का दावा नहीं कर सकती।
  • यह कांग्रेस की हार भी नहीं है क्योंकि पिछले चुनाव की तुलना में पार्टी के प्रदर्शन में काफी सुधार हुआ है। सात साल पहले के मुकाबले प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और कमजोर हुई है। इसके बावजूद यह कामयाबी उसके लिए उपलब्धि है।
  • निकाय चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं। इनमें प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों से ज्यादा महत्वपूर्ण उम्मीदवारों के मतदाताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध होते हैं। इसे जबलपुर के उदाहरण से समझा जा सकता है जहां बीजेपी प्रत्याशी को सीएम शिवराज और आरएसएस का पूरा समर्थन हासिल था। इसके बावजूद डॉ जितेंद्र जामदार हार गए क्योंकि कोरोना काल में उनके खिलाफ कुछ आरोप लगे थे। कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान हवा दी और जामदार के खिलाफ माहौल बनाने में सफल रही।
  • नतीजों को सीएम शिवराज सिंह चौहान की असफलता नहीं कहा जा सकता, क्योंकि निकाय चुनाव में प्रचार के लिए उन्होंने जहां ज्यादा ध्यान दिया, वहां बीजेपी को जीत मिली। शिवराज ने मालवा-निमाड़ क्षेत्र पर सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित किया और बीजेपी को सबसे ज्यादा कामयाबी भी वहीं मिली। शिवराज के विधानसभा क्षेत्र बुधनी में तो कांग्रेस का करीब-करीब सूपड़ा ही साफ हो गया।
  • इसे कमलनाथ के नेतृत्व पर सवालिया निशान के रूप में भी नहीं देखा जा सकता, क्योंकि वे इन चुनावों में कांग्रेस के एकमात्र स्टार प्रचारक थे। रतलाम को छोड़ दें तो उनके चुने हुए उम्मीदवारों ने अच्छा प्रदर्शन किया। चुनान की सारी रणनीति भी कमलनाथ ने ही तैयार की थी जो काफी हद तक सफल रही।
  • निकाय चुनाव के नतीजे बीजेपी और कांग्रेस के लिए स्पष्ट संदेश है कि उन्हें अपना घर तंदुरूस्त करने की जरूरत है। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में स्टार प्रचारकों के बिना भी कांग्रेस जीती क्योंकि पार्टी के नेता एकजुट थे। वे यह साबित करना चाहते थे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बिना भी कांग्रेस जीत सकती है। वहीं, इसी इलाके में बीजेपी को बड़ी हार मिली क्योंकि सिंधिया और तोमर के समर्थकों बीच एकजुटता नहीं थी।
  • कांग्रेस हो या बीजेपी, निकाय चुनाव के नतीजों को सवा साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी जीत की गारंटी नहीं मान सकती। दोनों के लिए यह एक मजबूत आधार हो सकता है लेकिन कोई भी पार्टी निश्चिंत नहीं रह सकती। विपक्ष को कमजोर मानने की गलती दोनों के लिए अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा हो सकता है।

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