नेताजी के साथ काम कर चुके हैं दिल्ली के ये फ्रीडम फाइटर, तब जुटाया था करोड़ों का फंड, पढ़ें गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी की कहानी

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नेताजी के साथ काम कर चुके हैं दिल्ली के ये फ्रीडम फाइटर, तब जुटाया था करोड़ों का फंड, पढ़ें गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी की कहानी

नेताजी के साथ काम कर चुके हैं दिल्ली के ये फ्रीडम फाइटर, तब जुटाया था करोड़ों का फंड, पढ़ें गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी की कहानी

अश्वनी शर्मा, नई दिल्लीः टोक्यो के लिए आजाद हिंद फौज के सैनिकों को लेकर जा रहा एक विमान 1942 में क्रैश हो गया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने का जज्बा लिए आजाद हिंद फौज में शामिल हुए 10 जवान इस हादसे में शहीद हो गए। यह लोग नेताजी के कहने पर एक मीटिंग के लिए मलेशिया से टोक्यो जा रहे थे। आज उन गुमनाम शहीदों को कोई नहीं जानता। यह कहते हुए आजाद हिंद फौज के वरिष्ठ अधिकारी रहे रंगास्वामी माधवन पिल्लई (आर. माधवन) की आंखें डबडबा जाती हैं । दूसरे ही पल उनके चेहरे के भाव बदल जाते हैं और वे गर्व के साथ कहते हैं कि देश के लिए कुर्बान होने से बड़ा सम्मान कोई नहीं है।

हाल ही में केंद्र सरकार ने आजाद हिंद फौज के सैनिकों की सुध ली है। इसी क्रम में 2022 में आर. माधवन के नाम पर भी एक डाक टिकट जारी किया गया। हालांकि, केंद्र और दिल्ली सरकार की ओर से उन्हें हर माह 39 हजार रुपये की पेंशन जरूर मिलती है, लेकिन माधवन को इस बात का मलाल है कि सरकार ने आजाद हिंद फौज के सैनिकों के प्रति वह भाव नहीं दर्शाया जिसके वे हकदार थे।

उम्र के 97वें साल में प्रवेश कर चुके माधवन तमिलनाडु के रहने वाले हैं। लेकिन इनका जन्म बर्मा में 13 मार्च 1926 को हुआ। यहां वह बर्मा स्कूल में सातवीं तक पढ़े। माधवन को पाली भाषा का भी ज्ञान है। परिवार में पत्नी सावित्री और आठ बच्चे है। इनमें छह बच्चे बर्मा में हुए जबकि दो बच्चे मद्रास में हुए। माधवन 1974 में दिल्ली आये। बाद में परिवार के बाकी सदस्य भी आ गए।

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माधवन बताते हैं कि कि नेताजी से जुड़ने से पहले वह इंडियन इंडिपेंडेंट लीग (आईआईएल) में बतौर रिक्रूटमेंट ऑफिसर के पद पर कार्यरत थे, तब उनकी उम्र सिर्फ 18 साल थी। इस बीच उन्होंने नेताजी का भाषण सुना। जिससे वह प्रेरित हुए और आजाद हिंद फौज में तैनात हो गए । माधवन बताते हैं कि आईआईएल को रास बिहारी बोस ने बनाया था। इसके साथ आईएनए का भी गठन रास बिहारी बोस, मोहन सिंह और फौजी वारा (जापानी) ने सिंगापुर में किया था। 1943 में नेताजी के आने के बाद रास बिहारी ने अपना पद नेताजी को दिया।

माधवन ने 1943 मार्च के महीने में नेताजी की फौज को जॉइन किया था। वह यहां पर भी ऑफिस का काम देखते थे। माधवन ने बताया कि फौज में काम करने के लिए उन्होंने कोई तनख्वाह नहीं ली। उन्हें आज भी याद है कि कैसे नेताजी कहते थे, ‘चलो दिल्ली, दिल्ली का रास्ता आजादी का रास्ता।’ इस नारे को वह कभी नहीं भूल पायेंगे।

माधवन के अंतर्मन में नेताजी से जुड़ी तमाम यादें कैद हैं। वे बताते हैं कि कैसे नेताजी को दो बार सोने में तोला गया था। सबसे पहले 23 जनवरी 1944 को नेताजी को उनके जन्मदिन के अवसर पर रंगून जुबली हॉल में तोला गया था। उन्हें हामिद हुसैन भी याद हैं जिन्होंने वॉर के लिए करोड़ों रुपये आजाद हिंद फौज को दिए थे। बिहार के एक सेठ परमानंद ने नेताजी के आने के बाद अपनी करोड़ों की संपत्ति उन्हें देकर कहा कि हमें सिर्फ दो यूनिफार्म दे दें। सेठ आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए और उनकी पत्नी ने रानी झॉसी रेजिमेंट जॉइन किया। माधवन बताते हैं कि नेताजी यूनिट में आकर चेक करते थे, जवानों से हाथ मिलाते थे, उनको देखने से लगता था जैसे भगवान खड़े हो। यह बात वह कभी नहीं भूल सकते।

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माधवन ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि रंगून में मेगलाडोन में नेताजी परेड देख रहे थे तभी आसमान से ब्रिटिश जहाज बम और गोलियां बरसाने लगे। नेताजी ने सभी जवानों को कहा कि मेरी चिंता मत करो और सभी लोग बंकर में चले जाओ।

निभाई थी यह भूमिका

माधवन ने कहा कि उन्होंने फौज के लिए सबसे पहले फंड जुटाने का काम किया। वह लोगों के पास जाकर नेताजी का भाषण पहुंचाते थे। ‘आजादी तुम्हारी खून की कुर्बानी मांगती है, इसके दरवाजे पर तुमको सब कुछ न्यौछावर करना होगा, अपनी दौलत, अपनी जान, अपनी औलाद अब तक तुमने सब कुछ दिया, सोना-चांदी के खजाने, फड़कते दिल, तड़कते बाजू, मगर आजादी की प्यास महज इससे नहीं बुझती। आज मातृभूमि पर सिर चढ़ाने वाले पुजारियों कि जरूरत है। नेता जी ने फिर कहा आजादी की लड़ाई में फतह की इबारत सुर्ख लहू की बूंदों से लिखी जाती है। मैं वादा करता हूं तुम मुझे खून दो मैं तम्हे आजादी दूंगा। ‘जय हिन्द’।’ उन्होंने 15 करोड़ का फंड इकट्ठा किया।

दिल्ली में भी दी परीक्षा

माधवन ने बताया कि 1974 में वह जब दिल्ली आये तो उन्हें डीसीएम के एक इंजीनियर वाधवानी के पास ड्राइवर का काम मिला। उन्हें उनके दोस्त एंथोनी ने दिल्ली बुलाया था। इंजीनियर दिल्ली के पंचशील पार्क में रहते थे। एक दिन सुबह जब वे काम पर पहुंचे तो उनके मालिक इंजीनियर ने उनसे कहा कि रात को मैं गाड़ी लेकर आ रहा था तो रास्ते में टायर पंचर हो गया। मैं उसी हाल में गाड़ी लेकर चला आया। यह कहकर इंजीनियर ने माधवन को 100 रुपये देकर कहा कि नई ट्यूब डलवा देना। जब माधवन पंचर बनवाने गए तो पता चला कि पंचर नही है। टायर में हवा भरी और दुकानदार को दो रुपये देकर वे गाड़ी लेकर इंजीनियर के घर पहुंच गए। उन्होंने इंजीनियर को 98 रुपये वापस करते हुए कहा कि ट्यूब ठीक है। टायर में हवा भरवाई है और उसके दो रुपये लगे हैं। इस पर वाधवानी ने अपने दोस्तों को बुलाकर पार्टी की और सबसे माधवन का परिचय कराया। मालिक ने अपने दोस्तों से कहा कि मुझे एक ईमानदार आदमी मिल गया है।

रूआब अब भी है बरकरार

माधवन के चेहरे और हावभाव में आज भी एक सेना के जवान जैसा रूआब बरकरार है। सरकार से उन्हें पेंशन मिल रही है लेकिन वह दिल्ली जैसे शहर में एक अपना घर तलाश रहे। उनका कहना है कि 1986-87 में उन्होंने दिल्ली में एक घर दिए जाने का अनुरोध किया था लेकिन उन्हें घर नहीं मिला। माधवन का कहना हैं कि उम्र के इस पड़ाव में अब उन्हें कोई अपेक्षा नहीं है। उन्होंने कहा कि पहले उन्हें 300 रुपये मिलते थे। फिर 15 हजार हुए और अब उन्हें मोदी सरकार में 35 हजार रुपये पेंशन मिलती है और 4 हजार रुपये दिल्ली सरकार से मिलते हैं।

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