नीतीश के सियासी सपने पर ‘RK’ फैक्टर भारी, जाने राजनीतिक खेल की इनसाइड स्टोरी

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नीतीश के सियासी सपने पर ‘RK’ फैक्टर भारी, जाने राजनीतिक खेल की इनसाइड स्टोरी

नीतीश के सियासी सपने पर ‘RK’ फैक्टर भारी, जाने राजनीतिक खेल की इनसाइड स्टोरी


पटना : नीतीश कुमार ने विपक्ष को एकजुट करने की बात कही है। उनकी ही बात पर गौर करें तो उन्हें विधानसभा के बजट सत्र के बाद विपक्षी एकता की पहल के लिए बिहार से बाहर निकलना है। बड़ा सवाल है कि जब नीतीश किस विपक्ष को एकजुट करेंगे। तेलंगाना के सीएम केसीआर ने तो आम आदमी पार्टी (आप), माकपा (सीपीएम) और समाजवादी पार्टी (सपा) को साथ कर लिया। ममता बनर्जी मौन हैं। राहुल गांधी में भविष्य देखने वाली कांग्रेस साथ आने से रही। यानी विपक्ष तो बिखरा हुआ है। सब अपनी डफली बजा अलग-अलग या गिरोह बना कर राग अलापने में व्यस्त हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बिखरते विपक्ष को कैसे एकजुट करेंगे नीतीश कुमार ?

नीतीश कुमार को तो कोई पूछ ही नहीं रहा

केसीआर ने जब राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पार्टी का विस्तार किया तो उन्होंने तीन दलों के नेताओं को बुलाया। तीन राज्यों के सीएम और एक पूर्व सीएम शरीक भी हुए। विपक्ष को एकजुट करने का केसीआर का यह अपना अंदाज और प्रयास था। नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव को उन्होंने न्योता ही नहीं दिया था। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के समापन समारोह में नीतीश कुमार को आमंत्रित किया भी तो नगालैंड चुनाव का बहाना बना कर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने न शामिल होने की मजबूरी बता दी। ममता बनर्जी तो अब इस तरह की किसी कोशिश से खुद को किनारे कर चुकी हैं। उन्हें भी अंदाज लग चुका है कि अकेले चलने में ही भलाई है। अकेले रहने पर अपने नफा-नुकसान के आधार पर किसी के साथ सटा जा सकता है। बीजू जनता दल के नेता और ओड़िशा के सीएम नवीन पटनायक तो हमेशा अकेले चलने में भरोसा करते हैं। ऐसी स्थिति में नीतीश बजट सत्र के बाद बिहार से बाहर निकलेंगे भी तो किससे क्या बात करेंगे ?

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राहुल और केसीआर के बीच नीतीश कहां हैं !

नीतीश कुमार भले खुद पीएम पद की रेस से अपने को बाहर बतायें, लेकिन जेडीयू और आरजेडी के नेता उन्हें पीएम मटेरियल बताते रहे हैं। विपक्ष के बिखराव से एक बात तो साफ हो गयी है कि अब नीतीश कुमार की संभावना दूर-दूर तक दिखायी नहीं देती। कांग्रेस ने पहले ही साफ कर दिया है कि उसके पीएम फेस राहुल गांधी ही हैं, जिन्होंने 145 दिनों की भारत जोड़ो यात्रा की। यात्रा के क्रम में उन्होंने 12 राज्यों का भ्रमण किया। सच कहा जाये तो बीजेपी को मात देने के लिए राहुल गांधी ने ही ईमानदारी से कोशिश की है। दूसरे नंबर पर केसीआर आते हैं, जिन्होंने कम से कम चार दलों को एक मंच पर तो जुटाया। नीतीश कुमार ने तो अब तक ऐसा कुछ किया ही नहीं, जिससे लगे कि वे अपनी प्रस्तावित भूमिका के लिए प्रयत्नशील हैं। ऐसे में राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह का बयान नीतीश को चिढ़ाने वाला लगता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि लालू ने नीतीश को टीका लगा दिया है तो वे जरूर पीएम बनेंगे। इसलिए कि लालू जिस पर हाथ रख देते हैं, वह जरूर पीएम बनता है।

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अपने दल के दलदल में ही उलझे हैं नीतीश

सच कहा जाये तो नीतीश कुमार अभी अपने ही दल के दलदल में उलझ कर रह गये हैं। उन्हें दूसरी बातें सोचने का मौका ही नहीं मिल रहा। हालांकि राजनीति में किसी के लिए दरवाजे बंद नहीं होते, लेकिन प्रथमदृष्टया बीजेपी ने भी उनके लिए अपना दरवाजा बंद कर दिया है। ऐसे में नीतीश कुमार के पास अब विपक्ष की राजनीति ही बचती है, जिसके लिए उनके स्तर पर कोई प्रयास होता नहीं दिख रहा। इधर उपेंद्र कुशवाहा नीतीश की नाक में दम किये हुए हैं। बीजेपी की तरह कुशवाहा भी अब नीतीश को ठग साबित करने पर तुले हुए हैं। कुशवाहा की मानें तो पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष का पद उनके लिए झुनझुना है। वह बोर्ड के सदस्य का भी मनोनयन नहीं कर सकते। एमएलसी का पद लालीपाप है, जो नीतीश ने उन्हें थमा दिया। कुशवाहा तो अब पिछड़ा कार्ड भी खेलने लगे हैं। उनका कहना है कि पिछड़े वर्ग के मंत्री की बात अधिकारी नहीं सुनते। पिछड़े वर्ग को नीतीश नकारते हैं। हालांकि कुशवाहा के मुद्दे पर कुछ भी बोलने से नीतीश ने मना कर दिया है, लेकिन हाल ही जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष ने कुशवाहा को जेडीयू छोड़ कर जाने के लिए कह दिया। कुशवाहा कभी पार्टी में हिस्सा मांगते हैं तो कभी जेडीयू के शीर्ष नेताओं पर भाजपा से सांठगांठ का आरोप लगाते हैं। नीतीश इससे पार पायें, तब तो वह विपक्ष के दूसरे दलों को एक करने के अभियान में जुटेंगे।
रिपोर्टः ओमप्रकाश अश्क

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