नीतीश कुमार अभी से दिखाने लगे कोआर्डिनेटर होने का रुतबा! अखिलेश से खुद मिले, सीएम हेमंत से मिलने ललन सिंह को भेजा

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नीतीश कुमार अभी से दिखाने लगे कोआर्डिनेटर होने का रुतबा! अखिलेश से खुद मिले, सीएम हेमंत से मिलने ललन सिंह को भेजा

नीतीश कुमार अभी से दिखाने लगे कोआर्डिनेटर होने का रुतबा! अखिलेश से खुद मिले, सीएम हेमंत से मिलने ललन सिंह को भेजा

Opposition Unity: नीतीश कुमार समय निकाल कर अपने डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव और ललन सिंह को लेकर दिल्ली, कोलकाता और लखनऊ घूम आए। लेकिन छह घंटे की दूरी पर स्थित रांची जाने के लिए उन्हें फुर्सत नहीं मिली। उन्होंने सीएम हेमंत सोरेन से बात करने के लिए ललन सिंह को रांची भेजा।

 

हाइलाइट्स

  • विपक्षी एकता पर बात करने नहीं आए नीतीश
  • ललन सिंह ने दूत बन हेमंत से की मुलाकात
  • अखिलेश और येचुरी से मिलने गए थे नीतीश
  • पवार की घोषणा से विपक्षी एकता पर संदेह
ओमप्रकाश अश्क, रांची: नीतीश कुमार अभी तक घोषित तौर पर विपक्षी दलों के कोआर्डिनेटर नहीं बने हैं, लेकिन रुतबा अभी से दिखाने लगे हैं। विपक्षी एकता की मुहिम में वे बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से मिलने उनके दरवाजे तक पहुंच गए थे। यहां तक कि वे उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव से भी चार्टर्ड प्लेन से लखनऊ जाकर मिल आए। आश्चर्य इस बात पर हुआ कि बिहार का ही कभी हिस्सा रहे झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन से मिलने वे खुद नहीं आ सके। उन्होंने अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को इसके लिए रांची भेजा।

सीएम हेमंत से मिले जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह

झारखंड में कांग्रेस और आरजेडी के साथ सरकार चला रहे सबसे बड़ी पार्टी जेएमएम के नेता और सीएम हेमंत सोरेन से मिलने मंगलवार को रांची पहुंचे। मुख्यमंत्री आवास में दोनों नेताओं की बैठक हुई। हालांकि हेमंत सोरेन पहले ही कह चुके थे कि वे नीतीश कुमार की विपक्षी एकता मुहिम के साथ हैं। उन्होंने नीतीश से मुलाकात करने की बात भी कही थी। हालांकि आश्चर्य तब हुआ, जब नीतीश के दूत बन कर ललन सिंह रांची पहुंच गए। जब दोनों की मुलाकात हुई तो बात भी पक्का हुई होगी। बात भी नाते-रिश्तेदारी की नहीं, राजनीतिक ही रही होगी। फिलहाल विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को परास्त करने की रणनीति बनाने में व्यस्त हैं। इसमें सबसे बड़ी भूमिका में अभी नीतीश दिख रहे हैं। उन्हें विपक्षी दलों का समर्थन भी मिल रहा है। समर्थन मिलने में किसी को हिचक इसलिए भी नहीं हो रही कि नीतीश ने पीएम पद की दावेदारी से खुद को अलग कर लिया है।

नीतीश कहीं हेमंत को कम तो नहीं आंक रहे

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिन वामपंथी दलों का नामलेवा भी अब देश में खोजने से नहीं मिल रहा, उन वामपंथी नेताओं से मुलाकात के नीतीश कुमार खुद गए। पूर्व सीएम से खुद मिलना उन्होंने मुनासिब समझा। लेकिन झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन से मिलने की उन्हें फुर्सत नहीं मिली। ललन सिंह को दूत बना कर उन्होंने मुलाकात के लिए रांची दौड़ा दिया। इसे हेमंत प्रतिष्ठा का प्रश्न बना सकते हैं, लेकिन सीबीआई-ईडी के घनचक्कर में उलझे हेमंत का ध्यान शायद अपनी इस उपेक्षा की ओर जाए। हेमंत सोरेन झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में 30 पर दखल रखते हैं, जबकि नीतीश कुमार 243 विधानसभा सीटों वाली बिहार विधानसभा में सिर्फ 43 विधायकों के नेता हैं। कद के हिसाब से देखें तो नीतीश बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी के नेता हैं, जबकि हेमंत नंबर एक की हैसियत रखने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हैं।

विपक्षी एकता में पवार ने लगा दिया पलीता

नीतीश कुमार विपक्षी एकता के लिए जितने उत्साहित थे, उसमें महाराष्ट्र की एनसीपी के नेता शरद पवार ने पार्टी प्रमुख का पद छोड़ने की घोषणा कर पलीता लगा दिया है। अनुमान है कि एनसीपी में अध्यक्ष पद के अब दो दावेदार होंगे- अजित पवार और सुप्रिया सुले। अजित पवार की नजदीकी इन दिनों बीजेपी से बढ़ी है। आसार हैं कि अजित आने वाले दिनों में बीजेपी के साथ जाने का एलान कर सकते हैं। इसका संकेत उन्होंने पहले भी दिया है। कुछ ही दिनों पहले शरद पवार ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बुलावे पर दिल्ली में उनसे और राहुल गांधी से मुलाकात की थी। उसके ठीक पहले नीतीश कुमार खरगे के घर पहुंचे हुए थे।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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