नीतीश की नाराजगी की पटकथा आरजेडी ने लिखी अब तेजस्वी को हो रहा एहसास

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नीतीश की नाराजगी की पटकथा आरजेडी ने लिखी अब तेजस्वी को हो रहा एहसास

नीतीश की नाराजगी की पटकथा आरजेडी ने लिखी अब तेजस्वी को हो रहा एहसास


ओमप्रकाश अश्क, पटना: बिहार के सीएम नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) बिना बड़ी बिसात बिछाये सियासत के सफलतम सख्शियतों में शुमार किये जाते हैं। लगातार 18 साल से सीएम हैं, लेकिन उनकी पार्टी जेडीयू को कभी सरकार बनाने का बहुमत नहीं मिला। इतना नहीं, उनकी एक और काबिलियत उल्लेखनीय है। उन्होंने दूसरे दलों का सदा सहयोग लिया, लेकिन कभी किसी के दबाव में नहीं रहे। उन्हें जब भी ऐसा लगा, आहिस्ता से किनारा कर लिया। किस्मत ऐसी कि उनके सहयोग के लिए पार्टियां भी हमेशा तैयार रहती हैं।

दबाव में काम करना नीतीश को पसंद नहीं

बीजेपी के साथ नीतीश जब सरकार चला रहे थे तो 2005 से 2020 तक सबसे बड़ी पार्टी का नेता होने के कारण उन पर दबाव डालने की बीजेपी की कभी हिम्मत ही नहीं हुई। 2020 के असेंबली इलेक्शन में जब जेडीयू संख्या बल की दृष्टि से तीसरे नंबर की पार्टी बन गयी तो उन्होंने सीएम बनने से मना कर दिया था। एनडीए में होने के कारण उन्होंने बीजेपी के लिए रास्ता खुला छोड़ दिया। बीजेपी भी जानती थी कि नीतीश अगर सीएम नहीं बनते हैं तो वे आरजेडी के साथ कभी भी कोई गुल खिला सकते हैं। इसलिए समझा-मना कर बीजेपी ने उन्हें सीएम बना दिया। नीतीश तो इसी के इंतजार में थे। वह बीजेपी को एहसास कराना चाहते थे कि उनकी मर्जी के बिना बिहार में कोई कुछ कर ही नहीं सकता है। ज्यादा रांय-टांय होने पर उनके पास आरजेडी का विकल्प खुला था, लेकिन बीजेपी को आरजेडी का शागिर्द बनना नहीं सुहाता। इसलिए बीजेपी ने मन-बेमन से नीतीश का साथ देकर उन्हें सामने रखने में ही भलाई समझी।

दबाव से बचने के लिए बीजेपी का साथ छोड़ा

हालांकि बाद में नीतीश ने महसूस किया कि बीजेपी के नेता उन्हें तीसरे नंबर की पार्टी का प्रमुख होने का बार-बार एहसास कराने लगे हैं। उन्होंने झटके में बीजेपी का साथ छोड़ दिया। आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव इसी इंतजार में बैठे थे। उनके दोनों बेटे सियासी रुतबे की दृष्टि से खलिहर थे। झट लालू ने नीतीश को ही सीएम स्वीकारने का ऑफर दे दिया। लालू भी जानते थे कि नीतीश को ठिकाने लगाने और अपने बेटों को एकोमोडेट करने का इससे बढ़िया अवसर नहीं हो सकता है। दरअसल अवैध शराब, घुसपैठ, मुस्लिम तुष्टीकरण, धर्मांतरण और अपराध के मुद्दों पर बीजेपी के नेता रोज-रोज हमला करने लगे थे। बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल ने तो ठीक उसी तरह का मोर्चा खोल दिया था, जैसा अभी आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह ने खोला है।

आरजेडी से भी चल रही है नीतीश की नाराजगी

सच यह है कि आरजेडी से भी नीतीश नाराज चल रहे हैं। आरजेडी कोटे के कई मंत्री और विधायक बेलगाम हो गये हैं। सुधाकर सिंह ने नीतीश के प्रति अप्रिय-अशालीन शब्दों के इस्तेमाल का अभियान ही छेड़ दिया है। अभी तक शिखंडी, नपुंसक, हाईटेक भिखमंगा जैसे विशेषणों से वे नीतीश को नवाज चुके हैं। आजेडी कोटे के मंत्री चंद्रशेखर, सुरेंद्र यादव और आलोक मेहता के ऊलजुलूल बयानों से भी वे आहत होते रहे हैं। कुछ को उन्होंने टोका भी तो किसी ने बात नहीं मानी। आखिरकार जेडीयू को आपत्ति जतानी पड़ी। नीतीश को उम्मीद थी कि आरजेडी नेता और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव जरूर इसका संज्ञान लेंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। सुधाकर सिंह पर पार्टी ने कार्रवाई का आश्वासन जरूर दिया, लेकिन बात शो कॉज से आगे नहीं बढ़ी। ऊटपटांग बयानबाजी करने वाले मंत्रियों को भी आरजेडी ने कोई चेतावनी नहीं दी। यही वजह है कि नीतीश अगर बीजेपी एमएलसी और राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय मयूख के घर चैती छठ के खरना का प्रसाद खाने गये तो इसे लेकर बिहार में सियासी तामपान बढ़ गया।

आरजेडी को नीतीश की नाराजगी का एहसास है

ऐसा नहीं है कि आरजेडी का शीर्ष नेतृत्व नीतीश की नाराजगी को नहीं समझता है। आरजेडी नेताओं को यह भी मालूम है कि तेजस्वी यादव को सीएम की कुर्सी पर बिठाने की उनकी हड़बड़ी का नीतीश पर कितना गहरा असर पड़ा है या पड़ता होगा। यही वजह रही कि पिछले दिनों विधानसभा में तेजस्वी यादव ने अपने भाषण में बार-बार नीतीश जी के काम का उल्लेख किया। डेढ़ दर्जन से अधिक मौकों पर नीतीश का नाम लेकर उन्होंने उनके कामों का बखान किया। नीतीश को खुश करने के लिए दो मौकों पर तेजस्वी ने यह भी कहा कि उन्हें सीएम बनने की हड़बड़ी नहीं है। पहली बार पूर्णिया में हुई महागठबंधन की रैली में और दूसरी बार विधानसभा में तेजस्वी ने दोहराया कि वे जहां हैं, वहीं ठीक हैं। नीतीश के नेतृत्व में इसी भूमिका में काम करने से वे संतुष्ट हैं। इस बीच सीबीआई-ईडी के लपेटे में फिर तेजस्वी समेत लालू परिवार के सदस्यों के आ जाने से भी तेजस्वी अपने को संकट में घिरा महसूस कर रहे हैं।

नीतीश का स्वभाव समझने में चूक गया आरजेडी

नीतीश के स्वभाव को जानते सभी हैं, पर आरजेडी ने इस मामले में चूक कर दी है। पहले तो दो दागी विधायकों को आरजेडी ने मंत्री बनवाया। विवाद बढ़ने पर बाद में उन्हें नीतीश के दबाव में हटाना पड़ा। मंत्री पद से हटते ही सुधाकर सिंह आग बबूला हो गये। सरकार की नीतियों की आलोचना तक तो बात सीमा में रहती, वे नीतीश कुमार की व्यक्तिगत आलोचना में लग गये। उनके खिलाफ आरजेडी ने अब तक कोई एक्शन नहीं लिया है। यहां भी आरजेडी से चूक हो गयी। बोली-आचरण में बेलगाम मंत्रियों पर भी आरजेडी ने अंकुश नहीं लगाया। किसी ने सेना के खिलाफ टिप्पणी की तो किसी ने हिन्दू धर्मग्रंथ पर आपत्तिजनक बयान दिया। एक मंत्री ने तो सवर्णों के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया। एक और मंत्री पर हत्या कराने का आरोप लगा है। तेजस्वी यादव खुद सीबीआई के शिकंजे में फंसे हैं, जिसे आधार बना कर नीतीश 2017 में आरजेडी का साथ छोड़ चुके थे।

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