निजी स्कूल संचालक-दुकानदार डालते हैं ‘डाका, क्योंकि उन पर है रसूखदारों का हाथ | Private school operators-shopkeepers put ‘robbers’ | Patrika News

110

निजी स्कूल संचालक-दुकानदार डालते हैं ‘डाका, क्योंकि उन पर है रसूखदारों का हाथ | Private school operators-shopkeepers put ‘robbers’ | Patrika News

जारी है मनमानी, प्रशासनिक कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति

जबलपुर

Published: April 22, 2022 06:38:51 pm

श्याम बिहारी सिंह @ जबलपुर। पूरे मप्र के साथ जबलपुर शहर में भी निजी स्कूल संचालकों और दुकानदारों की मनमानी जारी है। प्रशासन के जिम्मेदार उन पर कार्रवाई करते नहीं दिख रहे। उनके पास ठोस आधार नहीं होने का बहाना है। जानकारों का कहना है कि मनमानी पर कई आधार पर कार्रवाई की जा सकती है। लेकिन, संचालकों और दुकानदारों के पास रसूखदारों का ‘कनेक्शनÓ रहता है। अधिकारी इसलिए भी बहाना बनाते हैं कि उन्हीं पर कार्रवाई हो सकती है। कुछ दिन पहले शहर की एक किताब दुकान पर कार्रवाई करने पहुंचे अधिकारियों पर दुकान मालिक ने रसूख का ऐसा रौब दिखाया कि देखने वाले सन्न रह गए।
मनमानी रुके भी कैसे?
निजी स्कूलों और दुकानदारों की मनमानी इसलिए भी नहीं थम रही, क्योंकि रोकने के लिए आयोग का गठन नहीं हुआ। पांच साल से गठन को लेकर महज कागजी कार्रवाई हो रही है। बच्चों के परिजन कलेक्टर से शिकायत करते हैं। जिला शिक्षा अधिकारी से भी गुहार लगाते हैं। लेकिन, जिम्मेदार एक दूसरे के नाम पर पल्ला झाड़ लेते हैं। वर्ष 2018 में रिटायर्ड जस्टिस की अध्यक्षता में निजी स्कूलों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई और निगरानी के लिए कमेटी का गठन होना था। हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई थी। लेकिन, सरकार गोलमोल जवाब देती रही।
सिर्फ सरकारी स्कूल
कोरोना काल के बाद निजी स्कूलसंचालकों की मनमानी ज्यादा ही बढ़ गई है। चिंताजनक यह भी है कि पूरे प्रदेश में केवल सरकारी स्कूलों के लिए नियम-निर्देश जारी हुए हैं। इसका फायदा निजी स्कूल संचालक और दुकानदार उठाते हैं। रसूख का ऐसा असर है कि कोई ठोस प्रावधान लाया नहीं जा रहा। इस सम्बंध में अधिकारी दबी जुबान में कहते हैं कि सबको पता है कि निजी स्कूल संचालकों और दुकानदारों की मनमानी बढ़ती जा रही है। लेकिन, नियम-निर्देशों में इतने ‘लूप होलÓ हैं कि संचालकों और दुकानदारों का मजबूत गठजोड़ टूटने का नाम नहीं ले रहा।
पूरा सेट खरीदने का नियम बना लिया
स्कूलों और दुकानदारों की मिलीभगत गजब की है। नतीजा यह है कि दुकानों से कोई एक किताब खरीदना मुश्किल हो जाता है। किताब तभी मिलती है, जब पूरा सेट खरीदें। दुकानदार स्कूल संचालकों से मिलकर लोगों की जेब पर ‘डाकाÓ डालते हैं। वे पाठ्यक्रम की ‘किटÓ बना लेते हैं। इसमें किताब, कॉपी के साथ स्टेशनरी का सामान भी देते हैं। प्रशासन ने स्कूलों से सामग्री विक्रेताओं के पांच-पांच नाम मांगे थे। कुछ स्कूलों ने ही लिस्ट दी। इसके चलते स्कूल की ओर से पहले से तय दुकान पर ही किताबें खरीदनी पड़ीं।
पाठ्यक्रम में एकरूपता से बन सकती है बात
निजी स्कूलों और दुकानदारों के बीच का गठजोड़ तोडऩे के लिए प्रशासन चाहे तो कारगर कदम उठा सकता है। इस सम्बंध में जानकारों का कहना है कि पाठ्यक्रम और किताबों में एकरूपता लानी होगी। निजी प्रकाशकों की किताबें शामिल करने की सुविधा मिलने से स्कूल संचालकों और दुकानदारों को कमाई करने का मौका मिल जाता है। एनसीईआरटी की किताबें पाठ्यक्रम में शामिल करने से लूट-खसोट पर कुछ लगाम लगी है। सरकार की तरफ से आदेश जारी कर दिया जाए कि प्रदेश में एक जैसी किताबें लागू करनी हैं, तो लोगों को फायदा होगा।

book

प्रशासन के पास बुक स्टॉल या स्कूलों की फीस तथा दूसरी अनियमितता के सम्बंध में शिकायतें आई हैं, तो उन पर कार्रवाई की गई है। इस तरह की शिकायतें प्रमाण के साथ मिलती हैं, तो उन पर कार्रवाई की जाएगी। लोग अपना नाम सामने नहीं लाते, तो वह गोपनीय तौर पर भी शिकायतें प्रमाण के साथ भेज सकते हैं।
डॉ. इलैयाराजा टी, कलेक्टर

-स्कूलों के खिलाफ शिकायत मिलने पर जिला प्रशासन के सहयोग से कार्रवई की जाएगी। अभिभावक लिखित शिकायत विभाग को दे सकते हैं।
घनश्याम सोनी, जिला शिक्षा अधिकारी

newsletter

अगली खबर

right-arrow



उमध्यप्रदेश की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Madhya Pradesh News