नारायण मूर्ति ने गलत क्या कहा! दिल्ली में रोज कटते हैं 25-30 हजार चालान, फिर भी नहीं मानते लोग
लोग कहते हैं कि सब-वे में गंदगी है या लाइट नहीं है, लेकिन जब लोग इस इन्फ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल ही नहीं करेंगे, तो उसके रखरखाव पर भी उतना ध्यान नहीं दिया जाएगा। यही हाल सड़क पर गाड़ी चलाने वालों का भी है। इसी वजह से तमाम खुली चौड़ी सड़कों, फ्लाईओवरों, अंडरपास, टनल रोड्स और एलिवेटेड सड़कों के बावजूद रोड बिहेवियर के मामले में दिल्ली हर बार फिसड्डी साबित होती है।
दिल्ली आने पर मुझे वास्तव में बहुत असुविधा होती है क्योंकि यह एक ऐसा शहर है जहां अनुशासनहीनता सबसे ज्यादा है। मैं उदाहरण देकर समझाता हूं। कल मैं हवाई अड्डे से आ रहा था, लाल बत्ती पर इतनी सारी कारें, बाइक और स्कूटर बिना कोई परवाह किए यातायात नियम का उल्लंघन कर रहे थे।
एन.आर. नारायण मूर्ति (ऑल इंडिया मैनेजमेंट असोसिएशन के स्थापना दिवस पर)
रोज कटते हैं 25-30 हजार चालान, फिर भी ट्रैफिक रूल नहीं मानते दिल्लीवाले
ट्रैफिक पुलिस के स्पेशल कमिश्नर एस. एस. यादव का कहना है कि केवल एनफोर्समेंट के जरिए स्थिति को नहीं सुधारा जा सकता। इसके लिए लोगों को खुद भी अपने बर्ताव में सुधार लाना होगा। ऐसा नहीं है कि रूल तोड़ने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है। दिल्ली की सड़कों पर हर दिन करीब 25-30 हजार चालान कटते हैं। इनमें से करीब 15-20 हजार चालान सड़कों पर तैनात ट्रैफिक पुलिस की टीमें काटती हैं, जबकि हर महीने करीब 3.75 लाख चालान कैमरों के जरिए काटे जाते हैं, जो सिर्फ ओवर स्पीडिंग, स्टॉप लाइन/जेब्रा कॉसिंग वॉयलेशन और रेडलाइट जंप करने वालों के होते हैं। इसी तरह अवैध पार्किंग के भी रोज 7-8 हजार चालान कटते हैं। इसके बावजूद लोग ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं करते।
दिल्ली में एक बड़ी चुनौती यह भी है कि यहां ढाई करोड़ से ज्यादा आबादी है और डेढ़ करोड़ से ज्यादा गाड़ियां रजिस्टर्ड हैं। एनसीआर व दूसरे राज्यों से आने-जाने वाली गाड़ियां अलग हैं। जितनी तेजी से आबादी और गाड़ियों की तादाद बढ़ी है, उतनी तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलप नहीं हुआ है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम भी उतना मजबूत नहीं है। यह भी सड़कों पर कंजेशन का एक बड़ा कारण है।