नहीं सुधर रही दशा: जर्जर भवनों में जान जोखिम में डालने को मजबूर

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नहीं सुधर रही दशा: जर्जर भवनों में जान जोखिम में डालने को मजबूर


नहीं सुधर रही दशा: जर्जर भवनों में जान जोखिम में डालने को मजबूर

सीधी। प्रदेश सरकार द्वारा आंगनबाड़ी केंद्रों की दशा और दिशा सुधारने के लिए लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। अब तो जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों के साथ ही गणमान्य नागरिकों को आंगनबाड़ी केंद्रों को गोद लेकर वहां आवश्यक व्यवस्थाएं दुरूस्त करने की कवायद चल रही है। बावजूद इसके जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों की दशा नहीं सुधर पा रही है। सबसे बड़ी समस्या भवन को लेकर है। शहर से लेकर ग्रामीण अंचल तक के आंगनबाड़ी केंद्र भवन की समस्या से जूझ रहे हैं। आलम यह है की सीधी जिला मुख्यालय में संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों को ही सरकारी भवन की सुविधा मुहैया नहीं हो पाई है, किराया से भवन लेने के लिए पर्याप्त किराया भी विभाग से नहीं मिलता, लिहाजा गली-कूचों में छोटे-छोटे कमरे लेकर आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन किया जा रहा है।
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शहर में संचालित हैं 59 आंगनबाड़ी केंद्र-
सीधी शहर में कुल 59 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं, इन्हें दो सेक्टरों में विभाजित किया गया है। लेकिन 59 केंद्रों में से एक भी केंद्र के लिए शासकीय भवन की सुविधा नहीं है। कार्यकर्ताओं द्वारा किराया का मकान लेकन केंद्रों का संचालन किया जा रहा है।
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शहर के हिसाब से नहीं है पर्याप्त किराया-
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की माने तो शहर के हिसाब से आंगनबाड़ी भवन के लिए विभाग द्वारा जो किराया दिया जा रहा है, वह पर्याप्त नहीं है। इतने किराया में सर्वसुविधा युक्त भवन नहीं मिल पा रहे हैं। ज्यादातर केंद्रों में शौचालय व पेयजल की भी व्यवस्था नहीं है। आलम तो यह है कि केंद्रों में जितने बच्चे पंजीकृत हैं, यदि सभी बच्चे आ जाएं तो उनके बैठने तक के लिए जगह नहीं हो पाएगी।
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्रग्रामीण अंचलों की बदहाल है स्थिति-
ग्रामीण अंचल में आंगनबाड़ी केंद्रों के भवन को लेकर स्थिति और अधिक चिंताजनक है। जहां केंद्रों को स्वयं के भवन हैं, वह जर्जर स्थिति में है, इसके अलावा कहीं उधारी के भवन में केंद्रों का संचालन किया जा रहा है तो कहीं किराये के भवन लेकर केंद्र चलाए जा रहे हैं। जर्जर भवन में चल रहे आंगनबाड़ी केंद्रों में अध्ययनरत बच्चे कभी भी हादसे का शिकार हो सकते हैं। भवनों की जर्जर छत का प्लास्टर उखडकऱ गिरता रहता है। जिससे बच्चों के घायल होने का खतरा बना रहता है।
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बारिश के मौसम में ज्यादा खतरा, टपकती रहती है छत-
जर्जर भवनों में संचालित आगनबाड़ी केंद्रों में बारिश के मौसम में खतरा बढ़ जाता है। बारिश के मौसम में भवनों की छत से पानी टपकता रहता है। जिससे फ र्श पर पानी भी जमा हो जाता है। ऐसी हालत में केंद्र का सुचारू रूप से संचालन कर पाना अपने आप में एक चुनौती हो जाती है। वही बारिश के समय छत से पानी टपकने के कारण आंगनबाड़ी मे रखा सामान और कॉपी किताबें भीग जाती हंै।
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केस नंबर-1
आगनबाड़ी केंद्र क्रमांक 2 कोटा में पदस्थ कार्यकर्ता ने बताया कि भवन पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। जिसके कारण भवन के छत से पानी का रिसाव होता है। इतना ही नहीं भवन के अंदर छत में किए गए प्लास्टर का अक्सर गिरता रहता है। जिसके कारण हमेशा खतरा बना रहता है।
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केस नंबर-2
आगनबाड़ी केंद्र क्रमांक-3 हरिजन बस्ती पोंड़ी में पदस्थ कार्यकर्ता ने बताया कि भवन के निर्माण के समय अंदर से छत में प्लास्टर नहीं किया गया था। जिसके कारण बरसात के दिनों में छत से पानी का रिसाव होता है। लिहाजा केंद्र में आने वाले बच्चों को जहां बैठने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वहीं केंद्र में रखी सामग्री व किताबें आदि भीग जाती हैं।
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केस नंबर-3
आंगनबाड़ी केंद्र सह अरोग्य केंद्र डुहुकुरिया में पदस्थ कार्यकर्ता ने बताया कि केंद्र का भवन एक दशक से अधिक पुराना है। लिहाजा दीवारों पर जहां दरारें पड़ गई हैं। वहीं भवन के छत से पानी का रिसाव होने के कारण कमरों में पानी भर जाता है एवं छत की प्लास्टर उखडकऱ गिरती रहती है, इसलिए बच्चों को भवन के अंदर बैठाने में हर समय खतरा बना रहता है।
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केस नंबर-4
……..आंगनबाड़ी केंद्र क्रमांक-2 पोंड़ी में पदस्थ कार्यकर्ता ने बताया कि केंद्र का भवन तकरीबन डेढ़ दशक पुराना होने के कारण पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। लिहाजा भवन के अंदर किया प्लास्टर पूरा टूट गया है और छत में लगी सरिया दिखने लगी है। इतना ही नहीं केंद्र तक पहुंचने के लिए रास्ता भी नहीं है, केंद्र पट्टे की आराजी में होने के कारण परिसर में अतिक्रमण कर लिया गया है।
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केस नंबर-5
आंगनबाड़ी केंद्र क्रमांक-1 तेलियान टोला कोटा में पदस्थ कार्यकर्ता ने बताया कि केंद्र का भवन एक दशक से अधिक पुराना है। इसलिए भवन पूरी तरह से जर्जर हो गया है। लिहाजा बरसात के दिनों में पूरे कमरे में पानी भर जाता है। इतना ही नहीं अधिक बारिश होने पर छत का मलवा बच्चों के ऊपर गिरता है। जिसके कारण हमेशा खतरा बना रहता है। इसलिए बच्चों को भवन के बाहर बैठाया जाता है।
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प्रति वर्ष स्वीकृत हो रहे भवन-
जिले में प्रति वर्ष करीब एक सैकड़ा के अनुपात में भवन स्वीकृत हो रहे हैं, वर्तमान में करीब तीन सैकड़ा केंद्रों को भवन की दरकार है, सबसे ज्यादा समस्या शहरी अंचल में है क्योंकि यहां जमीन उपलब्ध नहीं हो पाती, इसलिए शहरी अंचल में केंद्रों के पास स्वयं के भवन नहीं हैं।
अवधेश सिंह, सहायक संचालक महिला बाल विकास
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फैक्ट फाइल-
*जिले में कुल आंगनबाड़ी केंद्र- 1903
*जिला मुख्यालय सीधी में केंद्र- 59
*भवन विहीन केंद्र- 154
*किराये के भवन में संचालित- 248
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