नंगे पैरों पर नाचती थी गेंद, हर कोई था दंग… भारतीय ‘जादूगर’ का यूरोप भी था दीवाना

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नंगे पैरों पर नाचती थी गेंद, हर कोई था दंग… भारतीय ‘जादूगर’ का यूरोप भी था दीवाना


नंगे पैरों पर नाचती थी गेंद, हर कोई था दंग… भारतीय ‘जादूगर’ का यूरोप भी था दीवाना

नई दिल्ली: फुटबॉल वर्ल्ड कप 2022 के शुरू होते ही दीवानगी चरम पर पहुंच गई है। सोशल मीडिया से लेकर गली मोहल्ले तक हर फुटबॉल फैन लियोनेल मेसी की टीम अर्जेंटीना की चौंका देने वाली हार पर चर्चा करते देखा जा सकता है। सऊदी अरब ने उसे 2-1 से हराते हुए दुनिया को हैरान कर दिया। मेसी के चाहने वालों की भारत में कमी नहीं है। एक वह भी वक्त था जब भारतीय फुटबॉलर का यूरोप दीवाना हुआ करता था। जी हां, यकीन मानिए मोहम्मद सलीम को फुटबॉल का जादूगर कहा जाता है। यूरोप में आज भी उनका नाम सम्मान से लिया जाता है।

अब तक 31 भारतीय ही यूरोपियन क्लब के लिए खेले, पहले थे सलीम
भारत के 31 खिलाड़ी ही यूरोपियन क्लबों की ओर से खेल सके हैं। इस लिस्ट में पहला नाम बाइचुंग भूटिया का था, जिन्हें कॉन्ट्रैक्ट मिला था। पूर्व भारतीय कप्तान को 1999 में इंग्लिश सेकंड डिविजन के लिए अनुबंधित किया गया था। उन्होंने नॉर्थ वेस्ट इंग्लैंड के लिए 46 मुकाबले खेले। हालांकि, वह पहले भारतीय नहीं थे, जिसे यूरोप में खेलने का मौका मिला था।

स्कॉटिश मशहूर क्लब के लिए दो मैच खेले
63 वर्ष पहले मोहम्मद सलीम को यह गौरव प्राप्त हुआ था। उन्होंने यूरोप में स्कॉटलैंड के बड़े क्लब Celtic के लिए दो मैच खेले थे। सलीम ऐसे खिलाड़ी थे जो बिना जूते के खेलते थे। वह जूते की जगह पट्टी बांधते थे और उसके बाद मैदान पर गेंद को मनचाहे ढंग से नचाते थे। उनके इस हुनर का हर कोई दीवाना था। उनके खेल को देखकर लोग हैरान भी होते थे।

धमाकेदार थी एंट्री, मोहम्मडन क्लब के प्रिंस थे सलीम
1994 में कोलकाता में जन्मे सलीम ने फार्मासिस्ट के तौर पर करियर का आगाज किया, लेकिन कुछ ही समय बाद वह अपने पहले प्यार फुटबॉल की ओर चल पड़े। 1926 में 22 वर्ष की उम्र में चितरंजन फुटबॉल क्लब से जुड़े और मशहूर मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब, स्पोर्टिंग यूनियन, ईस्ट बंगाल क्लब और आर्यंस क्लब से भी खेले। 1934 में सलीम ने कलकत्ता फुटबॉल लीग में मोहम्मडन क्लब के लिए शुरुआती 5 मुकाबले जीते थे।

नंगे पैरों से खेलते हुए अंग्रेजों को दिखाई थी औकात
जब भारत ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा था और कलकत्ता लीग की विजेता सिर्फ ब्रिटिश टीमें ही बनती थीं। इसमें ब्रिटिश सेना की डरहम लाइट इन्फैंट्री और नॉर्थ स्टैफोर्डशायर रेजिमेंट शामिल थीं। 1934 में जब मोहम्मडन क्लब ने खिताब जीता तो पूरी दुनिया हैरान थी। यह जीत भी इसलिए भी हैरान करने वाली थी, क्योंकि भारतीय खिलाड़ी नंगे पैर खेल रहे थे, जबकि अंग्रेज जूते पहने थे। यह भारत में फुटबॉल का समय बदलने वाला था।

चीन के खिलाफ मैच और सलीम हुए गायब…
1936 में मोहम्मडन के साथ अपना तीसरा खिताब जीतने के बाद सलीम को बर्लिन में उस वर्ष के ओलिंपिक खेलों से पहले चीनी ओलिंपिक पक्ष के खिलाफ दो प्रदर्शनी खेलने के लिए एक भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था। सलीम के खेल का चीन भी फैन हो गया था। हालांकि, दूसरे गेम से पहले वह रहस्यमय तरीके से गायब हो गए। भारतीय फुटबॉल संघ ने उन्हें ढूंढने के लिए अखबारों में छपवाया भी, लेकिन वह तो किसी और सफर पर थे।

नया सफर था, इतिहास रचने की राह पर थे सलीम
सलीम स्कॉटलैंड के दिग्गज और मौजूदा चैंपियन सेल्टिक के लिए ट्रायल देने के लिए ग्लासगो जा रहे थे। माना जाता है कि सलीम के भाई हशीम, जो ग्लासगो के पश्चिम में स्कॉट टाउन में एक दुकानदार थे, उस समय कलकत्ता में छुट्टी पर थे और चीनियों के खिलाफ अपने भाई के प्रदर्शन को देखने के बाद सलीम को एक ब्रिटिश स्टीमर पर स्कॉटलैंड चलने के लिए राजी किया था। हशीम ने प्रसिद्ध सेल्टिक प्रबंधक विली माले से बात की, जो 1897 से 1940 तक 43 वर्षों तक अविश्वसनीय रूप से प्रभारी रहे और उन्होंने 30 प्रमुख ट्रॉफियां जीतीं।

भारत से आया है महान खिलाड़ी, नंगे पैरों पर नचाता है गेंद
हाशिम ने माले से कहा, ‘भारत का एक महान खिलाड़ी जहाज से आया है। क्या आप उसको ट्रायल का मौका देंगे? लेकिन एक छोटी सी समस्या है। सलीम नंगे पैर खेलता है।’ मैनेजमेंट ने सलीम को ट्रायल का मौका देने का फैसला किया। स्कॉटिश फुटबॉल असोसिएशन को बाद में बिना जूते के खेलने की अनुमति भी देनी पड़ी। मैच से पहले सेल्टिक सहायक प्रबंधक जिमी मैकमेनेमी ने सावधानी से सलीम के पैरों को पट्टियों में लपेट दिया, उस मशहूर तस्वीर को एक फोटोग्राफर ने कैद किया था।

पट्टी बांधकर उतरे और पैरों के जादू से कर दिया दीवाना
28 अगस्त, 1936 को सलीम ने 7,000 प्रशंसकों के सामने सेल्टिक पार्क में एलायंस लीग गेम में गैलस्टोन के खिलाफ सेल्टिक के लिए खेला। बिना जूतों के पिच पर एकमात्र खिलाड़ी होने के बावजूद सलीम ने हर किसी को अपने खेल का दीवाना बना दिया। टीम ने 7-1 की एकतरफा जीत दर्ज की, जिसमें 3 गोल सलीम के नाम थे। सलीम के अगले गेम से पहले द इवनिंग टाइम्स ने उनकी प्रतिभा के बारे में बताया। सेल्टिक किट में उनकी एक तस्वीर छापी और अपने पाठकों को बताया कि वह “देखने लायक” थे।

दो मैच के बाद ही सताने लगी घर की याद
अपने डेब्यू के दो सप्ताह बाद सलीम ने हैमिल्टन अकादमिक के खिलाफ 5,000 लोगों की भीड़ के बीच जबरदस्त प्रदर्शन किया। टीम ने 5-1 से जीत दर्ज की, जबकि सलीम का गोल हर किसी के जेहन में बस गया। हालांकि, सलीम को घर की याद सताने लगी और वह दो मैच के बाद ही कलकत्ता लौटने और मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब के लिए खेलना शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने 1937 और 1938 में दो और खिताब जीते।

यूरोप को आज भी याद है हमारा सलीम
1989 में 76 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। 2002 में एक साक्षात्कार में उनके बेटे राशिद ने याद किया कि जब उनके पिता अस्वस्थ थे। इस बारे में स्कॉटिश क्लब को लिखा। उन्होंने बताया कि मेरी चाहत पैसे नहीं थे। मैं बस जानकारी देना चाहता था, लेकिन वहां से 100 पाउंड का बैंक ड्राफ्ट मुझे मिला। मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा था। इसलिए नहीं कि पैसे मिले, बल्कि इसलिए कि उनकी यादों में मेरे पिता अब भी बसे हुए थे। मैंने उस ड्राफ्ट को कैश नहीं कराया। उसे सुरक्षित रखने का फैसला किया।

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