धर्मेंद्र प्रधान को दिल से क्यों पसंद करते हैं नीतीश, बिहार बीजेपी से भूपेंद्र यादव की बढ़ गई दूरियां?

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धर्मेंद्र प्रधान को दिल से क्यों पसंद करते हैं नीतीश, बिहार बीजेपी से भूपेंद्र यादव की बढ़ गई दूरियां?

पटना : कभी नरम-नरम कभी गरम-गरम वाला रिलेशन बिहार में बीजेपी और जेडीयू का है। डेढ़ महीने में दूसरी बार धर्मेंद्र प्रधान (Dharmendra Pradhan) दिल्ली से पटना आए और सबसे पहले नीतीश कुमार (Nitish Kumar) से मिले। सीएम आवास में उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया। वैसे बिहार बीजेपी के प्रभारी भूपेंद्र यादव (Bhupendra Yadav) हैं मगर आजकल सीन से गायब हैं। राज्य में दोनों ही पार्टियों के सेकंड लेयर के नेता माहौल को सियासी बनाए रखते हैं। कम से कम मीडिया के सामने तो इसी तरह की जुबानी जमाखर्च करते रहते हैं। बैकडोर संबंध ये है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ बीजेपी का कोई भी बड़ा नेता नहीं बोलता है। ठीक वैसे ही जेडीयू का कोई भी नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उंगली नहीं उठाता है। इन तमाम ‘विविधताओं’ के बीच राज्य में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने हिसाब से सिस्टम को चलाते हैं, जिस मुद्दे पर मन करता है समर्थन करते हैं, जिस पर उनका दिल नहीं भरता उसे खारिज कर देते हैं।

भूपेंद्र यादव सीन से आउट और धर्मेंद्र प्रधान की एंट्री
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से पहले बिहार बीजेपी प्रभारी भूपेंद्र यादव पटना आते थे तो उनसे भी नीतीश कुमार मुलाकात करते थे। मगर पिछले कुछ दिनों से वो सीन से गायब हैं। आजकल धर्मेंद्र प्रधान से नीतीश कुमार की छन रही है। लंबे समय तक बिहार बीजेपी में एपिक सेंटर रहे भूपेंद्र यादव की पटना से दूरी बढ़ गई है। मगर संगठन में अब भी वो बिहार बीजेपी के प्रभारी हैं। इन सबके बीच धर्मेंद्र प्रधान की एक-एक मूव पर सियासत और सरकार की नजर रहती है। 15 वर्षों तक गुजरात बीजेपी के संगठन महामंत्री रहे भीखू भाई दलसानिया आजकल बिहार बीजेपी के संगठन महामंत्री हैं। पीएम मोदी के करीबियों में शुमार हैं। नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद धर्मेंद्र प्रधान सीधे पहुंचे भीखू भाई दलसानिया के आवास पर जहां उनका इंतजार प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल, केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय, उपमुख्यमंत्री रेणु देवी, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय सहित बीजेपी के कई नेता कर रहे थे। कहा जा रहा है कि अग्निपथ योजना को लेकर विवाद को पाटने के लिए धर्मेंद्र प्रधान पटना आए थे। पूरे मामले पर बीजेपी और जेडीयू के नेताओं ने एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।

धर्मेंद्र प्रधान से नीतीश कुमार की क्यों बनती है?
‘उज्ज्वला मैन’ के नाम से फेमस धर्मेंद्र प्रधान के पिता देबेंद्र प्रधान वाजपेयी सरकार (1999-2004) में राज्य मंत्री थे। नीतीश कुमार की प्रधान परिवार से जान-पहचान तब से ही है। उस वक्त नीतीश कुमार भी एनडीए के हिस्सा थे। पिता ने जब सियासत से संन्यास लिया तो विरासत को बेटे ने संभाल लिया। जब बिहार बीजेपी के प्रभारी अनंत कुमार हुआ करते थे तो सह प्रभारी के तौर पर धर्मेंद्र प्रधान भी दखल रखते थे। बिहार से जुड़े रोजाना के कामकाज धर्मेंद्र प्रधान ही देखते थे। बाद में बीजेपी ने धर्मेंद्र प्रधान को साल 2012 में बिहार से राज्यसभा के लिए भेजा। तब से नीतीश कुमार से उनकी नजदीकियां और बढ़ गई। मगर दोनों की सियासी मजबूरी रही अपने-अपने काम में व्यस्त हो गए। 2014 में धर्मेंद्र प्रधान केंद्र में मंत्री बन गए। आगे के दिनों में भूपेंद्र यादव को बिहार का प्रभारी बना दिया गया। मगर धर्मेंद्र प्रधान और नीतीश कुमार के व्यक्तिगत संबंध मधुर रहे। बिहार-यूपी की सियासत में योग्यता से ज्यादा जाति पर भरोसा की जाती है। इस लिहाज से देखें तो बिहार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ कुर्मी जाति के सबसे बड़े नेता हैं। ठीक वैसे ही ओडिशा के धर्मेंद्र प्रधान वहां के कर्मी जाति के सबसे बड़े नेता है। जाति के लिहाज से धर्मेंद्र प्रधान खानदायत कुर्मी हैं। शायद नीतीश कुमार इस वजह से भी खुद को कनेक्ट करते हों।

नीतीश कुमार और भूपेंद्र यादव में क्यों नहीं बनी?
बीजेपी में माना जाता है कि बिहार प्रभारी जो भी बनता है उसकी राजनीतिक तरक्की बहुत जल्दी हो जाती है। भूपेंद्र यादव भी केंद्रीय मंत्री बना दिए गए मगर पिछले आठ साल से बिहार का प्रभारी बने हुए हैं। 2020 विधानसभा चुनाव रिजल्ट के बाद भूपेंद्र यादव से नीतीश कुमार ने किनारा करना शुरू कर दिया था। इसकी सबसे बड़ी वजह रही बिहार में बीजेपी के बड़े नेताओं को साइडलाइन किया जाना। वैसे पहले भी भूपेंद्र यादव से नीतीश कुमार की बहुत नहीं बनती थी। मगर 2020 रिजल्ट के बाद भूपेंद्र यादव के साथ सीएम नीतीश मीटिंग करना नहीं चाहते थे। जिसके बाद बीजेपी की ओर से धर्मेंद्र प्रधान को ये जिम्मेदारी दी गई। वहीं, बिहार बीजेपी नेताओं में एक बड़े तबके का मानना है कि भूपेंद्र यादव की वजह से ही सवर्ण जातियों ने दूरी बना ली। बिहार बीजेपी के कुछ बड़े नेता भी भूपेंद्र यादव को पसंद नहीं करते है। मगर पार्टीगत मजबूरी की वजह से बर्दाश्त करना ही पड़ता है।

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