दोना-पत्तल कारोबार को मिलेगी ‘संजीवनी, ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ेगी आजीविका | Dona-pattal business will get ‘sanjeevani | Patrika News

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दोना-पत्तल कारोबार को मिलेगी ‘संजीवनी, ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ेगी आजीविका | Dona-pattal business will get ‘sanjeevani | Patrika News

– महलोन और छोले के पत्तें से बने दोना-पत्तल ईको फ्रेंडली होने के साथ पानी में गलनशील होते हैं

फैक्ट फाइल

-70 फीसदी दोने का उपयेाग चाट ठेलों में

– 30 फीसदी अन्य कार्यों में

– 60 फीसदी दोना-पत्तल का उपयोग विवाह कार्यक्रमों में

– 40 फीसदी उपयोग कर्मकांड व अन्य कार्यों में

जबलपुर। सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध से जबलपुर में अंतिम सांसें गिन रहे दोना-पत्तल कारोबार को ‘संजीवनीÓ मिलने की आस जगी है। इससे जहां दोना-पत्तल के कारोबार को गति मिलेगी, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में अजीविका भी बढ़ेगी। दोना-पत्तलों का पौराणिक महत्व भी है। इसका उल्लेख धर्म ग्रंथों में भी है। प्लास्टिक से बने दोने-पत्तलों का उपयोग बढऩे से पत्तों से बने दोने-पत्तल का कारोबार सिमटने लगा। करीब एक दशक पहले तक शहर में रोजाना 2.5-3 लाख दोने-पत्तल की बिक्री होती थी, जो अब घटकर 15 से 20 हजार पर पहुंच गई है। जबलपुर में 100 से अधिक दुकानों से पत्तों से बने दोना-पत्तल की दुकानें थीं। वर्तमान में इनकी संख्या 12 के आसपास है।

कटनी जिले के स्लीमनाबाद और डिंडोरी जिले के जंगलों से महलोन और छोले के पत्ते मंगाकर जबलपुर में दोना-पत्तल का निर्माण किया जाता था। इनकी खासियत यह है कि ये कई साल तक खराब नहीं होते। पानी डालने पर ये मुलायम हो जाते हैं।

भगवान राम और श्रीकृष्ण ने भी किया भोजन

छोले और महलोन के पत्तों से बने दोना-पत्तलों की महत्ता इसी बात से प्रतिपादित होती है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम ने दोना-पत्तल में ही कंदमूल और फलों का सेवन किया। भगवान श्री कृष्ण जब गुरु आश्रम में शिक्षा के लिए गए तो दोना-पत्तल में ही भोजन किया। भगवान जगन्नाथ को भी इसी में भोग लगाया जाता है।

…वर्जन…

चार पीढिय़ों से दोना-पत्तल का काम कर रहे हैं। वर्तमान में यह व्यवसाय अंतिम सांसें गिन रहा है। कभी दो से तीन लाख तक खपत होती थी। अब हजार तक सीमित हो गई है। सिंगल यूज प्लास्टिक प्रतिबंधित होने से नई उम्मीद जगी है।

अंशु सेन, दोना-पत्तल कारोबारी

प्लास्टिक के दोने-पत्तल बंद होने से इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को संजीवनी मिलेगी। ग्रामीण अजीविका में भी वृद्धि होगी। पहले दिन असर तो नहीं दिखा, लेकिन पूछ-परख बढ़ी है। हम बेहद खुश हैं। कुछ दिनों में असर नजर आएगा।

संतोष कोरी, दोना-पत्तल व्यवसायी

तीन पीढिय़ों से दोना-पत्तल का कारोबार कर रहे हैं। एक समय जबलपुर इसकी बड़ी मंडी था। यहां बने दोना-पत्तल की मांग प्रदेश के बाहर भी थी। प्लास्टिक के दोना-पत्तल का उपयोग बढऩे से इनकी मांग कम हो गई थी। व्यापार भी सीमित हो गया है। यह अच्छा निर्णय है। रोजगार बढ़ेगा।

सुमन सैनी, विक्रेता



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