देश का सबसे बड़ा अस्पताल लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर ही नहीं
संयोग से डॉ मोदी एम्स की स्थायी अकैडमिक समिति के अध्यक्ष भी हैं। 9 मार्च को संस्थान ने एम्स में एक लिविंग डोनर के साथ लीवर ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया शुरू करने के लिए डॉ. मोदी की अध्यक्षता में 10 सदस्यों की एक समिति गठित की। आखिरकार डॉ मोदी को सोमवार को शव का लीवर ट्रांसप्लांट करना पड़ा। 2016 के बाद से एम्स में लगभग 30 शवों के लिवर ट्रांसप्लांट किए गए हैं। उनमें से एक भी मृत शिशु का लिवर ट्रांसप्लाट नहीं है। लिविंग डोनर ट्रांसप्लांट एक निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने किया था।
अपने दमपर नहीं किया लिवर ट्रांसप्लांट
सूत्रों ने दावा किया कि एम्स के डॉक्टरों ने अपने दम पर कभी भी सफल कैडेवर लिवर ट्रांसप्लांट नहीं किया है। 2016 में जब गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जरी के प्रमुख प्रोफेसर पीयूष साहनी और उनकी टीम के लोग नहीं थे तो एम्स के डॉक्टरों की सहायता से मेदांता के डॉक्टरों ने लिवर ट्रांसप्लांट किया था। लिवर ट्रांसप्लांट में इस्तेमाल हुए उपकरण और नर्सों की टीम भी मेदांता से आई थी। सूत्रों ने कहा कि तब से मेदांता और कुछ अन्य निजी अस्पतालों की एक टीम सरकारी संस्थान में लिवर ट्रांसप्लांट कर रही है। हालांकि जब इस मामले को लेकर हमारे सहयोगी संस्थान टीओआई ने प्रोफेसर साहनी से बात करनी चाहिए तो उन्होंने इस पर टिप्पणी करने से मना कर दिया। हालांकि डॉ मोदी की टीम का हिस्सा रहे एम्स के प्रोफेसर निहार रंजन दास ने पुष्टि की है कि उन्होंने लिवर ट्रांसप्लांट प्रक्रिया में सहयोग किया था, लेकिन ज्यादा जानकारी देने से मना कर दिया। मीडिया प्रभारी प्रोफेसर रीमा दादा ने कहा कि उनके पास पिछली सर्जरी की जानकारी उपलब्ध नहीं थी। उन्होंने पुष्टि की कि डॉ मोदी ने हाल ही में लिवर ट्रांसप्लांट किया था और एम्स के डॉक्टरों ने उनकी सहायता की थी।