‘दृश्यम 2’ फेम श्रिया सरन ने बताया कि सेट पर कैसे रहते हैं अजय देवगन, कहा- लोग जो कहते हैं वैसा कभी नहीं देखा

190
‘दृश्यम 2’ फेम श्रिया सरन ने बताया कि सेट पर कैसे रहते हैं अजय देवगन, कहा- लोग जो कहते हैं वैसा कभी नहीं देखा

‘दृश्यम 2’ फेम श्रिया सरन ने बताया कि सेट पर कैसे रहते हैं अजय देवगन, कहा- लोग जो कहते हैं वैसा कभी नहीं देखा

साउथ इंडस्ट्री हो या हिंदी फिल्में श्रिया सरन उन अभिनेत्रियों में से हैं, जिन्होंने दोनों ही जगहों पर अपनी पहचान बनाई है। अजय देवगन के साथ ‘दृश्यम वन’ के बाद ‘दृश्यम 2’ से चर्चा में आने वाली श्रिया की फिल्म शिवाजी भी खूब चली थी। उस फिल्म में उनके साथ रजनीकांत थे। डांसर पर आधारित फिल्म में काम करने की इच्छा रखने वाली श्रिया से खास बातचीत।

अजय देवगन के साथ आपने ‘दृश्यम वन’ के बाद आरआरआर में भी काम किया है। इस फिल्म के आते-आते आपका और अजय का रिश्ता कितना मजबूत हुआ है?
अजय जी एकदम चुपचाप रहने वाले ऐक्टर हैं। लोग कहते हैं कि वे सेट पर काफी प्रैंक्स करते हैं, मगर मैंने कभी नहीं देखा। वो बहुत सीरियस ऐक्टर हैं। उनके काम करने का अलग तरीका है। एक ऐक्टर के तौर पर अपनी इंस्टिंक्ट्स पर वे बहुत भरोसा करते हैं। शूट के दौरान बहुत ही शांत और सीरियस होते हैं। उनके आस-पास होना बहुत मजेदार होता है, क्योंकि उनके पास कई कहानियां हैं, जिनको एक फिल्म लवर के तौर पर सुनने में मजा आता है। एक को ऐक्टर के तौर पर वो अपने को-ऐक्टर को बहुत कुछ देते हैं रिएक्ट करने के लिए जिससे सामने वाले के लिए बहुत आसान हो जाता है अपने रोल को जीना। उनके साथ काम करके बहुत मजा आया।

इस बार तब्बू का साथ कैसा रहा? अक्षय खन्ना नए किरदार में जुड़े?
तब्बू को मैंने हमेशा बहुत प्यार किया है, तो मेरे लिए उन्हें किसी ग्रे किरदार में देखन बहुत मुश्किल था। जहां तक उनके साथ की बात है, तो वे बहुत ही प्यार से पेश आती हैं सेट पर। उनके दिल में सभी के प्रति बहुत संवेदना रहती है। उनके साथ काम करना बहुत ही खूबसूरत था और अक्षय खन्ना बहुत ही स्वीट और लविंग है। बहुत ही ज़िंदगी से भरपूर इंसान हैं। खुश दिखते हैं और लोगों को उसी खुशी से ट्रीट करते हैं। सबके साथ काम करना बहुत ही मजेदार था। इशिता भी बहुत अच्छी हैं स्वीट हैं और बहुत ही प्यारी हैं, उनके साथ भी दोबारा काम करना बहुत ही मजेदार रहा।

आप साउथ के साथ-साथ बॉलिवुड में भी काम करती रही हैं, आपको साऊथ और बॉलिवुड में क्या फर्क लगता है?
फर्क तो कुछ नहीं होता, लेकिन हां जो फिल्म का डायरेक्टर होता है, उस पर काफी कुछ उसपर निर्भर होता है और ये बॉलिवुड में भी हो सकता है और साउथ में भी हो सकता है। कुछ फिल्में इतनी मजेदार होती हैं कि मजे-मजे में काम हो जाता है और कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं, जहां सभी चिंता में रहते हैं। फिल्म में काम करने के अनुभव का दारोमदार काफी हद तक निर्देशक पर निर्भर करता है। मेरी कोशिश यही रहती है कि अच्छे लोगों के साथ काम करूं, मेहनती लोगों के साथ काम करूं, बाकी तो कुछ खास हमारे हाथ में होता नहीं है। हर फिल्म की अपनी एक किस्मत होती है।

लीजेंड अभिनेता के रूप में जाने जानेवाले रजनीकांत की ‘शिवाजी’ को आप अपने करियर का टर्निंग प्वाइंट मानती हैं?
जब उस फिल्म के लिए साइन किया था, तो मुझे ये तो पता था शंकर सर (निर्देशक) डायरेक्ट कर रहे हैं, मगर मुझे ये नहीं पता था कि फिल्म में कौन है? तो मुझे जब फिल्म की शुरुआत में पूजा के लिए बुलाया गया, तो एकदम से रजनी सर आए और मुझे बताया गया कि मैं उनके साथ काम कर रही हूं। तब ये सीक्रेट था। लेकिन मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैं रजनी सर द ग्रेट रजनी सर के साथ काम कर रही हूं। वे बेहद बातूनी और अच्छे इंसान हैं और जमीन से जुड़े हुए हैं। उनमें कोई कोई घमंड नहीं है, कोई दिक्कत नहीं, उनको तो उनके साथ काम करने में तो बहुत मजा आता है। बहुत कुछ सीखने को मिला उनसे। उनकी कहानियां बहुत रोमांचक हैं। वो लोगों के साथ बहुत ही इज्जत से पेश आते हैं। वे हर काम के लिए बहुत मेहनत करते हैं। उनके साथ काम करने में बहुत मजा आता है।

बॉलीवुड में आप ज्यादातर पारंपरिक रोल्स में नजर आती हैं, जबकि आपकी सोशल मीडिया पोस्ट पर आप काफी मॉडर्न दिखती हैं?
साउथ में मैंने हर किस्म के रोल किए हैं। वहां मैंने जो पिछली दो फिल्में जो की हैं, वो अलग हैं। मुझे लगता है कि बॉलिवुड में मुझे अब और रिस्क लेना चाहिए थोड़ा और चैलेंज लेना चाहिए। भविष्य में मैं अलग भूमिकाओं में दिखूंगी।

सोशल मीडिया को कैसे हैंडल करती हैं? हाल ही में आपको ट्रोलोंग का भी शिकार होना पड़ा?
मैं तो सोशल मीडिया के 4-5 कमेंट ही पढ़ती हूं, जो कि आम तौर पर मेरे दोस्तों के ही होते हैं। मैं कभी भी सारे कमेंट नहीं पढ़ती, मुझे निगेटिविटी पसंद नहीं और न ही सोशल मीडिया पर सवाल -जवाब करना अच्छा लगता है।

बॉलीवुड में फिलहाल फिल्में नहीं चल रहीं, साउथ का क्या हाल है?
नहीं वहां ऐसा नहीं है, क्योंकि मुझे लगता है कि आरआरआर के बाद लोग सिनेमा घरों में आने लगे हैं, फिल्म देखने। उसके पहले भी फिल्में चल ही रही थीं। कनाडा में भी अभी ‘केजीएफ पार्ट 1’ और 2 दोनों बहुत चलीं और अभी तो ‘कांतारा’ भी बहुत पसंद की जा रही है। तो ऐसा दौर आता-जाता रहता है। फिल्में न चलने का एक कारण ये भी है कि ज्यादातर फिल्में कोविड से पहले की शूट की हुई हैं। कुछ फिल्में ऐसी बनती हैं कि लोग उसे थिएटर में देखना पसंद करते हैं। अभी भी कांतारा चल रही है। इंडस्ट्री में उतार-चढ़ाव तो लगा ही रहता है। हमें इसके पार्टी पॉजिटिव अप्रोच रखनी चाहिए। कुछ समय पहले गंगूबाई खूब चली फिर ‘भूल भुलैया’ को भी पसंद किया गया और ‘ब्रह्मास्त्र’ भी हिट रही। इन सभी के बीच मैं समझती हूं कि अब वक्त आ गया है कि हम इसे भारतीय सिनेमा के रूप में संबोधित करें। अगर किसी भाषा विशेष में फिल्में नहीं चल रहीं, तो कोई बात नहीं। ये सिर्फ एक फेज है। हिट फिल्म का फॉर्मूला किसी के पास नहीं होता। मगर जब फिल्म नहीं चलती तो बहुत अफ़सोस होता है, क्योंकि हर कोई बहुत ही मेहनत और कष्ट से फिल्में बनाते हैं।

‘दृश्यम वन’ के बाद ‘दृश्यम टू’ का ही उदाहरण ही लें, तो हम देखते हैं कि साउथ की फिल्में हिंदी में खूब बनाई जाती हैं, क्या वो ज्याद पसंद की जाती हैं?
मैं फिर से कहूंगी कि हम इसे भारतीय सिनेमा ही कहें। हम साउथ और बॉलिवुड का भेद न करें। अगर कोई कहानी अच्छी लिखी होती है और लोगों को पसंद आती है, तो लोग उसे अलग-अलग भाषा में बनाना चाहते हैं, इसे इतना सरल रखा जाए।

आपको लगता है कि पेंडेमिक में सिनेमा को देखने का नजरिया बदल गया है?
दरअसल हुआ क्या कि लॉकडाउन में लोग फोन बहुत देख रहे थे और ओटीटी फोन में आता है। भाषा का बंधन खत्म हो गया और कॉन्टेंट ही किंग बन गया। इस बात से अब लोगों को फर्क नहीं पड़ता कि कॉन्टेंट कौन-सी भाषा में है। मुझे याद है एक वक्त था लोग भारतीय भाषा को ही बहुत बुरा बोलते थे। बोलते थे, हमें ये भाषा पसंद नहीं आती है, लेकिन लॉकडाउन ने उन्हे कॉन्टेंट देखने पर मजबूर कर दिया। अब वे कलाकार का चेहरा देख कर फिल्में नहीं देखते, कॉन्टेंट देखते हैं। सिनेमा की तरफ देखने का जो नजरिया था, वो बदल गया है। कोई भी इंडस्ट्री दूसरी इंडस्ट्री से बड़ी या छोटी नहीं है।

आप डांसर बनना चाहती थीं, तो क्या किसी नर्त्य प्रधान फिल्म में काम करने की इच्छा है?
ये सच है कि मैं कत्थक डांसर बनना चाहती थी। मैं चाहती थी कि मैं कत्थक बड़े स्टेज पर करूं। अब मुझे लगता है मैं कत्थक मैं बड़े पर्दे पर करूं। मुंबई में नूतन पटवर्धन से डांस सीखती हूं। चाहे जितना भी सीख लूं, हमेशा कम ही रहेगा, मगर हां मैं चाहूंगी कि बड़े पर्दे पर डांस कर सकूं और एक अच्छे संस्थान में डांस सिखा सकूं, क्यंकि डांस मेरा पैशन बन गया है तो मैं चाहूंगी कि इसे कहीं इस्तेमाल करूं।
आप खुद को कैसी मां मानती हैं?

आपकी जिंदगी का सबसे यादगार लम्हा क्या था?
बहुत सारे थे, क्योंकि उन यादों को मिला कर जिंदगी बनती है। शायद जब मैं पहली बार कॉलेज गई या जब मुझे पहली हिट मिली या फिर जब मैं मां बनी। तो ये उस सारे पलों से मिल कर मेरी जिंदगी बनी है।

आपकी दस महीने की बेटी है, राधा। आप खुद को कैसी मां समझती हैं?
अभी तो मै खुद की मुंह मिया मिट्ठू बन जाऊंगी। जब राधा बताएगी मुझे तब मुझे पता चलेगा कि कैसी मां हूं मैं। मैं कोशिश करुंगी भविष्य में कि उसकी दोस्त बन पाऊं। मैं चाहूंगी वो बड़ी और और ग्रेटफुल इंसान बने।