दिल्ली में सर्विसेज पर किसका नियंत्रण? सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित, क्या है पूरा विवाद समझें

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दिल्ली में सर्विसेज पर किसका नियंत्रण? सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित, क्या है पूरा विवाद समझें

दिल्ली में सर्विसेज पर किसका नियंत्रण? सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित, क्या है पूरा विवाद समझें

नई दिल्ली: दिल्ली में सर्विसेज का नियंत्रण किसके हाथ में हो, इसको लेकर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया। इसी दौरान सॉलिसिटर जनरल ने मामले को लार्जर बेंच भेजने से जुड़ी लिखित दलील पेश करने की इजाजत मांगी। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी इजाजत दे दी। बुधवार की सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मामले में लार्जर बेंच के रेफरेंस को लेकर उन्हें नोट पेश करना है और हमने इस बारे में पहले ही दलील पेश कर दी थी। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, लेकिन आपने इस बारे में तो कोई दलील पेश नहीं की है। बेंच ने मामले की सुनवाई के अंत में इस मुद्दे को उठाने पर आश्चर्य जताया।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि लार्जर बेंच के रेफरेंस की जरूरत इसलिए है, चूंकि मामला संघीय ढांचे से जुड़ा है। साथ ही, केंद्र और केंद्र शासित प्रदेश के बीच संघीय सिद्धांत को देखना जरूरी है। हम कुछ भी दोबारा नहीं कहना चाह रहे, हम सिर्फ दो पेज का नोट पेश करना चाहते हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि इसे पहले देना चाहिए था। हमने इस मामले को अलग तरीके से सुना है। अगर मामला रेफरेंस का है, तो उसे कभी दलील में नहीं कहा गया। आपकी दलील पूरी हो चुकी है, हम देखेंगे। बाद में चीफ जस्टिस और अन्य जजों ने आपसी बातचीत की और फिर सॉलिसिटर जनरल को इजाजत दे दी कि वह नोट पेश करें। चीफ जस्टिस ने कहा कि आप ठोस नोट पेश करें।

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गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने मामले को लार्जर बेंच रेफर करने की दलील दी है। इसके लिए आधार दिया है कि 2018 का जो फैसला था वह संवैधानिक बेंच का था और वह एनडीएमसी बनाम पंजाब राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच के फैसले से इतर था। 9 जजों के फैसले में कहा गया था कि दिल्ली यूटी (यूनियन टेरिटरी) है। जबकि 2018 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनी हुई सरकार की वरीयता है और एलजी मंत्रिपरिषद की सलाह से काम करेंगे। एलजी अपवाद की स्थिति में किसी केस को राष्ट्रपति को रेफर करेंगे।

सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि एनडीएमसी केस को 10 बार डील किया जा चुका है। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल ने जब कहा कि दिल्ली देश की राजधानी है, इस पर सिंघवी ने कहा कि निश्चित तौर पर राजधानी है, लेकिन इसे मंत्र की तरह नहीं जपा जा सकता है। सिंघवी ने कहा कि दिल्ली राज्य की तरह है, ना कि यूटी की तरह। एंट्री-41 में जो स्कोप है वह आर्टिकल-309 के स्कोप से ज्यादा व्यापक है।

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चीफ जस्टिस ने कहा कि लिस्ट-2 में जो कंटेंट है, उस पर कानून बनाने का अधिकार संसद को है। इस पर सिंघवी ने कहा कि अनुच्छेद-239 एए स्कीम में नियंत्रण एवं संतुलन है। बहरहाल, दोनों पक्षों की दलील के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।

क्या है पूरा मामला इसे ऐसे समझें…

पांच जजों को रेफर हुआ था मामला

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच को यह मामला 6 मई 2022 को रेफर किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन चीफ जस्टिस एन. वी. रमण की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच मामले में उठे सवालों पर सुनवाई करेगी। सिर्फ सर्विसेज मामले में कंट्रोल किसका हो, इस मुद्दे पर उठे संवैधानिक सवाल को संवैधानिक बेंच के सामने रेफर करते हैं। यानी जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच सर्विसेज का कंट्रोल किसके हाथ में हो, इस मामले में फैसला देगी।

दो जजों का भिन्न था मत

दरअसल, दिल्ली में प्रशासनिक सेवाएं किसके नियंत्रण में होंगी, इस पर सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 14 फरवरी 2019 को एक फैसला दिया था। लेकिन, उसमें दोनों जजों का मत अलग था, लिहाजा फैसले के लिए तीन जजों की बेंच गठित करने के लिए मामले को चीफ जस्टिस को रेफर कर दिया गया था। इसी बीच केंद्र ने दलील दी थी कि मामले को और बड़ी बेंच को भेजा जाए। दिल्ली में एलजी को ज्यादा अधिकार दिए जाने के खिलाफ दिल्ली सरकार की याचिका में केंद्र सरकार के 2021 के कानून को भी चुनौती दी गई थी, जो मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने पेंडिंग है। सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर भी सुनवाई कर रहा है।

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2018 में दिया था संवैधानिक बेंच ने फैसला

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि एलजी स्वतंत्र तौर पर काम नहीं करेंगे। अगर कोई अपवाद है तो वह मामले को राष्ट्रपति को रेफर कर सकते हैं और जो फैसला राष्ट्रपति लेंगे उस पर अमल करेंगे, यानी एलजी खुद कोई फैसला नहीं लेंगे। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने राजधानी दिल्ली में प्रशासन के लिए एक पैरामीटर तय किया है। शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद-239एए की व्याख्या की थी।

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