दिल्‍ली पुलिस पर हद से ज्‍यादा दबाव? एक दर्जन SHO ने लगाई थानों से हटाने की गुहार

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दिल्‍ली पुलिस पर हद से ज्‍यादा दबाव? एक दर्जन SHO ने लगाई थानों से हटाने की गुहार

दिल्‍ली पुलिस पर हद से ज्‍यादा दबाव? एक दर्जन SHO ने लगाई थानों से हटाने की गुहार

नई दिल्ली:दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर राकेश अस्थाना के कार्यकाल में कई साल तक एसएचओ रहने वाले इंस्पेक्टरों को थानों से हटाया गया। एक साल पहले 65 ऐसे इंस्पेक्टरों को थानों की कमान सौंपी गई थी, जो कभी एसएचओ नहीं रहे थे। इन्हीं में से एक इंस्पेक्टर थाने में एसएचओ बनकर परेशान हो गए। थाने से हटाने की गुहार हेडक्वॉर्टर को एक नहीं बल्कि चार बार लगाई, लेकिन हटाया नहीं गया। नौकरी के पांच साल बचे होने के बावजूद इंस्पेक्टर ने स्वैच्छिक सेवानिवृति (VRS) का फैसला किया। सूत्रों ने बताया कि अब करीब एक दर्जन एसएचओ हैं, जिन्होंने खुद को थाने से हटाने की दरखास्त हेडक्वॉर्टर को दी है। पुलिस सूत्रों ने बताया कि एसएचओ से हटने की चाहत रखने वाले इंस्पेक्टरों को भी हेडक्वॉर्टर बुलाकर बातचीत की जा रही है। आखिर वो थाने से क्यों हटना चाहते हैं, ताकि वहां होने वाली दिक्कतों का पता लग सके। इसकी भी जानकारी हो सके कि ऐसे इंस्पेक्टरों का उपयोग कहां किया जा सकता है।

सिरदर्दी भरा है SHO का काम
दिल्ली पुलिस से वीआरएस ले चुके पूर्व इंस्पेक्टर बताते हैं कि एसएचओ का काम काफी सिरदर्दी वाला है। पब्लिक डीलिंग से लेकर अफसरों तक की जवाबदेही के लिए 24 घंटे तैयार रहना पड़ता है। इससे पहले अधिकतर पोस्टिंग जांच यूनिट या ऑफिस वर्क में रही थी। ऐसे में 24 घंटे की नौकरी और जवाबदेही से तंग आ गए थे। एसएचओ वाला काम उनके मिजाज से फिट नहीं बैठ रहा था। छह महीने में चार बार अफसरों को थाने से हटाने के लिए लिखा था, लेकिन जब ट्रांसफर नहीं किया गया तो वीआरएस लेने का फैसला कर लिया।

ये हैं वजहें

  • 1. करीब 150 के स्टाफ को संभालने की मशक्कत। महज 30-40% कामकाज में सक्षम। इनसे ही सारा काम लेना।
  • 2. पुलिस स्टेशन में 24 घंटे अलर्ट मोड पर उपलब्ध रहना। इस वजह से फैमिली को समय नहीं दे पाने का मलाल।
  • 3. थाने के भीतर और इलाके में होने वाली हर बात के लिए जवाबदेह होना, जिससे एक अजीब तरह का दबाव।
  • 4. कई तरह की फटीग (थकान) का भी प्रेशर रहता है। महकमे के अलावा जान-पहचान वालों की भी रहती है काफी अपेक्षा।
  • 5. खाने-पीने का निश्चित समय नहीं होना। लगातार तनाव से शुगर और हाइपरटेंशन की बीमारी से ग्रसित होना।

पुलिस अफसर बताते हैं कि पुलिस स्टेशन में एसएचओ लगना दिल्ली पुलिस के लगभग हर इंस्पेक्टर की चाहत होती है। एक थाने में दो से ढाई साल तक एसएचओ रहने से हर तरह के आदमी से जुड़ाव होता है, जिससे उनका एक सामाजिक दायरा भी बनता है। यही वजह है कि एक समय था, इसके लिए हर तरह का जुगाड़ लगाया जाता था। कई लोग सालों तक थाने बदल-बदलकर एसएचओ लगते रहे। पिछले साल उन इंस्पेक्टरों को एसएचओ लगाने की शुरुआत की गई, जो अब तक नहीं रहे या सिर्फ एक बार ही रहे हैं। हो सकता है कि कुछ लोगों का मिजाज ही एसएचओ वाला ना हो।

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