दिग्विजय सिंह बनेंगे अध्यक्ष पद के उम्मीदवार, कांग्रेस को क्या हो सकता है फायदा और नुकसान

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दिग्विजय सिंह बनेंगे अध्यक्ष पद के उम्मीदवार, कांग्रेस को क्या हो सकता है फायदा और नुकसान

दिग्विजय सिंह बनेंगे अध्यक्ष पद के उम्मीदवार, कांग्रेस को क्या हो सकता है फायदा और नुकसान

भोपालः अब यह करीब-करीब तय हो गया है कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ेंगे। बुधवार देर रात दिल्ली पहुंचे दिग्विजय ने गुरुवार सुबह खुद बताया कि वे 17 अक्टूबर को अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनाव के लिए नामांकन करेंगे। दिग्विजय पहले ही कह चुके हैं कि वे पार्टी आलाकमान और खासकर गांधी परिवार की सहमति से ही नामांकन दाखिल करेंगे। इससे यह भी स्पष्ट है कि उन्होंने गांधी परिवार से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद नामांकन दाखिल करने की घोषणा की है। घोषणा के बाद से दिग्विजय के अध्यक्ष बनने से पार्टी को होने वाले नफा-नुकसान का आकलन शुरू हो गया है।

फायदे-
बेदाग छविः अपने विवादित बयानों के चलते अक्सर चर्चा में रहने वाले दिग्विजय के पॉलिटिकल करियर में कोई दाग नहीं है। विरोधियों ने उन पर आरोप तो कई बार लगाए, लेकिन कुछ साबित नहीं कर सके। बीजेपी अक्सर कांग्रेस शासन में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाती है, लेकिन दिग्विजय के सामने यह दांव शायद ही कारगर हो सके। बीजेपी के खिलाफ मुखर होकर बोलने वाले दिग्विजय अपनी बात रखने से कभी पीछे नहीं हटते, भले ही इसके लिए कितना भी विरोध झेलना पड़े।

गांधी परिवार के लिए चुनौती नहींः कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए किसी युवा का नाम सामने नहीं आने का सबसे बड़ा कारण गांधी परिवार का डर है। डर इस बात का कि कहीं आगे चलकर वह राहुल गांधी के लिए चुनौती न बन जाए। इस मामले में दिग्विजय सिंह की निष्ठा संदेह से परे है। वे करीब चार दशक से गांधी परिवार के विश्वासपात्रों में शामिल हैं। राजीव गांधी ने उन्हें साल 1987 में मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था। उनकी मौत के बाद उन्होंने सोनिया गांधी के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने में मदद की। फिर राहुल गांधी के मार्गदर्शक की भूमिका में आ गए। बीच के वर्षों में कई नेताओं ने पाला बदल लिया और पार्टी में गांधी परिवार के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन दिग्विजय ने केवल मजबूती से डटे रहे बल्कि विरोधियों का भरपूर प्रतिरोध भी किया।

पॉलिटिकल मैनेजमेंट का फायदाः दिग्विजय के लंबे राजनीतिक अनुभव का फायदा भी कांग्रेस पार्टी को मिलेगा। दस साल तक एमपी के मुख्यमंत्री रहने के अलावा वे पार्टी संगठन में भी कई अहम जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं। कांग्रेस के अलावा भी सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ उनके संबंध हैं। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिहाज से यह काफी महत्वपूर्ण हो सकता है। खासकर इसलिए भी कि कांग्रेस विपक्षी पार्टियों को बीजेपी के खिलाफ लामबंद करने की कोशिश में लगी है, लेकिन कई गैर-एनडीए पार्टियां भी उसके नेतृत्व को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। नरेंद्र मोदी के खिलाफ राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए मजबूत उम्मीदवार के रूप में पेश करने में भी दिग्विजय अहम भूमिका निभा सकते हैं।

नुकसान-
बीजेपी के लिए सॉफ्ट टारगेटः अपने विवादित बयानों के कारण दिग्विजय की छवि निगेटिव है। उनके बयान कई बार अल्पसंख्यक ही नहीं, बल्कि आतंकवादियों के समर्थन में लगते हैं। इसके चलते वे बीजेपी के लिए सॉफ्ट टारगेट हो सकते हैं।

हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरणः दिग्विजय की अल्पसंख्यक-समर्थक छवि के कारण बीजेपी के लिए हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण आसान हो सकता है। इस तरह का ध्रुवीकरण बीजेपी के लिए चुनावों में हमेशा फायदेमंद होता है। पिछले लोकसभा चुनाव में जब दिग्विजय भोपाल से कांग्रेस उम्मीदवार थे, तब बीजेपी ने उनके खिलाफ यही तरीका अपनाया था। साध्वी प्रज्ञा जैसी कट्टर हिंदुवादी नेता को उनके खिलाफ उतारकर मुकाबले को एकतरफा बना दिया था।

मिस्टर बंटाधार की छविः दिग्विजय की छवि पूरे देश में चाहे कैसी भी हो, लेकिन उनके गृह राज्य मध्य प्रदेश में लोकप्रियता बेहद कम है। लोग मुख्यमंत्री के रूप में उनके दस साल के कार्यकाल को याद कर सिहर उठते हैं। तब पूरे राज्य में बिजली और सड़क की समस्या बेहद गंभीर थी। बीजेपी नेता उन्हें अब भी मिस्टर बंटाधार कहकर संबोधित करते हैं। खुद दिग्विजय भी कह चुके हैं कि एमपी में वे प्रचार नहीं करते क्योंकि इससे कांग्रेस को वोट नहीं मिलते।

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