दशकों बाद भारतीय गेहूं किसान काट रहे चांदी, केंद्र सरकार की भी बल्‍ले-बल्‍ले, यह है वजह

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दशकों बाद भारतीय गेहूं किसान काट रहे चांदी, केंद्र सरकार की भी बल्‍ले-बल्‍ले, यह है वजह

लखनऊ: गेहूं किसान खुश हैं। सरकार भी खुश है। किसान बता रहे हैं क‍ि दशकों बाद उन्हें सरकारी कीमत यानी न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (MSP एमएसपी) से ज्‍यादा कीमत मिल रही है। यही कारण है क‍ि देश के ज्‍यादातर बड़े उत्‍पादक राज्‍यों में सरकारी मंडियों में गेहूं की खरीद की रफ्तार बहुत कम है। एक रिपोर्ट में दावा किया जा रहा क‍ि इस सत्र में सरकार की गेहूं खरीद पिछले 10 साल में सबसे कम रह सकती है। फिर भी किसानों को फायदा हो रहा। एमएसपी (MSP) यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस या फिर न्यूनतम सर्मथन मूल्य होता है। एमएसपी सरकार की तरफ से किसानों की अनाज वाली कुछ फसलों के दाम की गारंटी होती है। इसके तहत हुई खरीदी को सरकार राशन सिस्टम (PDS) के तहत जरूरतमंद लोगों को अनाज देती है।

किसानों को एमएसपी से ज्‍यादा मिल रही कीमत
उत्‍तर प्रदेश और मध्‍य प्रदेश, गेहूं उत्‍पादन के मामले में दूसरे राज्‍यों से सबसे आगे हैं। इन दोनों राज्‍यों में ज्‍यादातर किसान सरकारी मंडी की बजाय बाहर व्‍यापारियों को उपज बेच रहे हैं। वजह है क‍ि उन्‍हें वे अच्‍छी कीमत दे रहे हैं। भारत में गेहूं का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (MSP) 2,015 रुपए प्रति क्‍विंटल है।

मध्‍य प्रदेश के जिला धार के लोहारी बुजुर्ग गांव के किसान बनेसिंह चौहान बताते हैं, ‘इस बार अच्छी गुणवत्ता वाले गेहूं के लिए व्यापारी किसानों के घर भी पहुंच रहे हैं। वे 2,200 रुपये से लेकर 2,500 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर शरबती किस्म का गेहूं खरीद कर किसानों को तुरंत भुगतान भी कर रहे हैं।’ चौहान ने कहा कि उन्होंने किसानों से गेहूं खरीदने को लेकर व्यापारियों के बीच ऐसी होड़ पहले कभी नहीं देखी।

उत्‍पादन और निर्यात की स्‍थि‍त‍ि

देश में गेहूं की सबसे प्रीमियम किस्म शरबती ही है। इसे ‘द गोल्डन ग्रेन’ भी कहा जाता है, क्योकि इसका रंग सुनहरा होता है। यह हथेली पर भारी लगता है और इसका स्वाद मीठा होता है। इसलिए इसका नाम शरबती है।

मध्य प्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड के प्रबंध निदेशक विकास नरवाल ने कहा कि खुले बाजार में गेहूं की ऊंची कीमतों के कारण सूबे में इन दिनों गेहूं की सरकारी खरीद में 30 प्रतिशत की गिरावट देखी जा रही है। वे कहते हैं, ‘रूस-यूक्रेन संकट के कारण इस बार प्रदेश के गेहूं की निर्यात की मांग में जबर्दस्त उछाल है और मंडियों में इस खाद्यान्न की बंपर आवक हो रही है।’

नरवाल ने बताया कि पिछले विपणन सत्र के दौरान राज्य से 1.76 लाख टन गेहूं निर्यात किया गया था, जबकि मौजूदा विपणन सत्र में पिछले एक महीने के भीतर ही करीब 2.5 लाख टन गेहूं निर्यात किया जा चुका है और अभी सत्र खत्म होने में काफी समय बाकी है।

top wheat export country

गेहूं निर्यात करने वाले टॉप 10 देश

उत्‍तर प्रदेश के ज‍िला मिर्जापुर के किसान रमेश सिंह कहते हैं क‍ि पिछले वर्ष खुले बाजार में गेहूं की कीमत 1,500 रुपए प्रति क्‍विंटल के आसपास थी और सरकारी रेट 1,900 के करीब। लगभग 400 रुपये का अंतर था, इसलिए किसान सरकारी केंद्रों पर गेंहू बेच रहे थे। लेकिन इस बार इसके ठीक उलट हो रहा। हमें सरकार मंडी से ज्‍यादा दाम तो बाहर व्‍यापारी दे रहे हैं। ऐसे में किसान अपना गेहूं बाहर बेच रहा।

सहारनपुर में भी सही हाल है। किसानों का सरकारी गेहूं क्रय केंद्रों के प्रति रुझान कम हो गया है। नागल के सुनील चौटाला, बड़गांव के जनेश, अंबेहटा के अब्दुल्ला आदि किसानों का कहना है कि सरकारी केंद्र में गेहूं का दाम कम होने कारण किसान व्यपारियो को फसल बेच रहे हैं। सरकारी गेहूं क्रय केंद्र पर दाम 2,015 तय किया गया है, जबकि व्यापारी खेत पर पहुंचकर ही किसान को 2,100 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान कर रहे हैं। ऐसे में हमें प्रति क्‍विंटल 500 से 600 रुपए ज्‍यादा मिल रहा। तो जाह‍िर सी बात है क‍ि किसानों को जहां फायदा होगा, वह अपनी उपज वहीं बेचेगा।

पंजाब की मंडियों में व्यापारियों ने किसानों से सांठगांठ कर ली। वे एमएसपी से अधिक कीमत पर तो गेहूं खरीद रहे हैं। लेकिन भाव एमएसपी से महज पांच रुपये ज्यादा दे रहे हैं। मतलब कि उन्हें 2,020 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा है।

कीमत एमएसपी से ज्‍यादा कैसे?
दुनियाभर में गेहूं का निर्यात लगभग 200 मिल‍ियन टन होता है जिसमें रूस और उक्रेन का शेयर 50-50 मिलियन मीट्रिक टन है। वार की वजह से दोनों देशों की निर्यात लाइने बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं। ऐसे में भारतीय गेहूं के किसान के लिए अवसर के नए दरवाजे खुल गए हैं। भारतीय मंडियों में गेहूं की कीमत बढ़ गई जो अगले तीन से चार महीने तक ऐसी ही रह सकती है।

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अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में भी गेहूं की कीमतों में भी बढ़ोतरी हुई है। अमेरिका जैसे निर्यातक देशों में 7 मार्च को गेहूं की कीमत प्रत‍ि टन (10 क्‍विंटल) 40,212 रुपए पहुंच गई जो इससे पहले 3 मार्च तक 2,1000 से 22,000 रुपए टन थी। भारतीय कीमत के अनुसार देखें तो कीमत 2,500 से 4,000 रुपए प्रत‍ि क्‍विंटल रही। अमेरिका के अलावा ऑस्‍ट्रेलिया, अजेंटीना, कनाडा जैसे देशों में भी गेहूं की कीमत में भारी इजाफा हुआ है।

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भारतीय गेहूं किसानों को हो रहा फायदा।

अमेरिकी कृष‍ि विभाग के अनुसार रूस दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक देश है जबकि यूक्रेन चौथे नंबर पर है। यूक्रेन पाकिस्तान और बांग्लादेश सह‍ित कई खाड़ी देशों को अपना गेहूं निर्यात करता है। ऐसे में लड़ाई होने की वजह से आपूर्ति बाध‍ित है जो भारत के लिए नई संभावना की तरह है।

निर्यात बढ़ा, और बढ़ने की संभावना
2022-23 में भारत से गेहूं का निर्यात 10-15 मिलियन मीट्रिक टन के दायरे में हो सकता है। भारतीय व्यापारियों ने अप्रैल से जुलाई की अवधि के दौरान पहले ही 3-3.5 मिलियन मीट्रिक टन गेहूं निर्यात का अनुबंध कर लिया है। अप्रैल 2022 में रिकॉर्ड 8.5 मिट्रिक टन गेहूं का निर्यात किया भी जा चुका है। बंदरगाहों से निकटता और आसान आवाजाही की वजह से गेहूं की अधिकतम मात्रा गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश से भेजी जाएगी।

पिछले दिनों केंद्रीय खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय ने अपने बयान में कहा था क‍ि वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमतों में बढ़ोतरी से भारत का गेहूं निर्यात बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि गेहूं आपूर्ति में रूस और यूक्रेन का हिस्सा एक चौथाई है। दोनों देशों में अगस्त-सितंबर तक पैदावार मिलती है। मौजूदा संकट की वजह से सप्लाई प्रभावित हुई है, जिस वजह से गेहूं की कीमत रिकॉर्ड स्तर पर है। उन्‍होंने आगे कहा क‍ि फरवरी के अंत तक हम 66 लाख टन गेहूं का निर्यात कर चुके हैं। इससे पहले भारत ने 2013-14 में 65 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था। इस वित्त वर्ष का एक महीना अभी बाकी है। ऐसे में उम्मीद है कि इस बार भारत से गेहूं का निर्यात 70 लाख टन के स्तर को पार कर सकता है।

खरीद सत्र 2020-21 और 2021-22 की रिपोर्ट

खरीद सत्र 2020-21 और 2021-22 की रिपोर्ट

दिल्ली स्थित ट्रेडर राजेश पहाड़िया जैन बताते हैं कि भारत ने 330 डॉलर से 350 डॉलर यानी 25,000 से 27,000 रुपये प्रति टन के मूल्य के निर्यात ऑर्डर बुक किए हैं। भारत के अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वन्द्वियों के मुकाले यह 50 डॉलर प्रति टन तक सस्ता है। मार्च में भारत ने 78.5 लाख टन गेहूं का निर्यात किया है जो कि पिछले साल से 275 प्रतिशत ज्यादा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2022-23 में भारत का निर्यात 1.20 करोड़ टन तक जा सकता है।

भारत सरकार की वेबसाइट एग्री एक्‍सचेंज के अनुसार 2022 में अब तक भारत से कुल 14476.62 करोड़ रुपए का गेहूं निर्यात हो चुका है जबकि 2020-21 में ये निर्यात महज 4037.60 करोड़ रुपए का ही था।

मंडियों में खरीद की स्‍थित‍ि क्‍या है?
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि 25 अप्रैल तक मध्य प्रदेश में एफसीआई और राज्य एजेंसियों द्वारा 25.8 लाख टन की गेहूं खरीद का अनुमान लगाया गया था, जो पिछले साल की इसी अवधि के दौरान खरीदे गए 48.6 लाख टन से लगभग 47% कम है। इसी तरह, गुजरात में पिछले साल के 45,289 टन की तुलना में अब तक केवल छह टन गेहूं की खरीद हुई है, जबकि राजस्थान में खरीद घटकर 737 टन रह गई है, जबकि पिछले साल यह खरीद 4.86 लाख टन थी।

उत्तर प्रदेश में सरकारी एजेंसियों द्वारा बमुश्किल 77,707 टन गेहूं खरीदा गया है, जबकि पिछले साल यह 6.16 लाख टन था। इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि यूपी में सरकारी खरीद बड़े अंतर से पीछे छूट सकती है। यूपी में कुल खरीद लक्ष्य 60 लाख टन है। पंजाब में भी निजी कंपनियों ने लगभग 4.6 लाख टन गेहूं की खरीद की है, जो दर्शाता है कि निजी व्यापारियों द्वारा भारी खरीद की जा रही है।

सरकार क्‍यों खुश है?
भारत के गेहूं निर्यात में बढ़ोतरी की वजह से इस साल भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों में गेहूं की पहुंच कम होगी। लंबे समय बाद ऐसा होगा कि एफसीआई की खरीद में भारी कमी होगी। सरकारी दर पर कम खरीदी होने से सरकार की बचत होगी। पिछले साल भारत ने 43.34 टन गेहूं खरीदा था और इस पर 856 अरब रुपये खर्च क‍िये थे। अनुमान है कि इस साल एफसीआई की खरीद 30 फीसदी तक घट सकती है।



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