…तो ‘जुगाड़’ से निकल सकती है किसी के भी मोबाइल की कॉल डीटेल!

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…तो ‘जुगाड़’ से निकल सकती है किसी के भी मोबाइल की कॉल डीटेल!

…तो ‘जुगाड़’ से निकल सकती है किसी के भी मोबाइल की कॉल डीटेल!

नई दिल्लीः पुलिस अफसरों के मुताबिक, जानकारी मिली कि कुछ लोग डिटेक्टिव एजेंसी की आड़ में आम पब्लिक के मोबाइल की सीडीआर (कॉल डिटेल रिकॉर्ड) गैरकानूनी तरीके से निकालकर खरीद फरोख्त का काम कर रहे हैं। एएटीएस (एंटी ऑटो थेफ्ट स्क्वाड) टीम ने जांच शुरू की। इस बीच इनफॉर्मर ने रविवार 7 अगस्त को बताया कि एक मोबाइल फोन 783xxxxxxx की सीडीआर मंगवाने के लिए पवन कुमार नाम के शख्स से बात हुई है।

वो नोएडा की एक डिटेक्टिव एजेंसी में काम करता है। सीडीआर उपलब्ध करवाने के 25 हजार रुपये लेता है। यह भी बताया कि उस शख्स ने उसे सीडीआर देने के लिए एक ईमेल पासवर्ड देने को कहा है। सीडीआर निकलवाने के पैसे लेने के बाद उसकी नोएडा स्थित डिटेक्टिव एजेंसी के लोग उस ईमेल के ड्राफ्ट में अपलोड कर देंगे। उसके बाद वह सीडीआर को पेन ड्राइव में डाउनलोड करके दे देगा।

इस काम को सिरे से अंजाम तक पहुंचाने के लिए पुलिस टीम ने उस इनफॉर्मर को एक ईमेल आईडी बनाकर दे दी। सोमवार 8 अगस्त को सुबह दस बजे पुलिस टीम को जानकारी मिली कि सीडीआर मंगवाने की डील पक्की हो चुकी है। 25 हजार लेगा। वह दोपहर को रोहिणी सेक्टर 18 में आने वाला है।

आला अफसरों ने पुलिस टीम से एक को सीडीआर डील करने के लिए नकली ग्राहक बनाया। इंस्पेक्टर संदीप यादव की टीम तय समय पर सादे कपड़ों में पहुंच गई। एक हेड कॉन्स्टेबल को कस्टमर बनाकर डील के लिए खड़ा किया। साथ ही सरकारी खजाने से लिए हुए 500- 500 के 50 नोट, जिन पर पहचान का मार्क लगाकर जेब में रखे थे। जबकि टीम के बाकी मेंबर आसपास राउंड लेते रहे।

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, करीब 12 बजे वह शख्स बाइक से पवन नाम का शख्स पहुंचा। पुलिसकर्मी ग्राहक बनकर मिला। पवन से जो डील हुई थी, वह 25 हजार रकम थमा दी। फिर उस पवन को लैपटॉप दिया। उसने अपनी जेब से 64 GB की पेन ड्राइव निकाल कर लैपटॉप में लगाई। इनफॉर्मर को पहले से दी गई ईमेल आईडी पवन ने ओपन कर दी। उसके ड्राफ्ट मेसेज में से एक सीडीआर पेन ड्राइव में सेव की और वह पेन ड्राइव ग्राहक बने पुलिसकर्मी को दे दी। पेन ड्राइव मिलते ही पुलिस टीम ने पवन को काबू कर लिया।

पुलिस ने पेन ड्राइव को खोलकर चेक किया। जिसमें 783xxxxxx की सीडीआर एक्सल शीट के फॉर्मेट में मिली। पुलिस ने बरामद सीडीआर के बारे में पूछताछ की। उसने बताया कि वह यह सीडीआर अपनी नोएडा स्थित डिटेक्टिव एजेंसी कंपनी के माध्यम से मंगवाता है।

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, पूछताछ में पवन ने यह भी बताया कि उसकी डिटेक्टिव कंपनी अन्य की तरह सीडीआर, बैंक स्टेटमेंट, इनकम टैक्स रिटर्न, जीएसटी रिटर्न, मोबाइल लोकेशन और उसकी ओनरशिप निकाल कर क्लाइंट की जरूरत के हिसाब से उपलब्ध कराती है।

सूत्रों के मुताबिक, पवन ने कहा कि उसकी कंपनी ग्राहक से एक ईमेल पासवर्ड लेती है। फिर सीडीआर को दी गई उस ईमेल के ड्राफ्ट में अपलोड कर देते हैं। इस के बाद वह सीडीआर के एवज में पैसे लेने के बाद डाउनलोड करके अपने क्लाइंट को दे देते हैं। पुलिस टीम ने तलाशी लेकर पवन की जेब से मार्क किए हुए नोट भी बरामद कर लिए। पुलिस का कहना है, पवन जिस डिटेक्टिव कंपनी में काम करता है। वह कंपनी गैरकानूनी तरीके से मोबाइल फोन की सीडीआर निकालती है।

खुलासे के बाद इन सवालों के कौन देगा जवाब?

  1. पवन जासूस कंपनी का मोहरा, आखिर उसे सीडीआर किसने दी?
  2. पवन के कबूलनामे पर क्या जासूस एजेंसी के खिलाफ एक्शन?
  3. कर्मचारी के हाथों किसने निकालकर भिजवाई सीडीआर?
  4. जासूसी कंपनी के पास किस स्रोत के जरिए डिटेल पहुंची?
  5. सीडीआर निकालने के और कितने मास्टरमाइंड?

क्या होती है सीडीआर
सीडीआर का नाम समेत पूरा लेखा जोखा टेलीकम्यूनिकेशन कंपनी के पास होता है। किसी के मोबाइल की सीडीआर से पता चलता है किः

  1. कितने कॉल किए
  2. कितने कॉल रिसीव किए
  3. किन नंबरों पर कॉल की
  4. किन नंबरों से कॉल रिसीव हुई
  5. कॉल की डेट, टाइम
  6. कॉल करने की अवधि
  7. किन नंबरों पर मेसेज भेजे गए
  8. किन नंबरों से मेसेज रिसीव हुए
  9. किन नंबरों को डिलीट किया गया
  10. कॉल कहां से, किस लोकेशन से की गई


हर कोई सीडीआर हासिल नहीं कर सकता

लीगल एक्सपर्ट के मुताबिक, कानूनी तौर पर पुलिस, सीबीआई, इनकम टैक्स, ईडी, आईबी, एनआईए, एटीएस, एनसीबी और अन्य जांच एजेंसियां के पास ही सीडीआर निकालने का अधिकार है। लेकिन इसके लिए भी विभाग के उच्च अधिकारी की परमिशन लेना जरूरी है।

क्या कहता है नियम
नियम कहता है कि जिले का डीसीपी, एसपी रैंक का अधिकारी ही जांच के आधार पर किसी की सीडीआर के लिए मोबाइल नेटवर्क सर्विस देने वाली कंपनियों के नोडल ऑफिसर को लिखित में जानकारी मांग सकता है। लिहाजा हर कोई सीडीआर नहीं निकाल सकता।

सीडीआर के जासूस पहले भी रहे सुर्खियां में
@ 2013 में राष्ट्रीय पार्टी के नेता की कॉल डिटेल रिकॉर्ड निकालने के आरोप में दिल्ली पुलिस ने 10 लोगों को गिरफ्तार किया था। इनमें दिल्ली पुलिस के तीन पुलिसकर्मी शामिल था और एक प्राइवेट जासूस भी था।

@ 2013 में स्पेशल सेल ने सीडीआर निकलवाने के आरोप में तीन पुलिस वालों को गिरफ्तार किया गया। इनके साथ दो निजी जासूस भी पकड़े गए थे।

@ 2016 में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने एक निजी कंपनी से अनेकों सीडी की बरामदगी की। जिसमें दूसरे राज्य की पुलिस की मदद से ये सीडीआर निकलवाई गई थी।

उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह का कहना है, सीडीआर केवल अधिकृत पुलिस एजेंसीज ही प्राप्त कर सकती हैं। इसकी रोकथाम के लिए हमारा पुलिस सिस्टम बहुत गंभीर नहीं है। इससे पुलिस विभाग की विश्वसनीयता कम हो रही है, क्योंकि प्राइवेट लोगों के हाथ में वो सीक्रेट डॉक्यूमेंट जा रहे हैं, जो नहीं जाने चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के चार प्रमुख पार्ट हैं, जिनमें इनकमिंग कॉल, आउटगोइंग कॉल, मोबाइल का IMEI और मोबाइल आईडी। इनवेस्टिगेशन एजेंसियां इसके आधार पर सर्विस प्रोवाइडर से डिटेल लेती थी। लेकिन यह दिक्कत साल 2000 से शुरू हुई। गैर इनवेस्टिगेशन एजेंसी को इस टेक्नलॉजी के बारे जानकारी हुई, वो इसे जासूसी के लिए इस्तेमाल करने लगीं। यह प्राइवेट लोगों द्वारा पति-पत्नी, विवाहेतर संबधों में जासूसी के लिए किया जाने लगा, जिसका मिसयूज होना लाजमी था। आपको याद होगा कि यूपी के एक बड़े नेता के साथ यह केस हुआ था। इसमें प्राइवेट डिटेक्टिव ऐजेंसी ने सीडीआर ही नहीं, बल्कि पूरी सर्विलांस में सेंध लगा चुका था। मेरी नजर में कानून के एंगल से आईटी एक्ट का अपराध है। राइट टु प्राइवेसी और ऑफिशियल सीक्रेट्स का बड़ा उल्लंघन है। इस पर रोकथाम और सख्त कार्रवाई की जरूरत है।

विक्रम सिंह, पूर्व डीजीपी

गैरकानूनी ‘साठगांठ’ से सीडीआर का खेल
CDR निकालने के जुर्म में गिरफ्तारी पर दिल्ली के जाने माने प्राइवेट डिटेक्टिव संजीव देशवाल (प्रेजिडेंट सर्टिफाइड प्राइवेट डिटेक्टिव असोसिएशन) का कहना है कि देश में प्राइवेट डिटेक्टिव प्रफेशन के नाम पर तकरीबन 3 हजार कंपनियां चल रही हैं। जिनमें से बहुत कम कंपनियां कानूनी दायरे में रहते हुए इन्वेस्टीगेशन कर अपने क्लाइंट की मांग को पूरा करती हैं। कुछ प्राइवेट डिटेक्टिव कुछ दिन बड़ी कंपनियों में काम करके जल्दी से जल्दी पैसा कमाने के लालच में गैरकानूनी काम पर उतर आते हैं। ऐसे तथाकथित प्राइवेट डिटेक्टिव का भ्रष्ट पुलिस वाले साथ देते हैं। हैरानी की बात ये है कि पिछले 15 साल देश में अनेकों प्राइवेट डिटेक्टिव गैरकानूनी तरीके से सीडीआर निकालते हुए पकड़े गए। लेकिन आज तक किसी को भी इसमें सजा नहीं हुई। वजह है ‘साठगांठ’।

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