तेल मंगाने वाला भारत बन जाएगा सबसे बड़ा एनर्जी एक्सपोर्टर! जानिए क्या है मुकेश अंबानी का सॉलिड प्लान

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तेल मंगाने वाला भारत बन जाएगा सबसे बड़ा एनर्जी एक्सपोर्टर! जानिए क्या है मुकेश अंबानी का सॉलिड प्लान

भारत दुनिया में कच्चे तेल (crude) के बड़े आयातक देशों में से एक है। देश के आयात बिल (import bill) में कच्चे तेल में हिस्सेदारी बहुत अधिक है। लेकिन जल्दी ही यह स्थिति बदल सकती है। भारत दुनिया में एनर्जी का बड़ा एक्सपोर्टर बन सकता है। सरकार ने देश में ग्रीन एनर्जी (green energy) को बढ़ावा देने के लिए महत्वाकांक्षी योजना बनाई है लेकिन इसे सफल बनाने में मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और गौतम अडानी (Gautam Adani) जैसे उद्योगपतियों की भूमिका अहम है।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) की ग्रीन एनर्जी योजना से भारत हाइड्रोजन (Hydrogen) के उत्पादन में हब बनकर उभर सकता है। एशिया के सबसे बड़े रईस और रिलायंस के चेयरमैन अंबानी ने ग्रीन एनर्जी में 75 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है। जानकारों का कहना है कि कंपनी हाइड्रोजन पर जोर दे सकती है। ग्रीन हाइड्रोजन पानी और क्लीन इलेक्ट्रिसिटी से बनती है और इसे भविष्य का ईंधन कहा जा रहा है।

हाइड्रोजन पर जोर
नई दिल्ली के थिंक टैंक CEEW में सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस के डायरेक्टर गगन सिद्धू ने कहा कि रिलायंस ग्रीन हाइड्रोजन इकॉनमी की पूरी वैल्यू चेन को अपने हाथ में लेने की तैयारी में है। कंपनी को इसमें भविष्य दिख रहा है। ग्रीन हाइड्रोजन उत्सर्जन की समस्या से निपटने के लिए अहम माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने पिछले साल भारत को ग्रीन एनर्जी के उत्पादन और एक्सपोर्ट का हब बनाने के लिए एक योजना की घोषणा की थी।

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हालांकि रिलायंस ने अभी इस बात का खुलासा नहीं किया है कि 75 अरब डॉलर के निवेश में से कितना हिस्सा हाइड्रोजन के लिए होगा। अडानी एंटरप्राइजेज, एनटीपीसी (NTPC Ltd.) और आईओसी (Indian Oil Corp.) ने भी ग्रीन हाइड्रोजन के लिए योजना बनाई है। हाइड्रोजन के लिए योजना बनाने वाले देशों की संख्या एक साल में दोगुना होकर 26 हो गई है। माना जा रहा है कि भारत, ब्राजील, अमेरिका और चीन के प्लान ग्लोबल मार्केट में तहलका मचा सकते हैं।

कैसे हासिल होगा लक्ष्य
लेकिन अभी यह सेक्टर एक्सपेरीमेंटल चरण में है और इसे कमर्शियली व्यावहारिक बनने में समय लगेगा। भारत की उम्मीदें पूरी तरह अंबानी और अडानी पर टिकी हैं। इसमें सबसे बड़ी चुनौती उत्पादन लागत में कमी लाना है। अंबानी ने एक डॉलर प्रति किलो के भाव पर ग्रीन हाइड्रोजन बनाने का लक्ष्य रखा है। यह इसकी मौजूदा लागत से 60 फीसदी कम है।

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अंबानी ने पिछले साल कहा था कि रिलायंस इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए आक्रामकता के साथ आगे बढ़ रही है। Deloitte Touche Tohmatsu में पार्टनर देवाशीष मिश्रा ने कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए इलेक्ट्रोलाइजर्स की कीमत में भारी कमी की जरूरत होगी। ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए इस इक्विपमेंट की जरूरत होती है। इसके अलावा 80 फीसदी से ज्यादा कैपेसिटी यूटिलाइजेशन की जरूरत होगी और हर घंटे तीन सेंट प्रति किलोवाट से भी कम कीमत पर बिजली सप्लाई चाहिए।

सरकारी मदद
भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन में रिफाइनरीज के डायरेक्टर रहे आर रामचंद्रन ने कहा कि कोई नहीं जानता कि हम वहां पहुंच सकते हैं या नहीं। अगर रिलायंस सफल होती है तो इसमें अच्छी संभावना है। अगर वह इसमें नाकाम रहती है तो फिर सरकारी सब्सिडी की जरूरत पड़ सकती है। सरकार की अगले कुछ दिनो में पहली ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी जारी करने की योजना है।

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ग्रीन एनर्जी के लिए रिलायंस गुजरात में जगह खोज रही है। उसने कच्छ में राज्य सरकार से 450,000 एकड़ जमीन मांगी है। कोलंबिया युनिवर्सिटी के Center on Global Energy Policy में सीनियर रिसर्च स्कॉलर जूलियो फ्रीडमन (Julio Friedmann) ने कहा कि रिलायंस ने सही क्षेत्रों की पहचान की है। ग्रीन हाइड्रोजन और सोलर में वह कमाल कर सकती है।

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