तुर्की सीरिया में आया भूकंप क्यों है दिल्ली-एनसीआर के लिए खतरे की घंटी, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स

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तुर्की सीरिया में आया भूकंप क्यों है दिल्ली-एनसीआर के लिए खतरे की घंटी, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स

तुर्की सीरिया में आया भूकंप क्यों है दिल्ली-एनसीआर के लिए खतरे की घंटी, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स

नई दिल्ली:दिल्ली-एनसीआर भूकंप के लिहाज से संवेदनशील है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में छोटे-छोटे कई भूकंप के झटके यहां आए भी हैं। इससे पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर के फॉल्ट एक्टिव हैं। हालांकि यहां के फॉल्ट से राजधानी को बड़ा खतरा नहीं हैं, बल्कि राजधानी को हिमालय बेल्ट से सबसे अधिक खतरा है। विशेषज्ञों के अनुसार, घनी आबादी वाली दिल्ली में 6.5 की तीव्रता से आया भूकंप भारी नुकसान कर सकता है। लेकिन यहां 5.5 का मध्यम तीव्रता वाला भूकंप भी काफी नुकसान पहुंचा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां के ज्यादातर इमारतों की हालत काफी खराब है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
एनसीएस (नैशनल सेंटर ऑफ सिस्मेलॉजी) के रिकॉर्ड के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर के फॉल्ट में सन् 1700 से लेकर अब तक चार बार रिक्टर स्केल पर 6 या इससे अधिक तीव्रता के भूकंप आ चुके हैं। 27 अगस्त 1960 को 6 की तीव्रता वाला भूकंप आया था, जिसका केंद्र फरीदाबाद था। वहीं 1803 में 6.8 तीव्रता का भूकंप आया था जिसका केंद्र मथुरा था। इस बेल्ट में 5.5 तीव्रता के भूकंप की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। एनसीएस के पूर्व हेड डॉ. ए. के. शुक्ला के अनुसार, राजधानी को हिमालयी बेल्ट से काफी खतरा है। जहां 8 तीव्रता वाले भूकंप आने की क्षमता भी है। यहां पिछले कई वर्षों से बड़ा भूकंप नहीं आया है। ऐसे में यहां भूकंप के आने की प्रबल संभावना है, लेकिन यह कब आएगा इसे लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता। यदि यहां बड़ा भूकंप आता है तो राजधानी पर इसका काफी असर पड़ेगा।

30% दिल्ली अधिक संवेदनशील
दिल्ली-एनसीआर भूकंप के लिहाज से जोन-4 में है। यहां कुछ फॉल्ट लाइन हैं जिसमें मुरादाबाद, पानीपत और सोहना शामिल है। इनमें 5.5 तीव्रता वाले भूकंप की क्षमता है, लेकिन यह कहा नहीं जा सकता कि यह भूकंप कब आएगा। 2014 में एनआईएस ने माइक्रो जोन स्टडी की थी जिसके मुताबिक राजधानी का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा जोन-5 में है, जो भूकंप को लेकर सबसे अधिक संवेदनशील है। इन हिस्सों में ज्यादा तैयारियां की जानी चाहिए। पुरानी बिल्डिंगों को भूकंप के लिए तैयार करने की जरूरत है।

6.5 तीव्रता के भूकंप से बड़ी तबाही मुमकिन
दिल्ली-एनसीआर की आबादी काफी बढ़ चुकी है। ऐसे में 6 तीव्रता वाला भूकंप यहां काफी नुकसान पहुंचा सकता है। यदि दिल्ली के 200 किलोमीटर दूर हिमालयी क्षेत्र में 7 या इससे अधिक तीव्रता का भूकंप आता है, तो भी राजधानी के लिए बड़ा खतरा है। भूकंप के लिहाज से दिल्ली-एनसीआर की ऊंची इमारतें यहां सुरक्षित नहीं हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, कई इमारतों का गलत तरीके से निर्माण इन्हें जमींदोज भी कर सकता है।

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यहां की इमारतों में इस्तेमाल होने वाली निर्माण सामग्री ऐसी है, जो भूकंप के झटकों का सामना करने में पूरी तरह से सक्षम नहीं है। दिल्ली में मकान बनाने की निर्माण सामग्री ही आफत की सबसे बड़ी वजह है। इससे जुड़ी एक रिपोर्ट वल्नेरेबिलिटी काउंसिल ऑफ इंडिया ने तैयार की थी, जिसे बिल्डिंग मैटीरियल एंड टेक्नोलॉजी प्रमोशन काउंसिल ने प्रकाशित भी किया है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि दिल्ली के 91.7 प्रतिशत मकानों की दीवारें पक्की ईंटों से बनी हैं, जबकि कच्ची ईंटों से 3.7 प्रतिशत मकानों की दीवारें बनी हैं। एक्सपर्ट के अनुसार, कच्ची या पक्की ईंटों से बनी इमारतों में भूकंप के दौरान सबसे ज्यादा दिक्कत आती है। ऐसे में इस मैटीरियल से बिल्डिंग बनाते वक्त सावधानी बरतनी चाहिए और विशेषज्ञों से सलाह जरूर लेनी चाहिए।

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हिमालय बेल्ट में बड़े भूकंप का असर कहां तक
डॉ. ए. के. शुक्ला के अनुसार, यदि मध्य हिमालयी क्षेत्र में बड़ा भूकंप आया तो दिल्ली-एनसीआर के अलावा आगरा, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी और पटना तक का क्षेत्र प्रभावित हो सकता है। बड़े भूकंप की स्थिति में करीब 400 किलोमीटर का क्षेत्र प्रभावित हो सकता है। किसी भी बड़े भूकंप का असर 300 से 400 किलोमीटर तक की रेंज में दिखता है, जबकि हिमालय फॉल्ट लाइन दिल्ली से 200 से 250 किलोमीटर ही दूर है। एक्सपर्ट के अनुसार, 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप ने करीब 400 किलोमीटर दूर अहमदाबाद में भी बड़े पैमाने पर तबाही मचाई थी। उस भूकंप की तीव्रता 7.7 रही थी। दिल्ली में जमीन की सतह भी थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बदल रही है। इसलिए भूकंपरोधी योजनाएं बनाते समय इसका ध्यान भी रखे जाने की जरूरत है।

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डॉ. शुक्ला के अनुसार, राजधानी के कुछ इलाकों में पथरीली जमीनी है तो कुछ में गहराई तक भुरभुरी मिट्टी है। दोनों तरह की सतह के लिए एक जैसे भूकंपरोधी प्लान नहीं हो सकते। इसलिए हमें जोन में बांटकर अलग-अलग प्लान तैयार करने होंगे। ड्राफ्ट मास्टर प्लान-2041 में भी भूकंप, बाढ़ और आग पर खास फोकस किया गया है। इसमें ऊंची इमारतों और कमानों की खराब गुणवत्ता पर चिंता जाहिर की गई। आपदा से बचाने के लिए राजधानी में पूरी दिल्ली का स्ट्रक्चरल ऑडिट करने की बात कही गई है।

किन क्षेत्रों को है भूकंप से अधिक खतरा
रेड जोन – यमुना फ्लड प्लेन, पटपड़गंज, मयूर विहार, प्रीत विहार, लक्ष्मी नगर, अक्षरधाम

ऑरेंज जोन – जनकपुरी, वजीराबाद, गीता कॉलोनी, सरिता विहार, लुटियंस जोन, जहांगीरपुरी, पश्चिम विहार, रोहिणी, रिठाला, नॉर्थ कैंपस

ग्रीन जोन – जेएनयू, एम्स, छतरपुर, नारायणा, वसंत कुंज, हौज खास

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