झारखंड के बाद अब राजस्थान में उठी मांग… जाट नेताओं की OBC आरक्षण बढ़ाने की डिमांड, क्या होगा असर?

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झारखंड के बाद अब राजस्थान में उठी मांग… जाट नेताओं की OBC आरक्षण बढ़ाने की डिमांड, क्या होगा असर?

झारखंड के बाद अब राजस्थान में उठी मांग… जाट नेताओं की OBC आरक्षण बढ़ाने की डिमांड, क्या होगा असर?

जयपुर: अन्य पिछड़ा वर्ग यानी (ओबीसी) का 27 प्रतिशत आरक्षण कई राज्यों में चुनावी मुद्दा बना हुआ है। झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पैरवी के बाद लगभग माना जा रहा कि जल्द ही यहां केंद्र की तरह की राज्य में भी 27 प्रतिशत आरक्षण लागू हो जाएगा। लगभग डेढ़ साल बाद राजस्थान में भी चुनाव होने वाले हैं। इसी बीच अब यहां भी ओबीसी आरक्षण को 27 प्रतिशत तक बढ़ाने की मांग जोर पकड़ने लगी है। जाट समुदाय की ओर से इसे बढ़ाने की खासतौर पर मांग की जा रही है। उनका कहना है कि सर्वाधिक शामिल जातियों वाले ओबीसी वर्ग को 21 प्रतिशत आरक्षण राज्य में मिल रहा है, जो पर्याप्त नहीं है। वहीं इससे जाट समुदाय को इससे सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। लिहाजा इसे बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि जाट समुदाय को इसका सही लाभ मिल सके।

ओबीसी आरक्षण को लेकर राजस्थान में मचे घमासान के बीच राजस्थान जाट महासभा अध्यक्ष राजाराम मील ने कहना है कि कास्ट बेस्ड सर्वे के आधार पर रिजर्वेशन स्कीम लागू होनी चाहिए। उन्होंने शनिवार को जयपुर में हुई बैठक के बाद कहा कि आरक्षण का लागू करने से पहले उसका सर्वेक्षण होना चाहिए। इसके बाद नए सिरे से राजस्थान में ओबीसी आरक्षण को लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने झारखंड का उदाहरण देते हुए राजस्थान में भी ओबीसी आरक्षण को बढ़ाए जाने की मांग भी रखी है। मील का कहना है कि आरक्षण का प्रतिशत बढ़ने से राजस्थान में ओबीसी की विसंगति दूर होगी। वहीं ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसका लाभ मिल सकेगा। राजस्थान में अभी ओबीसी वर्ग के लिए 21 प्रतिशत के आरक्षण का प्रावधान है।

पूर्व कैबिनेट मंत्री हरीश चौधरी ने भी खोला सरकार के खिलाफ मोर्चा
राजस्थान में ओबीसी आरक्षण में विसंगति की बात सामने आने के बाद पूर्व कैबिनेट मंत्री और पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश चौधरी ने इसे लेकर नाराज है। दो दिन पूर्व हुई कैबिनेट की बैठक में इसका हल नहीं निकलने के बाद हरीश चौधरी ने इस मुद्दे पर सीएम अशोक गहलोत को घेर लिया। उन्होंने ट्वीट कर आगे जाट समुदाय की ओर से आंदोलन किए जाने की चेतावनी तक दे दी। बताया जा रहा है कि विधि विशेषज्ञों से सीएम गहलोत अब सलाह लेकर ओबीसी आरक्षण की विसंगति को दूर करने और प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को सही तरीके से लागू करने के लिए सलाह मशविरा ले रहे हैं।

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क्या है विसंगति, 17 अप्रेल 2018 का यह नियम
दरअसल भूतपूर्व सैनिकों को सरकारी नौकरी में वर्ष 1988 से आरक्षण प्राप्त है। उन्हें होरिजेंटल आरक्षण के तहत राज्य सेवा में 5 प्रतिशत, अधीनस्थ सेवाओं में 12.5 प्रतिशत और चतुर्थ श्रेणी की सेवाओं में 15 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है। पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे के कार्यकाल में 17 अप्रेल 2018 को कार्मिक विभाग ने भूतपूर्व सैनिकों के आरक्षण नियमों में बदलाव किया। इस बदलाव के तहत होरिजेटल आरक्षण नियम में आरक्षित वर्गों के पदों की तय संख्या की सीमा को खत्म कर दिया। इससे ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों की मुश्किलें बढ़ गई।

ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों की बढ़ी इससे मुश्किलें
चूंकि प्रदेश में 90 प्रतिशत भूतपूर्व सैनिक ओबीसी वर्ग से आते हैं। इसलिए आरक्षित वर्ग के पदों की तय संख्या सीमा को खत्म करने से ओबीसी के भूतपूर्व सैनिक 12.5 प्रतिशत पदों के साथ ओबीसी वर्ग के अन्य पदों पर भी चयनित होने लगे। जिससे ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों का अपने वर्ग के पदों पर चयन होना मुश्किल हो गया। राजस्थान में पिछले कुछ वर्षों में हुई भर्तियों में ओबीसी वर्ग के सभी पदों पर भूतपूर्व सैनिकों का चयन हुआ।

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जानिए, वर्टिकल और होरिजेंटल आरक्षण क्या है…
वर्टिकल आरक्षण का तात्पर्य जन्मजात दिए जाने वाले आरक्षण से है। यानी कोई व्यक्ति जिस जाति में जन्म लेता है, उसे राज्य सरकार की ओर से दिए गए जातिगत आरक्षण में उस जाति को दिए गए आरक्षण के तहत ही आरक्षण का लाभ मिलता है। जैसे कोई व्यक्ति जाट, सैनी, यादव, कुमावत, विश्नोई आदि जाति में जन्म लेता है तो उन्हें आरक्षण व्यवस्था के तहत ओबीसी वर्ग का लाभ मिलेगा।

होरिजेंटल आरक्षण का तात्पर्य आरक्षण में दिए गए आरक्षण से है। यानी आरक्षण में आरक्षण। सरकारी नौकरियों में भूतपूर्व सैनिक, दिव्यांग, विधवा, परित्यक्ता और उत्कष्ट खिलाड़ियों को होरिजेंटल आरक्षण प्राप्त है। इन्हें होरिजेंटल आरक्षण के तहत आरक्षण का दोहरा फायदा मिलता है। अर्थात पहले भूतपूर्व सैनिक या उत्कष्ट खिलाड़ी होने का लाभ मिलेगा। साथ ही उन्हें अपनी जाति के आरक्षण का भी लाभ मिलेगा।

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