जेल में बंद मुस्लिम नेताओं से मिलने क्यों नहीं जाते हैं अखिलेश, सवाल उठाकर मायावती क्या कहना चाह रहीं?

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जेल में बंद मुस्लिम नेताओं से मिलने क्यों नहीं जाते हैं अखिलेश, सवाल उठाकर मायावती क्या कहना चाह रहीं?

जेल में बंद मुस्लिम नेताओं से मिलने क्यों नहीं जाते हैं अखिलेश, सवाल उठाकर मायावती क्या कहना चाह रहीं?

लखनऊ : अखिलेश यादव ने बीते सोमवार आजमगढ़ पहुंचकर बाहुबली विधायक रमाकांत यादव से मुलाकात की थी। अब इस मु्द्दे पर राजनीति तेज हो गई है। बुधवार को बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक के बाद एक दो ट्वीट कर अखिलेश यादव पर जमकर हमला बोला है। मायावती ने इस मुलाकात को हिंदू वर्सेस मुस्लिम करते हुए बड़ा कार्ड खेला है, और समाजवादी पार्टी की नीतियों पर सवाल उठाया है। मायावती ने अपने ट्वीट में कहा कि अखिलेश यादव बाहुबली विधायक से मुलाकात करके सहानभूति व्यक्त कर रहे हैं, वे मुस्लिम नेताओं से मिलने जेल क्यों नहीं जाते है? जाहिर सी बात है बसपा सुप्रीमो का इशारा सपा के कद्दावर नेता आजम खान को लेकर है। फिलहाल मुस्लिम वोटरों का खासा अलगाव झेल रही बसपा इस मुलाकात को हिंदू वर्सेस मुस्लिम बनाकर पार्टी से दूरी बनाए मस्लिमों को साधने की कोशिश में दिख रही है।

क्या कहते हैं चुनावी आंकड़े

साल 2007 में जब मायावती यूपी की सत्ता में आई थीं तब मुस्लिम वोटरों ने अच्छी खासी संख्या में बहनजी को वोट किया था। मगर 2022 के चुनावों में सपा ये धारणा बनाने में कामयाब रही कि बीजेपी का तोड़ सपा ही हो सकती है। इस बात का सीधा फायदा भी सपा को मिला और 95 प्रतिशत तक मुस्लिमों ने सपा की झोली में अपना वोट डाला। हालांकि सपा सूबे में सरकार नहीं बना पाई और 274 सीटों के साथ योगी आदित्यनाथ दोबारा प्रदेश के सीएम बने। मुस्लिम वोट बैंक की हितैशी पार्टी बनने की होड़ में जाहिर है, इस अलगाव को मायावती पसंद नहीं करेंगी। इसके लिए बसपा प्रदेश के मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर मोड़ने के लिए हर संभव जतन करेंगी। शायद इसी का एक उदाहरण है जब मायावती ने आज अखिलेश यादव के आजमगढ़ जेल में बंद रमाकांत यादव की मुलाकात को हिंदू वर्सेस मुस्लिम करने की पूरी कोशिश की है।

मायावती का ट्वीट

आजम को दरकिनार करने से अखिलेश को झेलना पड़ा था नुकसान
आजम के जेल में रहते हुए उनसे नहीं मिलने जाने के फैसले से अखिलेश को नुकसान भी झेलना पड़ा। मुस्लिम वोट बैंक भी झटकता दिखा और साथ ही कई मुस्लिम नेताओं ने सपा का साथ भी छोड़ दिया। इस दौरान उनकी छवि पर असर पड़ा। आजम खान के मामले में की गई गलती को अखिलेश दोहराना नहीं चाहते हैं। आजमगढ़, अंबेडकरनगर, मऊ, जौनपुर, गाजीपुर जैसे जिले समाजवादी पार्टी का स्ट्रॉगहोल्ड माने जाते हैं। अखिलेश इस बेल्ट में कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहते होंगे।

वहीं मार्च में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में सपा को मिली करारी हार के बाद पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं के दिन मुश्किल में गुजर रहे हैं। अधिकतर नेताओं और कार्यकर्ताओं पर पहले से कई मुकदमे चल रहे हैं। पुलिस और प्रशासन की सख्ती भी लगातार बढ़ी हुई है। ऐसे में अखिलेश की कोशिश यही होगी कि अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश दे सकें कि वह साथ में खड़े हैं। अपनी छवि को सुधारने के चलते अखिलेश यादव ने हाल ही में आजम खान का सपोर्ट करते हुए चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को डीजीपी से मुलाकत के लिए भेजा था। वहीं उससे पहले अखिलेश यादव, आजम की तबीयत अचानक खराब होने पर दिल्ली के गंगा राम अस्पताल भी पहुंचे थे। 2024 में लोकसभा चुनाव में बमुश्किल डेढ़ साल का समय बचा है। अब देखना होगा आने वाले समय में सपा बसपा में कौन सी पार्टी मुस्लिम वोटरों को साधने में सफल होती है।

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