जेब में 6 रुपये लिए बेशकीमती सपने की थी चाह…समुद्र से निकली सीप जैसी है गजराज राव की जिंदगी

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जेब में 6 रुपये लिए बेशकीमती सपने की थी चाह…समुद्र से निकली सीप जैसी है गजराज राव की जिंदगी

जेब में 6 रुपये लिए बेशकीमती सपने की थी चाह…समुद्र से निकली सीप जैसी है गजराज राव की जिंदगी

बॉलीवुड या फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई एक्टर्स होते हैं, जिनकी पर्सनैलिटीज एकदम कलाकार वाली होती हैं। उनमें से कुछ तो अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो जाते हैं लेकिन कुछ के लिए ये रास्ता बहुत मुश्किल हो जाता है। इसी चक्कर में ऐसे मंझे हुए कलाकार पीछे रह जाते हैं। आज हम ‘सैटरडे सुपरस्टार’ में एक्टर गजराज राव की कहानी लेकर आए हैं। वैसे तो गजराव राव फिलहाल काफी अच्छे रोल्स प्ले कर रहे हैं लेकिन एक वक्त था जब इन्हें दर-दर भटकना पड़ रहा था।

ऐसे-ऐसे काम करते थे गजराज राव
1994 में शेखर कपूर की ‘बैंडिट क्वीन’ में रोल करने से पहले गजराज राव (Gajraj Rao) को एक सिलाई और स्टेशनरी की दुकान पर काम करने जैसे अजीब काम करने पड़े। इसके बारे में बात करते हुए राव ने एक बातचीत में खुलासा किया कि उन्होंने 1989 में हिंदुस्तान टाइम्स के लिए भी लिखा था, कुछ ऐसा जो अभी भी बहुतों को पता नहीं है। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान महमूद, उत्पल दत्त और फिल्म निर्माता यश चोपड़ा जैसी प्रतिष्ठित हस्तियों का इंटरव्यू लिया।

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धक्के खाकर मिली है ये जिंदगी
राव ने एक्टिंग करियर से पहले अपने जीवन के बारे में बताया, ‘धक्के बहुत ज्यादा खाए हैं मैंने। मेरे पास एक ढंग की जिंदगी नहीं थी क्योंकि घर की स्थिति बड़ी खराब थी। सब कुछ हमारे हाथ में नहीं था। तो इन नौकरियों ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। मैं हमेशा कहता हूं कि यह बहुत बड़ी मुश्किल वाली जिंदगी थी लेकिन मुझमें आग थी कि मैं कुछ करना चाहता हूं और अपने परिवार को एक अच्छा जीवन देना चाहता हूं।’

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जेब में पड़े थे 6 रुपये
मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले राव अपने एक्टिंग करियर से पहले काम की तलाश में अक्सर मुंबई जाते थे। एक घटना को याद करते हुए जहां उनकी जेब में केवल छह रुपये थे, राव ने अपना दिल खोला, ‘मुंबई जाने से पहले, मैं काम की तलाश में शहर गया था। मैं एक महीने से अपने दोस्त के यहां रह रहा था और एक स्क्रिप्ट लिख रहा था। उस समय, पैसे मेरे खत्म हो गए थे। मैं उस स्क्रिप्ट को सुनाने के लिए अंधेरी से वर्ली गया और उन्होंने मेरी स्क्रिप्ट को ठुकरा दिया। मेरी जब में कुल मिलाकर 5-6 रुपये थे। मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। क्या मैं उन छह रुपये में घर वापस जाने के लिए लोकल ट्रेन से जाऊं या कुछ खा लूं। मुझे प्योर उम्मीद थी की मेरी स्क्रिप्ट मंजूर हो जाएगी और मुझे एडवांस मिल जाएगा। मेरी आंखें में पानी आ गया कि मैं करुंगा क्या?’

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दोस्त से लेने पड़े पैसे
राव बताते हैं कि कैसे उन्होंने दिल्ली वापस जाने के लिए अपने दोस्त से 500 लिए। इसपर उन्होंने बताया, ‘मैंने उसे सबकुछ बताया और उसने मुझे 500 रुपये दिए। तब यह बहुत बड़ी रकम थी। शर्मिंदगी भी हो रही थी मुझे की ये स्थिति आई है मेरी, मुझे ये सब करना पड़ रहा है। लेकिन यह एक सीख थी कि मुझे किसी के वादों का पालन नहीं करना चाहिए। क्योंकि जिस निर्माता ने मुझे बुलाया था, उसने कहा था कि चिंता मत करो, भले ही स्क्रिप्ट काम न करे।’

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एक्टिंग के शौक ने कुछ भी करने पर किया मजबूर
गजराज राव जल्द ही आकर्ष खुराना की ‘गुनेहगार’ के साथ टेलीप्ले की शुरुआत करेंगे। उन्होंने अपनी शुरुआत के दिनों के बारे में कहा, ‘जब मुझे छोटे हिस्से मिलते थे, तब भी मैं देखता था कि मुझसे ज्यादा प्रतिभाशाली एक्टर हैं जिनके पास कोई काम नहीं था, जबकि मुझे काम मिल रहा था। मैंने बहुत पहले ही तय कर लिया था कि मैं खुद को आर्थिक रूप से मजबूत रखना चाहता हूं। क्योंकि मैं अपनी आर्थिक परिस्थितियों के कारण एक महान जीवन से नहीं आया, खीच तान के घर चलते हैं। साथ ही, आपकी जो संघर्ष है आपकी नहीं होती, आपके परिवार की भी होती है। मैंने फैसला किया कि एक्टिंग का शौक तब करो जब जेब में पैसे हो, उधार न लेना पड़े।’