जेपी की भूमि…लालू यादव का गढ़, अमित शाह के छपरा दौरे के पीछे है बीजेपी का बड़ा दांव

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जेपी की भूमि…लालू यादव का गढ़, अमित शाह के छपरा दौरे के पीछे है बीजेपी का बड़ा दांव

जेपी की भूमि…लालू यादव का गढ़, अमित शाह के छपरा दौरे के पीछे है बीजेपी का बड़ा दांव

पटना: राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) से राजनीति में चोट खाए अमित शाह ( Amit Shah ) चोटिल नागिन की तरह हमलावर हो गए हैं। अभी कुछ ही दिन पहले सीमांचल आकर आगामी लोक सभा चुनाव 2022 का शंखनाद कर चुके हैं। लेकिन तभी उन्होंने यह संकेत दे दिया कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए बिहार बहुत महत्वपूर्ण हो चुका है। इसकी वजह भी है कि बिहार से ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष की गोलबंदी का बीड़ा नीतीश कुमार ने उठाया है।

छपरा मुहिम और शाह का निशाना
छपरा मुहिम की तो नीव सीमांचल दौरा के दिन ही पड़ चुका था। दरअसल, सीमांचल दौरे को महागंठबंधन के नेताओं ने सौहार्द बिगड़ने वाला सम्मेलन बताया था। इसकी काट करते अमित शाह ने अपने दूसरे दौरे की तिथि तय कर ली। और उस तिथि को विशेष बनाने के लिए जेपी जयंती का दिन और उनका जन्मस्थल सिताब दियारा का लक्ष्य साध लिया। इससे उन्माद की राजनीति का काट तो होगा ही साथ में दूसरा राजनीतिक लाभ यह होगा कि जिस तरह से सीमांचल यात्रा से किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार लोकसभा के तार को दुरुस्त किया गया, उसी तरह से लालू प्रसाद के क्षेत्र रहा छपरा और गोपालगंज के साथ साथ सीवान लोकसभा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं में उल्लास भर यहां की राजनीत को भाजपा के पक्ष में बहाना भी है। और यही से आरा और बक्सर की जनता को प्रभाव में लेना है। छपरा दौरा यह बताने किए भी कि जेपी के चेले भले जेपी को भूल जाएं, जेपी के जन्मदिन को भूल जाएं और यह तक कि कांग्रेस की गोद में चले जाएं. पर भाजपा जेपी का सम्मान करना कभी भूल नहीं सकती है।

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क्या गणित है छपरा यात्रा का ?
दरअसल छपरा, गोपालगंज, सिवान और आरा लोकसभा क्षेत्र राजनीतिक दृष्टिकोण से बड़ा फेर बदल बाला रहा है। यहां जदयू, राजद और भाजपा के बीच जीत हार का खेल चलते रहता है। छपरा लोक सभा क्षेत्र को लें तो यहां के जीत हार का समीकरण बदलते रहता है। हमेशा कांटे की टक्कर होती है। हालांकि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के राजीव प्रताप रूडी ने जीत हासिल की थी। लेकिन राजद यहां से 2004 और 2009 में चुनाव जीते भी हैं। इसके पहले 1998 में हीरा लाल भी राजद की टिकट पर जीत हासिल कर चुके हैं। इस बार , 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती मिलने वाली है। वजह साफ है कि इस बार महागंठबंधन में जदयू भी शामिल हो चुका है।

गोपालगंज लोक सभा लालू प्रसाद का गृह क्षेत्र है। यहां की राजनीतिक स्तिथि भी समय और समीकरण के हिसाब से बदलती रहती है। 2019 में एनडीए की सीट पर जदयू के आलोक सुमन जीते हुए हैं। यह वही सीट है जिस पर 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा अकेले दम पर जीती थी और जनक राम सांसद बने थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में जदयू के पूर्णमासी राम जीते थे। मगर 2004 में इस सीट पर राजद के अनिरुद्ध यादव की जीत हुई थी। 1996 में एक बार लालू प्रसाद भी सांसद बने थे। भाजपा यहां अकेले दम पर जीती थी, लेकिन तब वहां जदयू ने त्रिकोणात्मक संघर्ष बनाया था। इस बार जदयू और राजद एक साथ हैं।

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सीवान लोकसभा क्षेत्र का भी हाल भी ऐसा ही है। 1996 से ले कर इस सीट पर शाहबुद्दीन की जीत बरकरार रही। 2009 ओमप्रकाश यादव ने निर्दलीय चुनाव जीता। 2014 में यही ओमप्रकाश यादव भाजपा की टिकट पर लड़े और चुनाव जीते भी। पर ,2019 में यह सीट तालमेल में जदयू को चली गई और कविता सिंह यहां से जीत हासिल कर चुकी है।

अमनौर पोखरा पर सहकारिता सम्मेलन और राजनीति
छपरा के सांसद राजीव प्रताप रूडी के अनुसार, सीताबदियारा से जेपी को नमन करने के बाद अमनौर में सहकारिता सम्मेलन में भी भाग लेंगे। इसके भी राजनीतिक निहितार्थ लगाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस सम्मेलन में पैक्स से जुड़े लोगों को बुलाया गया है। पैक्स का चुनाव भी एक तरह से राजनीतिक सतह तैयार करता है। इनके संख्या बल भी कम नहीं होते। यह तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब इस सम्मेलन में तीन जिला यानी सिवान, छपरा और गोपालगंज के पैक्स के लोग रहेंगे। लोकसभा के चुनाव में पैक्स धरातल पर वोट बैंक का आधार रखता है। और यह वोट बैंक केवल जातीय संरचना के साथ नहीं रहता बल्कि इसके साथ आमदनी के भी तार जुड़ जाते हैं।

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जेपी के चेले और कांग्रेस
राजनीति के गलियारों में कांग्रेस और महागंठबंधन के इस गंठबंधन को मौका परस्तगी माना जा रहा है। कहा यह जा रहा है कि कांग्रेस विरोध के नाम पर राजनीति में जगह बनाने वाले अब जनता के बीच किस तर्क के साथ जाएंगे। बहरहाल अमित शाह के 11 अक्टूबर को सिताबदियारा पहुंचकर जेपी जयंती मनाने का निर्णय महागंठबंधन की परेशानी तो बढ़ा ही देगा।

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